नई दिल्ली: बीजेपी की बड़ी नेता पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नहीं रहीं. मंगलवार रात दिल्ली में हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया. आज दोपहर तीन बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इससे पहले सुबह साढ़े दस बजे तक उनके घर लोग अंतिम दर्शन कर पाएंगे. सुबह ग्यारह बजे उनके पार्थिव शरीर को बीजेपी मुख्यालय ले जाया जाएगा. इसके बाद दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश दुनिया के तमाम नेताओं ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया.


पीएम मोदी ने कहा कि उनका जाना एक गौरवशाली अध्याय का अंत है. सुषमा स्वराज ना सिर्फ एक तेज तर्रार नेता बल्कि एक मिलनसार व्यक्तित्व की मालकिन भी थीं. विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने सिर्फ एक ट्वीट पर हर किसी की फरियाद सुनी. पासपोर्ट का मामला हो या विदेश में फंसे भारतीय को लाना हो सुषमा स्वराज ने हर काम के लिए उसी स्तर पर प्रयास किए. उन्होंने बीजेपी में बिल्कुल नीचे से शुरुआत करते हुए कद्दावर कद हासिल किया था. आइए एक नजर डालते हैं उनके सियासी सफर पर.....


बता दें कि खराब तबीयत का हवाला देते हुए सुषमा स्वराज ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज की बेहद लोकप्रिय थीं. ट्विटर के जरिए विदेश में फंसे लोगों की मदद करके और लोगों के पासपोर्ट संबंधी समस्याओं भी ट्विटर पर ही सुलझाकर उन्होंने अपनी एक तरह की छवि आम जनता के बीच बनाई थी. सत्ता में रहकर ही नहीं बल्कि विपक्ष में रहने के दौरान भी उनकी एक अलग पहचान थी. यूपीए सरकार के दौरान सुषमा स्वराज ने लोकसभा में विपक्ष की नेता के तौर पर सफलता पूर्वक काम किया. सुषमा स्वराज के व्यक्तित्व और उनके भाषण के कायल विरोधी दल के नेता भी रहे. देश की संसद से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में उनकी ओजस्वी आवाज ने पार्टी और देश की बात को मजबूती से रखा.


यहां जानें सुषमा स्वराज को तमाम राजनेताओं ने कैसे याद किया


प्रखर वक्ता और तेजतर्रार नेता की छवि रखने वाली सुषमा स्वराज अटल-आडवाणी युग के दिग्गज नेताओं में से एक हैं. सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की. साल 1970 में सुषमा स्वराज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गईं, उन्होंने जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, बाद में सुषमा स्वराज ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर लीं. उनके पति कौशल स्वराज दिग्गज समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के बेहद करीबी रहे.


साल 1977 से 1982 तक वे हरियाणा की अंबाला कंट सीट से विधायक रहीं, इसके बाद फिर 1987 से 1990 तक फिर विधायक रहीं. 1977 में जनता पार्टी सरकार में मुख्यमंत्री देवी लाल की कैबिनेट में वे मंत्री बनीं. महज 25 साल की उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने वाली वो देश की पहली महिला थीं. साल 1979 महज 27 साल की उम्र में जनता पार्टी की हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष बनकर उन्होंने अपनी सांगठनिक शक्ति का परिचय दे दिया था. 1987 से 90 के दौरान बीजेपी-लोकदल की गठबंधन सरकार में सुषमा स्वराज हरियाणा में शिक्षा मंत्री रहीं.


साल 1990 में सुषमा स्वराज हरियाणा की राजनीति से निकल दिल्ली पहुंचीं. अप्रैल 1990 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया, इसके बाद साल 1996 में उन्होंने दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव जीता. 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री रहीं. मार्च 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में एक बार फिर दक्षिणी दिल्ली से जीत कर संसद भवन पहुंची. वाजपेयी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सुषमा एक बार फिर सूचना प्रसारण मंत्री बनीं. सूचना प्रसारण मंत्री के तौर पर फिल्म निर्माण को व्यवसाय का दर्जा दिलाना उनका अहम फैसला था. इस फैसले से इंडियन फिल्म इंडस्ट्री बैंक कर्ज लेने के योग्य बनी.


इसके बाद सुषमा स्वराज ने अक्टूबर 1998 में मंत्री मंडल से इस्तीफा दे दिया और 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. इस पद पर वे ज्यादा दिन तक नहीं रहीं, तीन दिसंबर 1998 को ही उन्होंने विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने एक बार नेशनल पॉलिटिक्स में एंट्री की.सितंबर 1999 में बीजेपी ने सुषमा स्वराज को दक्षिण भारत में बेल्लारी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में उतारा. यह कांग्रेस की पारंपरिक सीट थी जो पहले चुनाव से ही उनके पास थी. सुषमा स्वराज ने बेहद मजबूती से यह चुनाव लड़े लेकिन उन्हें महज सात प्रतिशत वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.


इसके बाद अप्रैल 2000 में वे एक बार फिर उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बनकर दिल्ली पहुंचीं. लेकिन जब उत्तर प्रदेश का बंटवारा हुआ और उत्तराखंड बना तो उन्हें उत्तराखंड भेज दिया गया. उन्हें एक बार फिर सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई जिसे उन्होंने जनवरी 2003 तक निभाया. इसके बाद उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों में मंत्री बनाया गया और साल 2004 में एनडीए की सरकार जाने तक इस पद पर बनी रहीं.


अप्रैल 2006 में उन्हें तीसरे कार्यकाल के लिए मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुना गया. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मध्य प्रदेश के विदिशा से किस्मत आजमाई और उन्हें सफलता भी मिली. इसके बाद उन्हें लोकसभा में विपक्ष की नेता की जिम्मेदारी दी गई, 2014 में चुनाव तक वे इस पद पर बनी रहीं. 2014 में हुए ऐतिहासिक चुनाव में उन्होंने एक बार फिर विदिशा से जीत दर्ज की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री बनाया गया. आपको जानकर हैरानी होगी कि सुषमा स्वराज बीजेपी की पहली महिला प्रवक्ता भी रही हैं.


सुषमा स्वराज के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उन्होंने कौशल स्वराज से 1975 में शादी की. उनके पति कौशल स्वराज भी राजनीति से जुड़े रहे हैं. कौशल स्वराज राज्यसभा के सदस्य रहे और इसके बाद मिजोरम के राज्यपाल भी रहे. कौशल स्वराज के नाम सबसे कम उम्र में राज्यपाल बनने का रिकॉर्ड है, वे जब राज्यपाल बने तब उनकी उम्र मात्र 37 साल थी. सुषमा स्वराज और कौशल स्वराज की बेटी भी है, जिनका नाम बांसुरी स्वराज है. ऑक्सफोर्ड से ग्रेजुएट बांसुरी वकालत करती हैं.


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