नई दिल्ली: बिहार की राजनीति में इस वक्त भूचाल मचा हुआ है. चिराग पाससवान की पार्टी एलजेपी में बगावत हो गयी है. चिराग पासवान के साथ यह बगावत किसी और ने नहीं बल्कि उनके चाचा पशुपति पारस ने की है. चाचा की अगुवाई में लोक जन शक्ति पार्टी के पांच सांसदों ने चिराग पासवान से किनारा कर लिया है.
चिराग पासवान आज अपने चाचा से मिलने उनके आवास पर पहुंचे लेकिन उन्हें 20 मिनट दरवाजे पर ही इंतजार करना पड़ा इस बगावत के बाद एलजेपी के अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता चिराग पासवान अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं. इसके साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या चाचा पशुपति पारस ने भतीजे चिराग पासवान के राजनीतिक करियर पर ब्रेक लगा दिया है.
चिराग के पिता राम विलास पासवान को भारतीय राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था, यानी उन्हें हमेशा इस बात का आभाष रहता था कि कब कौन सत्ता में आने वाला है. राम विलास पासवान ने किसी भी दल या नेता के साथ राजनीतिक दूरी नही बनायी, इसी कारण उन्हें सभी दल के नेता सम्मान देते थे.
पिता राम विलास पासवन के निधन के बाद एलजेपी के पोस्टर ब्वॉय चिराग पासवान बन गए और पार्टी से जुड़े सभी फैसले लेने लगे. विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग लड़ने का फैसला भी चिराग का ही माना जाता है, जहां एलजेपी को बड़ी हार देखनी पड़ी थी. पिता राम विलास पासवन की छवि से उलट उन्होंने खुद को अपनी पार्टी या फिर कहें कि सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित कर लिया. अंधकार में जाते अपने भविष्य को चिराग बचा पाएंगे या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
राजनीतिक ग्राफ में गिरावट के साथ ही चिराग उन संतानों की लिस्ट में शामिल हो गए जिनके पिता राजनीति के शिखर पर पहुंचे लेकिन वे ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके. इनमें कुछ प्रमुख नेताओं की बात करें तो प्रणब मुखर्जी, प्रमोद महाजन, जग्ननाथ मिश्र, जसवंत सिंह, नरसिम्हा राव, चंद्रशेखर,वीपी सिंह, संजय गांधी, एनडी तिवारी और कल्याण सिंह शामिल हैं. इन सभी कद्दावर नेताओं ने राजनीतिक की चरम सफलता देखी, जबकि राजनीति में होते हुए भी इनकी संतानें बहुत ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकीं.
प्रणब मुखर्जी- कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे और फिर देश के प्रथम नागरिक बनने वाले प्रणव मुखर्जी को राजनीति में अजातशत्रु कहा जाता है. उन्हें कांग्रेस का संकट मोचक भी कहा जाता था. उनके राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस में जो जगह खाली हुई उसे आजतक कोई नहीं भर पाया है. एक तरफ जहां प्रणब मुखर्जी ने देश में बड़े पदों की जिम्मेदारी संभाली तो वहीं दूसरी तरफ उनकी दोनों संतानों शर्मिष्ठा मुखर्जी और अभिजीत मुखर्जी वो मुकाम हासिल नहीं कर पाए.
वर्तमान में शर्मिष्ठा दिल्ली कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता हैं. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी लेकिन हार गई थी. शर्मिष्ठा मुखर्जी एक राजनेता होने के साथ साथ कत्थक डांसर और कोरियोग्राफर भी हैं.
वहीं अभिजीत मुखर्जी वर्तमान में पश्चिम बंगाल के जंगीपुर से लोकसभा सांसद रहे. 2019 में मोदी लहर में वे चुनाव हार गए. अभिजीत मुखर्जी भी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान नहीं बना पाए और बंगाल की राजनीति तक ही सीमित रह गए.
प्रमोद महाजन- बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वासपात्र रहे दिवंगत प्रमोद महाजन के बेटा और बेटी भी उस शिखर को नहीं छू पाए, जहां उनके पिता पहुंचे. प्रमोद महाजन की दो संतानें हैं, एक बेटा राहुल महाजन और बेटी पूनम महाजन. राहुल महाजन ने राजनीति में कदम ही नहीं रखा और एंटरटेनमेंट की दुनिया में अपनी किस्मत आजमायी, जिसमें उन्हें कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई.
वहीं बेटी पूनम महाजन ने राजनीति में अपने भाग्य को आजमाया और मुंबई से लोकसभा सांसद हैं. इसके साथ ही बीजेपी ने उन्हें युवा मोर्चा की अध्यक्ष भी बनाया. वे बास्केट बॉल फेडरेशन की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला भी रहीं. अपने भाई राहुल महाजन के मुकाबले पूनम महाजन ने राजनीति में ना सिर्फ कदम रखा बल्कि सफलता भी पायी. लेकिन अगर पिता की शख्सियत से मुकाबले की बात करें तो पूनम महाजन भी उसी लिस्ट में नजर आती हैं.
जगन्नाथ मिश्र- बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्रा भी राजनीतिक क्षेत्र में अपनी खास पहचान नहीं बना पाए. वे बिहार में चार बार विधायक जरूर चुने गए लेकिन अपने पिता की तरह बड़ी राजनीतिक सफलता हासिल नहीं कर पाए.
जसवंत सिंह- बीजेपी के संस्थापक सदस्य और देश वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह फिलहाल कांग्रेस पार्टी में हैं. बीजेपी ने उन्हें पार्टी के खिलाफ प्रचार करने आरोपों के चलते सस्पेंड कर दिया था. मानवेंद्र सिंह 2004 में लोकसभा पहुंचे. 2013 से 2018 तक बीजेपी के टिकट पर राजस्थान में विधायक भी बने. मानवेंद्र सिंह भी अपने पिता की छाया से बाहर निकल कर अपनी अलग पहचान नहीं बना पाए.
नरसिम्हा राव- देश के नौंवे प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के बेटे पीवी राजेश्वर राव सिर्फ एक बार ही लोकसभा का चुनाव जीत पाए. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर आंध्र प्रदेश की सिकंदराबाद सीट से साल 1996 में चुनाव जीता. इसके अलावा ने राजनीति में कोई बड़ी उपब्धि हासिल नहीं कर पाए. नरसिम्हा राव की बेटी सुरभी वाणी देवी तेलंगाना विधानपरिषद की सदस्य हैं.
चंद्रशेखर- देश के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे भी राजनीति कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर सके. अपने पिता की मृत्यु के बाद उन्हीं की लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से नीरज शेखर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 2009 में जीत हासिल की. 2014 में उन्हें हार सामना करना पड़ा, इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ बीजेपी ज्वाइन कर ली. फिलहाल वे राज्यसभा सदस्य हैं. नीरज शेखर भी राष्ट्रीय राजनीति में अपने पिता के बराबर कद हासिल नहीं कर सके. वहीं उनके दूसरे बेटे पंकज शेखर सिंह भी राजनीति से जुड़े हैं लेकिन बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पाए.
वीपी सिंह- देश के सातवें प्रधानमंत्री वीपी सिंह के बेटे भी राजनीति में कोई बड़ी जगह नहीं बना पाए. उनके एक बेटे अजय प्रताप सिंह कांग्रेस पार्टी के नेता हैं. इससे पहले वे जन मोर्चा पार्टी के अध्यक्ष थे जिसका बाद में कांग्रेस विलय कर दिया गया.
संजय गांधी- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में कांग्रेस के 'सुप्रीमो' रहे संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी पीलीभीत से लोकसभा सांसद हैं. भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव के पद से शुरुआत करने वाले वरुण गांधी लोकसभा चुनाव तक ही सीमित रह गए. एक वक्त बीजेपी के फायर ब्रांड नेता रहे वरुण गांधी को उत्तर प्रदेश में सीएम पद का उम्मीदवार भी बताया जा रहा था. वरुण गाांधी ने राजनीति में नाम भी कमाया लेकिन जो शख्सियत उनके पिता की थी वो कभी हासिल नहीं कर पाए.
एनडी तिवारी- उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर तिवारी ने पहले तो खुद को अपना बेटा साबित करने के लिए संघर्ष किया. लेकिन राजनीति में वह कुछ भी बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पाए.
कल्याण सिंह- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह भी प्रदेश की राजनीति तक ही सीमित रह गए. साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुचे. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में दो बार विधायक रहे और साल 2003 से 2007 तक स्वास्थय मंत्री बने. राजवीर सिंह भी अपने पिता के राजनीतिक कद तक नहीं पहुंच पाए