ममता बनर्जी की पार्टी TMC में बुजुर्ग बनाम युवा की छिड़ी बहस, क्या कह रहे हैं नेता?
Trinamool Congress: टीएमसी स्थापना दिवस मना रही है. ऐसे में बंगाल की राजनीति में पुराने-नए नेताओं को लेकर बहस तेज हो गई है, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में नुकसान होने की संभावना भी जताई जा रही है.
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Trinamool Congress: साल 1998 में कांग्रेस से अलग होकर ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का गठन किया था, जिसे अब 27 साल हो गए हैं. सोमवार (1 दिसंबर) को पार्टी ने अपना स्थापना दिवस मनाया. इसके साथ ही यह बहस तेज हो गई है कि पार्टी के दिग्गज (बुजुर्ग) नेताओं को युवा पीढ़ी के लिए रास्ते बनाने चाहिए. बहस तब और अलग हो जाती है, जब पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी अनुभवी नेताओं का समर्थन कर रही हैं तो दूसरी तरफ उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी बुजुर्ग लीडर्स की रिटायरमेंट की बात कर रहे हैं.
टीएमसी में पुराने बनाम नई पीढ़ी के नेताओं के मुद्दे ने अब नया मोड़ ले लिया है. दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी वरिष्ठ नेताओं के सम्मान करने की वकालत की थी और उस दावे को दरकिनार कर दिया था जिसमें अनुभवी नेताओं को संन्यास लेने की बात कही गई थी. हालांकि, सीएम ममता बनर्जी के इस बयान के बाद राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने यह कहा कि राजनीति में सेवानिवृत्ति की उम्र होनी चाहिए. अभिषेक ने बढ़ती उम्र के साथ कार्य कुशलता में गिरावट आने का हवाला देते हुए यह बात कही.
'पुराने और नए के बीच कोई विवाद नहीं'
इस मामले पर छिड़ी बहस के बीच अभिषेक बनर्जी के करीबी माने जाने वाले पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष का दावा है कि पुराने और नए के बीच कोई विवाद नहीं है, लेकिन बुजुर्ग राजनेताओं को इस बात का पता होना चाहिए कि उनको कहां जाकर रुकना है. उन्हें अगली पीढ़ी के नेताओं के लिए रास्ता बनाने की जरूरत है.
पार्टी प्रवक्ता के इस बयान को लेकर अंदरुनी विवाद छिड़ गया है और इस पर बहस तेज हो गई. टीएमसी के कई मौजूदा सांसदों, मंत्रियों और 70 साल से ज्यादा की उम्र के वरिष्ठ नेताओं, जो कई पदों पर बने हुए हैं, इस तरह की टिप्पणी का विरोध कर रहे हैं.
ममता बनर्जी का फैसला अंतिम
तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद और संसदीय दल के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, ''ममता बनर्जी पार्टी सुप्रीमो हैं... उनका फैसला अंतिम है. अगर वह सोचती है कि किसी की उम्र रिटायर होने के लायक हो गई है, तो वह रिटायर हो जाएगा. यदि वह ऐसा नहीं सोचती हैं तो वह व्यक्ति पार्टी के लिए काम करना जारी रखेगा.''
सुदीप बंदोपाध्याय को नहीं आयु सीमा के प्रस्ताव में दिलचस्पी
वरिष्ठ नेता अभिषेक बनर्जी की ओर से प्रस्तावित अधिकतम आयु सीमा के प्रस्ताव को लेकर बुजुर्ग नेता ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. पश्चिम बंगाल की राजनीति के अनुभवी नेता सुदीप बंदोपाध्याय 74 साल के हैं. उनको लगता है कि यह बहस बचकानी है, क्योंकि पार्टी को युवाओं और वरिष्ठ सदस्यों दोनों की जरूरत है. इस भावना को समर्थन देते हुए पार्टी के दूसरे सीनियर लीडर सौगत रॉय ने कहा कि पार्टी के भीतर उम्र कोई बाधा नहीं है. वरिष्ठों और अगली पीढ़ी की भूमिकाओं पर अंतिम फैसला पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी पर निर्भर करता है.
सौगत रॉय 3 बार के लोकसभा सांसद
76 वर्षीय राजनेता सौगत रॉय ने कहा कि ममता बनर्जी ही तय करेंगी कि कौन चुनाव लड़ेगा या पार्टी में किस पद पर बना रहेगा. वह ही इस मामले में फैसला लेने के लिए सर्वेसर्वा हैं. सौगत रॉय 3 बार के लोकसभा सांसद हैं. उन्होंने पिछले माह टीएमसी और बीजेपी के बीच उम्र के बैरियर को लेकर फर्क बताया था. इस दौरान कहा था कि बीजेपी में 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को रोकने का नियम है.
'बुजुर्ग नेताओं की सूची में टॉप पर बंदोपाध्याय और रॉय'
पार्टी सूत्रों की माने तो बंदोपाध्याय और रॉय दोनों उन नेताओं की सूची में टॉप पर है, जोकि प्रस्तावित आयु सीमा लागू होने पर प्रभावित हो सकते हैं. सीएम के बहुत करीबी माने जाने वाले वरिष्ठ मंत्री फिरहाद हकीम ने भी कहा कि केवल वह ही अधिकतम आयु सीमा या एक-व्यक्ति-एक-पद के प्रस्ताव पर निर्णय ले सकती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वो किसी को कई पदों पर बनाए रखना चाहती हैं तो रहेगा और नहीं चाहती हैं तो नहीं रहेगा. फिरहाद हकीम कोलकाता के मेयर के अलावा दो कैबिनेट विभागभी संभाल रहे हैं.
टीएमसी के एक सीनियर नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि बेहतर होता इस मुद्दे पर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बहस नहीं होती क्योंकि यह पार्टी की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है.
पुराने और नए के बीच की लड़ाई ने राजनीति में जोड़ा नया आयाम
इस मुद्दे पर राजनीतिक विशेषज्ञ विश्वनाथ चक्रवर्ती ने भी कहा कि इस तरह का विवाद आगामी संसदीय चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है. टीएमसी में पुराने और नए के बीच लड़ाई ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस बहस को जल्द नहीं रोका गया तो इससे टीएमसी की नुकसान उठाना पड़ सकता है. एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ मैदुल इस्लाम ने कहा कि यह बहस निश्चित रूप से पार्टी नेतृत्व के लिए 'चिंता का विषय' है. तृणमूल कांग्रेस का गठन एक जनवरी, 1998 को हुआ था.
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