नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर हुई सुनवाई राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं से नहीं बच सकी. इस दौरान वकीलों ने एक दूसरे पर शब्द बाण चलाए. लेकिन जजों ने उस पर ध्यान नहीं दिया. मज़दूरों की बेहतरी पर फोकस बनाए रखा.


‘चिट्ठी लिखने वाले नकारात्मक लोग’


केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलीसीटर जनरल ने वरिष्ठ वकीलों की चिट्ठी के बाद कोर्ट की तरफ से मामले का संज्ञान लिए जाने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “कुछ वरिष्ठ वकीलों और खुद को समाजसेवी बताने वाले लोगों ने जजों को चिट्ठी लिखकर मामले पर संज्ञान लेने का दबाव बनाने की कोशिश की. मैं यह कहना चाहता हूं कि यह सभी लोग नकारात्मकता से भरे हैं. सिर्फ बुराई ढूंढ़ते हैं. इनके अंदर देश प्रेम का भाव नहीं है. देश की बदनामी से भी इन्हें कोई गुरेज नहीं है. यह सब लोग करोड़पति हैं. लेकिन गरीबों की कोई मदद नहीं कर रहे. सिर्फ मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं और घर में आराम से बैठे जजों को चिट्ठी लिख रहे हैं. इनकी बात पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए था.“


गिद्ध से तुलना की


मेहता ने उस फोटोग्राफर का भी हवाला दिया जिसने अफ्रीका में मौत की कगार पर पहुंचे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर खींची थी. उसने बच्चे की कोई मदद नहीं की थी. सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि इस फोटोग्राफर से एक पत्रकार ने कहा था कि वहां 1 नहीं 2 गिद्ध थे. दूसरे गिद्ध खुद आप थे. जिन लोगों ने चिट्ठी लिख कर आपकी संज्ञान लेने के लिए कहा वह करोड़ों में कमाते हैं. घर बैठे हैं. 1 पैसा खर्च नहीं कर रहे. यह सब उस फोटोग्राफर की तरह हैं.


‘हमें राजनीति से सरोकार नहीं’


इस पर जजों के कहना था कि इन बातों की बजाय मज़दूरों की स्थिति पर सुनवाई होनी चाहिए. 3 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, “अगर कोई न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करना चाहता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन हम अपनी अंतरात्मा के आधार पर सुनवाई करते हैं. हमें जरूरी लगा, तभी इस विषय पर संज्ञान लिया. हम लोगों के साथ न्याय करने की कोशिश कर रहे हैं.“ बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, “बात सिर्फ एक चिट्ठी की नहीं है. हमने मीडिया में भी लोगों की बदहाली को देखा है. सुप्रीम कोर्ट उन लोगों की मदद करना अपना दायित्व समझता है.“


सिब्बल और सिंघवी पर सरकार का एतराज़


सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकीलों की मौजूदगी पर भी सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने एतराज किया. उनका कहना था कि यह राजनीतिक पार्टी से जुड़े लोग हैं, जिनका मकसद राजनीति करना है. तुषार मेहता का यह भी कहना था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है, तो यह विषय कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच है. इसमें कोई और याचिकाकर्ता बनकर नहीं बोल सकता. कोर्ट को इन लोगों को राजनीति के लिए अपने प्लेटफार्म के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देनी चाहिए.


इसके बाद कपिल सिब्बल ने बोलना शुरू किया. उन्होंने कहा, “मैं यहां किसी राजनीतिक पार्टी के लिए नहीं 2 सामाजिक संगठनों के लिए पेश हुआ हूं. जहां तक बात गरीबों की मदद करने की है तो मैंने इस दौरान 4 करोड़ रुपए का दान दिया है. क्या अब सॉलिसिटर जनरल मुझे बोलने की इजाजत देंगे?”


बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अशोक भूषण ने सिब्बल से कहा, “एक वरिष्ठ वकील की हैसियत से आप जो भी सुझाव रखना चाहते हैं, आपको उसकी इजाजत है. आप अपनी बात को रखें.“ इस पर सिब्बल ने कहा, “सरकार 91 लाख मजदूरों को घर पहुंचाने का दावा कर रही है. लेकिन जरूरतमंदों की संख्या साढ़े 4 करोड़ है. इस हिसाब से सबको पहुंचाने में 3 महीने का वक्त लग जाएगा. सरकार से यह पूछा जाए कि कितनी ट्रेनें और चलाने वाले हैं. रिलीफ कैंप में दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता सही नहीं है. मजदूरों को सीधे आर्थिक मदद दी जानी चाहिए जो कि नहीं मिल रही है.“


सुरजेवाला को इजाज़त नहीं


इसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी की बारी आई. सिंघवी ने बताया कि वह कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के लिए पेश हुए हैं. सॉलीसीटर जनरल का कहना था कि एक राजनीतिक पार्टी का प्रवक्ता हर समय राजनीति के मौके ढूंढ़ता है. क्या कोर्ट पार्टी प्रवक्ता को भी राजनीति की अनुमति देगा? जजों ने सिंघवी से कहा, “आप अपने मुवक्किल के वकील की हैसियत से नहीं, खुद एक वरिष्ठ वकील की हैसियत से बोलें. आप जो सुझाव देना चाहते हैं, उनका स्वागत है.“


एनजीओ के वकीलों ने भी दिए सुझाव


सिंघवी ने स्टेशन में यात्रा से जुड़ी उचित सुविधाओं के न होने की बात कही. उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार और जिला प्रशासन के पास मजदूरों को लेकर कोई भी स्पष्ट योजना नहीं है. इस बीच एनजीओ से जुड़े कॉलिन गोंजाल्विस और इंदिरा जयसिंह जैसे वकील भी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे. सरकार विरोधी छवि रखने वाले गोंजाल्विस और जयसिंह की मौजूदगी पर भी सॉलिसिटर जनरल ने एतराज जताया और कहा समाज के लिए कोई भी सकारात्मक योगदान न करने वाले इन लोगों को सुनने की कोई जरूरत नहीं है. हम अदालत के निर्देशों के मुताबिक विस्तृत जवाब दाखिल करने को तैयार है. हमें इसका अवसर दिया जाए.


कोर्ट ने सुनी सबकी बात


हालांकि जजों का मानना था कि वरिष्ठ वकीलों के सुझाव को सुन लेने में कोई हर्ज नहीं है. उन्होंने इन दोनों वकीलों से भी सुझाव मांगे. दोनों का कहना था ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए. वापस लौटने के इच्छुक मजदूरों से संपर्क कर उन्हें जल्द से जल्द भेजा जाना चाहिए.


इस पर सरकार के वकील ने कहा, “इन लोगों की यही समस्या है. जो वापस नहीं जाना चाहता है, उसके अंदर भी घबराहट भर देना चाहते हैं. कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को लेकर अपनी राजनीति करना चाहते हैं. इनके दिलचस्पी इस बात में ज्यादा है कि देश में भगदड़ का माहौल बना रहे. गरीबों की मदद से इनका कोई सरोकार नहीं.“


जजों ने संतुलन बनाए रखा


इस पूरी कार्रवाई के दौरान कई बार माहौल गर्म हो गया. वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक हुई. लेकिन मजदूरों की स्थिति पर सुनवाई करने बैठे जजों ने अपना ध्यान मुख्य मुद्दे पर बनाए रखा. कोर्ट ने आज मजदूरों से किराया न वसूले जाने, उन्हें भोजन-पानी जैसी सुविधा देने, रजिस्ट्रेशन कराने वाले मजदूरों को जल्द से जल्द यातायात की सुविधा देने जैसे कई अंतरिम आदेश दिए. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को विस्तृत जवाब दाखिल करने का आदेश देते हुए कहा है कि मामले में आगे की सुनवाई 5 जून को होगी.


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