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Punjab Election 2022: कभी कांग्रेस की धाक...कभी अकाली ने बनाई साख, 2 पार्टियों के बीच सिमटा रहा पंजाब का सियासी इतिहास

Punjab Politics: उत्तर प्रदेश के चुनावों की तरह ही इस बार पंजाब का चुनाव भी बेहद खास होने वाले हैं. किसान आंदोलन, कांग्रेस पार्टी में मची रही सियासी उठापटक ने पंजाब को चर्चा में रखा.

Punjab Assembly Election 2022: सियासी वार और मंझे हुए राजनेताओं से सजी पंजाब की सियासत नया इतिहास रचने की ओर बढ़ रही है. एक अनोखी राजनीतिक विरासत समेटने वाले पंजाब के लिए इस बार का चुनाव बेहद खास हैं. किसान आंदोलन ने देश में उत्तर-पश्चिमी छोर पर मौजूद पंजाब की सियासत के रंग को काफी हद तक बदल कर रख दिया है. पूरे साल आंदोलन और कांग्रेस पार्टी में मची रही सियासी उठापटक के चलते पूरे साल राज्य की राजनीति चर्चा की वजह बनी रही है. ऐसे में सबसे ज्यादा रोचक माने जाने वाले यूपी के चुनावों के बाद पंजाब का चुनाव भी बेहद खास होने वाला है.

पंजाब की सियासत में पिछले विधानसभा चुनाव में AAP ने इतिहास रचते हुए एक अहम उपलब्धि हासिल की थी. ये उपलब्धि थी किसी बाहरी पार्टी के पंजाब में अपना अस्तित्व कायम करने की. पंजाब का अब तक का चुनावी इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि यहां के वोटर्स ने दो ही पार्टी को सिर-माथे पर जगह दी है और वो अकाली दल और कांग्रेस है. अकाली दल के इतने सालों से बीजेपी के साथ गठबंधन के चलते पंजाब की राजनीति में बीजेपी की एंट्री भले हो गई थी, लेकिन इस गठबंधन में अकाली दल ही अहम जगह बनाए हुए था. 

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शुरुआत से दो पार्टियों का रहा दखल

आजादी के बाद के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो भरपूर जल स्रोतों और उपजाउ मिट्टी वाले राज्य में शुरुआत से ही दो पार्टियों ने अपना दखल रखा है. इतिहास के पन्नों से धूल हटाएं तो दावा किया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का उदय भी इसी धरती पर हुआ. पंजाब की विधानसभा में 117 सीटें हैं. यहां की वर्तमान साक्षरता दर 77 फीसदी के करीब है. राज्य में सिख आबादी कुल जनसंख्या का 60 फीसदी है. राज्य के सिख समुदाय में जाट सिखों की संख्या ज्यादा है. पंजाब की जनसंख्या में करीब 20 फीसदी हिस्सा दूसरे राज्यों से पलायन करके आई है. ऐसे में राज्य की राजनीति में सिखों का दखल ज्यादा है. 


Punjab Election 2022: कभी कांग्रेस की धाक...कभी अकाली ने बनाई साख, 2 पार्टियों के बीच सिमटा रहा पंजाब का सियासी इतिहास

पंजाब, क्षेत्रफल की दृष्टि से एक छोटा राज्य है और यहां एकसदनीय विधायिका है. पहली विधानसभा की अंतरिम सरकार से लेकर पहली दूसरी और तीसरी विधानसभा में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा. इस दौरान कांग्रेस राज्य की सत्ता में रही. 20 मार्च 1967 को चुनी गई चौथी विधानसभा में राज्य की सत्ता अकाली दल के पास चली गई. इसी विधानसभा के दौरान 'पंजाब जनता पार्टी' को भी सत्ता का स्वाद चखने का मौका मिला. 

13 मार्च 1969 को गठित हुई पांचवीं विधानसभा में एक बार फिर अकाली दल सत्ता पर काबिज हुई. पांचवीं विधानसभा में दो मुख्यमंत्री रहे, जिसमें गुरनाम सिंह और प्रकाश सिंह बादल. यही वो वक्त था जब प्रकाश सिंह बाद पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. छठवीं विधानसभा में फिर कांग्रेस ने बाजी मारी और सत्ता में पहुंची. 21 मार्च 1972 को चुनी गई सरकार में कांग्रेस ने जैल सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी. 30 जून 1977 के चुनावों में फिर अकाली दल की वापसी सत्ता में हुई और सातवीं विधानसभा में प्रकाश सिंह बादल को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. हालांकि सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. 

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23 जून 1980 को फिर विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस को 8वीं विधानसभा में सत्ता हासिल हुई. कांग्रेस ने दरबारा सिंह को सीएम बनाया. नौंवीं विधासभा, जो 14 अक्टूबर 1985 को गठित हुई, इसमें शिरोमणि दल सत्ता के शीर्ष पर पहुंची. अकाली दल ने अब सुरजीत सिंह बरनाला को राज्य का मुख्यमंत्री घोषित किया. 10 वीं विधानसभा में राज्य ने तीन मुख्यमंत्री देखे. 16 मार्च 1992 को गठित हुई विधानसभा में बेअंत सिंह, हरचरण सिंह बरार, राजेंद्र कौर भट्टल को सीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला. कांग्रेस इस दौरान राज्य की सत्ता में रही. 


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3 मार्च 1997 के चुनावों में गठित विधानसभा में एक बार फिर शिरोमणि अकाली दल को सत्ता मिली. प्रकाश सिंह बादल एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने. 21 मार्च 2002 को गठित 12वीं विधानसभा में कांग्रेस को सत्ता हासिल हुई और पहली बार अमरिंदर सिंह सीएम बने. अमरिंदर सिंह ने पूरे पांच साल सरकार चलाई. 13वीं विधानसभा 1 मार्च 2007 को बनीं और प्रकाश सिंह बादल को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. साल 2012 में लगातार दूसरी बार शिरोमणि अकाली दल सत्ता में आई और प्रकाश सिंह बादल ही राज्य के मुख्यमंत्री बने. 15वीं विधानसभा ने राज्य में दो मुख्यमंत्रीयों को कांग्रेस की सरकार में देखा. 24 मार्च 2017 को अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया और फिर चरणजीत सिंह चन्नी को हाल ही में अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद सत्ता की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला.

पंजाब विधानसभा की इस वक्त की स्थिति

117 सीटों वाली विधानसभा में इस वक्त कांग्रेस के 77 विधायक हैं. वहीं दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के 14 विधायक सदन में हैं. शिरोमणि अकाली दल के इस वक्त 13 जबकि भारतीय जनता पार्टी के 5 विधायक हैं. एलआईपी 2 के पीएलसी का एक विधायक है. पांच सीटें विधानसभा में इस वक्त खाली हैं.

विधानसभा चुनाव का समीकरण

पंजाब का चुनाव बेहद रोचक हो गया है. पिछले विधानसभा चुनावों में 14 विधायकों की जीत के बाद पार्टी राज्य के दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और उसने मुख्य विपक्षी दल के रूप में सदन में जगह बनाई. हालांकि पिछली बार के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने पंजाब की जय जवान जय किसान पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे जीत हासिल नहीं हुई. यूपी में सत्ता में रह चुकी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी राज्य में कदम बढ़ाए, लेकिन दोनों ही पार्टियों को राज्य में कामयाबी नहीं मिली.


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इस बार क्या है खास

इस बार के चुनाव इसलिए भी रोचक है, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल बिना बीजेपी के गठबंधन के चुनाव मैदान में है. अकाली दल ने दलित वोट भुनाने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया है. बीजेपी पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई गठित पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में है. आम आदमी पार्टी ने भी मुख्य विपक्षी पार्टी बनने के बाद पूरी ताकत पंजाब चुनाव में झोंक दी है. आप कॉन्फिडेंस में है और पंजाब में कोई नया इतिहास रचने की कोशिश में है. वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी सवाल अस्तित्व का है. वो राजनीति के पुराने मंझे हुए खिलाड़ी हैं और एक राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में उन्हें और बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव बेहद अहम हैं.

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