नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से की गई मुलाकात को गैर-राजनीतिक बता रही हैं. लेकिन मुलाकात के बाद दिए बयानों से एक बार फिर राजनीति गरमा गई है. बुधवार को ममता बनर्जी ने ढाई साल बाद पीएम मोदी से मुलाकात की थी. इसके बाद आज उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की.


ममता ने राजीव कुमार की गिरफ्तारी को तो राजनीतिक दुश्मनी करार दिया ही, असम में लागू किए गए एनआरसी पर सवाल खड़े करते हुए इसे पश्चिम बंगाल के लिए गैर जरूरी करार दिया. वह भी तब जब गृहमंत्री अमित शाह ने इसे पूरे देश में लागू करने की बात कही हो.


दरअसल ममता बनर्जी की नजर एनआरसी के जरिये उस तबके पर है जो पश्चिम बंगाल में बीजेपी को पसंद नहीं करता है. अमित शाह से ममता की मुलाकात करीब 20 मिनट तक चली. इस मुलाकात के बाद ममता ने कहा कि उन्होंने गृहमंत्री को एक पत्र सौंपा है. इसमें कहा गया कि असम में 19 लाख लोगों को एनआरसी की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया, इसमें ज्यादातर लोग बंगाल के हैं. उन्हें फिर से लिस्ट में शामिल किया जाए. उन्हें एक मौका और दिय जाए.


वहीं पश्चिम बंगाल में एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने साफ किया कि राज्य में एनआरसी की जरूरत नहीं है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने भी इसे बिहार में लागू नहीं करने की बात कही है.


राजीव कुमार के सवाल पर भड़कीं ममता


जब ममता बनर्जी से जब राजीव कुमार की गिरफ्तारी से संबंधित सवाल किया गया तो वो भड़क गईं. उन्होंने मीडिया की ओर नाराजगी दिखाते हुए इसे राजनीतिक दुश्मनी कहा. राजीव कुमार के सवाल पर वो बार बार बचती नजर आईं. एक दिन पहले भी जब राजीव कुमार पर सवाल किया गया तो ममता सीधा जवाब देने की बजाय टाल गई थीं.


एनआरसी तो बहाना, मकसद है दुश्मनी मिटाना


ममता बनर्जी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री से मुलाकात के कई राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं. ममता के मुताबिक फेडरल स्ट्रक्चर में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से औपचारिक मुलाकात एक संवैधानिक जरूरत होती है. लेकिन ढाई साल तक दूरी बनाए रखने के बाद अचानक हुई मुलाकात के साथ कई सवाल जन्म ले रहे हैं.


सूत्रों की माने तो इस समय ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी बुरी तरह कानूनी शिकंजे में फंसते जा रहे हैं. कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पहले ही सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं. हाल ही में प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी की टीम में सलाहकार के रूप में एंट्री ली है. ऐसे में ममता की पहली प्राथमिकता अभिषेक बनर्जी को कानूनी शिकंजे से बचाने की है. ममता भी जानती हैं कि आज राजनीतिक लड़ाई में वो बीजेपी का सामना नहीं कर पाएंगी. उनका राजनीतिक रूप से सहयोग करने वाले दलों में भी अब दम बचा नहीं. ऐसे में संवाद ही एक मात्र रास्ता है. इसके जरिए ही अभिषेक बनर्जी पर लटक रही तलवार से बचा जा सकता है.


ममता का एक-एक दांव पूरी कहानी की तरह नजर आ रही है. जिसमे प्रशांत किशोर की योजनाबद्ध स्क्रिप्ट की झलक दिखाई पड़ती है. प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद एनआरसी पर बयान और अमित शाह से मुलाकात के बाद फिर एनआरसी पर दिए गए बयान से साफ है कि उनका हर कदम राजनीतिक है.


जानकारों की मानें तो असम में एनआरसी लिस्ट से बाहर 19 लाख लोगों का मामला उठाकर ममता ने पश्चिम बंगाल के उन लाखों वोटरों की सिम्पैथी लेने की कोशिश की है, जिन्हें इस बात का डर है कि यदि बंगाल में एनआरसी लागू हुई तो उनकी भी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी. इसलिए चाहे अंदरखाने में मामला कुछ भी हो लेकिन राजनीति में दिखाना वही चाहिए जो लोग देखना चाहते हैं. इसीलिए ममता बनर्जी दूसरे मुद्दों की बजाय एनआरसी पर ही बार बार-बात कर रही हैं.