पणजी: मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद से गोवा की राजनीति में उठापटक जारी है. एमजीपी से बीजेपी में शामिल होने के कुछ घंटों बाद मनोहर अजगांवकर को उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया है. दरअसल, गोवा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद 18 मार्च को बीजेपी नेता प्रमोद सावंत को उनकी जगह मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. बीजेपी के पास गोवा में पूर्ण बहुमत नहीं है.
ऐसे में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के नेता सुदिन धावलिकर और गोवा फारवर्ड पार्टी (जीएफपी) के विजय सरदेसाई ने उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की शर्तों पर सावंत की सरकार को समर्थन दिया था.
सरकार गठन होने के बाद 27 मार्च (बुधवार) को एमजीपी के दो विधायक मनोहर अजगांवकर और दीपक पावस्कर ने कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय करने का फैसला किया है. इसके ठीक बाद प्रमोद सावंत ने उपमुख्यमंत्री सुदिन धवलिकर को पद से हटाया दिया.
इसके बाद धवलीकर ने कहा, ‘‘जिस तरह से चौकीदारों ने एमजीपी पर आधी रात को डकैती की, लोग उसे देखकर हैरान हैं. लोग देख रहे हैं और वे तय करेंगे कि आगे क्या करना है.’’
अब मनोहर अजगांवकर को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है. वहीं दीपक पावस्कर को मंत्री बनाया गया है. गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने पावस्कर को पणजी में राजभवन में बुधवार रात करीब साढे 11 बजे आयोजित एक कार्यक्रम में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.
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क्या है सीटों का गणित?
40 सदस्यों वाली गोवा विधानसभा में फिलहाल 36 विधायक हैं. यानि सरकार बनाए रखने के लिए 19 विधायकों की जरूरत होती है. बीजेपी के पास सूबे में 12 विधायक हैं और उसे जीएफपी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है. जीएफपी के तीन और निर्दलीय तीन विधायक हैं. बीजेपी को एमजीपी का भी समर्थन हासिल था लेकिन उसके दो विधायकों ने बीजेपी ने पार्टी को विलय कर दिया. अन्य पार्टियों की बात करें तो गोवा में कांग्रेस के 14 और एनसीपी के एक विधायक हैं.
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने बुधवार को दावा किया कि उन्हें उपमुख्यमंत्री और एमजीपी के विधायक सुदीन धावलिकर को मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा क्योंकि वह गठबंधन सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम से जुड़े रहने में ‘विफल’ रहे. उन्होंने इन बातों से इंकार किया कि बीजेपी ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) में विभाजन करवाया जिसके दो विधायक बुधवार सुबह नाटकीय घटनाक्रम में भगवा दल में शामिल हो गए.
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सावंत ने संवाददाताओं से कहा कि 17 मार्च को मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद उनके नेतृत्व में सरकार बनाने के समय गठबंधन सहयोगियों ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) तय किया था. मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सीएमपी की एक शर्त थी कि कोई भी गठबंधन सहयोगी शिरोदा विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेगा.’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन एमजीपी अध्यक्ष दीपक धावलीकर (सुदीन धावलीकर के भाई) ने शिरोदा विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार वापस लेने से इंकार कर दिया.’’ सावंत ने कहा, ‘‘अगर वह अपने हित पार्टी और राज्य सरकार से ऊपर रखते हैं तो हम उनका सहयोग नहीं कर सकते.’’