मुंबई: महाराष्ट्र में इन दिनों एक नया मुद्दा गर्मा रहा है जिसको लेकर शिवसेना और बीजेपी में टकराव हो रहा है. ये मुद्दा है नवी मुंबई के निर्माणाधीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डडे के नामकरण का है. शिवसेना नए हवाई अड्डे को पार्टी के दिवंगत संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का नाम देना चाहती है लेकिन बीजेपी इसका विरोध कर रही है.


भारत में नामकरण या नामांतरण की सियासत नई नहीं है. मायावती ने यूपी की सीएम रहते हुए तमाम जिलों के नाम बदल डाले थे. 1995 में जब पहली बार शिवसेना की सत्ता महाराष्ट्र में आई तो बॉम्बे का आधिकारिक नाम बदलकर कर मुंबई कर दिया गया. इसके बाद देश के कई शहरों के नाम बदल- बैंगलोर, बेंगलुरु हो गया, मद्रास चेन्नई हो गया, कलकत्ता, कोलकाता हो गया. नाम के जरिए राजनीतिक पार्टियां लोगों की भावनाओं को छूने की कोशिश करती हैं और भावनाए चुनाव के वक्त अपना असर दिखाती हैं. इसीलिए चाहे जिले का नाम हो, शहर का नाम हो, हवाई अड्डे का नाम हो या फिर किसी छोटे से पुल का ही नाम क्यों न हो, भारतीय राजनीति में नामकरण को इतनी अहमियत हासिल है.


नामकरण की राजनीति का हिंसक इतिहास
अगर महाराष्ट्र की ही बात करें तो राज्य में नामकरण की राजनीति का हिंसक इतिहास रहा है. महाराष्ट्र के लोग औरंगाबाद की यूनिवर्सिटी के नामकरण को लेकर हुए बवाल भूले नहीं होंगे. मराठवाड़ा विश्वविद्यालय को डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर का नाम दिए जाने के लिए 1978 से आंदोलन चलाया गया लेकिन 1994 होते होते ये हिंसक हो गया. शिवसेना और दूसरे मराठा गुटों ने नामांतरण का विरोध किया. दो साल तक दंगे चले जिनमें कई लोग मारे गये,1200 गांव प्रभावित हुए और 3 हजार लोगों की गिरफ्तारी हुई. हिंसा तब थमी जब बीच का रास्ता निकला. यूनिवर्सिटी का नाम डॉ बाबसाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी कर दिया गया.


विवाद मुंबई के बांद्रा वर्ली सीलिंक को लेकर भी हुआ. अरब सागर पर बनाया गया ये पुल मध्य मुंबई के वर्ली को पश्चिमी उपनगर बांद्रा से जोड़ता है. साल 2009 में जब इस पुल का उदघाटन किया गया तब महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने इसे राजीव गांधी का नाम दिया. शिव सेना की ओर से इस नामकरण का जमकर विरोध किया गया और मांग की गई कि पुल को स्वतंत्रता सेनानी सावरकर का नाम दिया जाये.


एक बार फिर मसला नामकरण का है और विवाद के केंद्र में है शिव सेना. नवी मुंबई में हवाई अड्डा अब तक बनकर पूरा नहीं हुआ है. 4.5 वर्गमीटर में बन रहे इस हवाई अड्डे से सालाना 9 करोड मुसाफिर गुजरेंगे. इस हवाई अड्डे से पहला विमान हो सकता है कि साल 2023 में उड़ान भरे लेकिन हवाई अड्डे के नामकरण को लेकर विवाद अभी से शुरू हो गया है. राज्य की सत्ताधारी शिवसेना ने तय किया है कि इस विश्वस्तरीय हवाई अड्डे को दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का नाम दिया जायेगा.


शिवसेना के इस फैसले का ठाणे और रायगढ जिले के निवासी विरोध कर रहे हैं. उनका मानना है कि हवाई अड्डे को स्थानीय राजनेता और समाजसेवक दिवंगत डीबी पाटिल का नाम दिया जाये. पाटिल ने नवी मुंबई शहर बनाए जाते वक्त किसानों की जमीन अधिग्रहित किए जाते वक्त बड़ा आंदोलन किया था और उनका नाम इस इलाके में बड़े सम्मान से लिया जाता है. अपनी मांग को लेकर स्थानीय निवासियों ने हाल ही में 12 किलोमीटर लंबी मानव चैन भी बनाई और जगह-जगह प्रदर्शन किया. 24 जून को राज्य सरकार के प्रशासकीय केंद्र कोंकण भवन पर बड़े पैमाने पर मोर्चा निकालने की तैयारी हो रही है.


बीजेपी और एनसीपी भी नामकरण विवाद में कूदे 
इस विवाद में बीजेपी को भी कूदना पड़ा है क्योंकि स्थानीय विधायक प्रशांत ठाकुर बीजेपी के टिकट पर चुने गये हैं. ठाकुर का कहना है कि वे नामकरण कृति समिति में थे लेकिन शिवसेना ने बिना उनकी मंजूरी लिए और स्थानीय निकाय से पूछे बिना ही फैसला ले लिया. ठाकुर ने स्थानीय लोगों की मांग का समर्थन किया है कि नए हवाई अड्डे को डीबी पाटिल का नाम दिया जाए.


हाल ही में बीजेपी विधायक प्रशांत ठाकुर अपनी मांग के लिए समर्थन हासिल करने की खातिर एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे से मिलने गए लेकिन वहां राज ठाकरे ने हवाई अड्डे का नाम डीबी पाटिल को दिए जाने की मांग का समर्थन करने के बजाय अलग ही दिशा पकड़ ली. राज ठाकरे ने कहा क्योंकि नवी मुंबई का हवाई अड्डा मुंबई के छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का विस्तार है इसलिए नए हवाई अड्डे को भी छत्रपति शिवाजी महाराज का ही नाम दिया जाना चाहिए.


इस मामले में टांग एनसीपी की ओर से मंत्री छगन भुजबल ने भी अड़ा दी है. भुजबल का कहना है कि खुद बालासाहेब चाहते थे कि इस हवाई अड्डे को जे आर डी टाटा का नाम दिया जाये. टाटा भारत में वायुसेवा के जनक माने जाते हैं.