नई दिल्ली: वे राजनीतिक पार्टियां जो अब तक कागजों पर ही चलती आ रही हैं, उनकी मान्यता खतरे में है. चुनाव आयोग अब उन पर कार्रवाई करने का मन बना चुका है.


सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स यानि सीबीडीटी को ऐसे फर्जी राजनीतिक दलों के बारे में चिट्ठी लिखने वाला है, जिससे इन पार्टियों के वित्तीय लेनदेन की सही जानकारी मिल सके. चुनाव आयोग को लगता है कि ऐसी फर्जी पार्टियां सिर्फ इसलिए बनायी जाती हैं कि इनके ज़रिए काले धन को सफेद किया जा सके.



काले धन जैसे नासूर को खत्म करने में राजनीतिक पार्टियां पीछे क्यों ?


चुनाव आयोग को शक है कि राजनीतिक पार्टियां बनाकर काले धन को सफेद करने का खेल हो रहा है और इसीलिए उसने करीब 200 ऐसी पार्टियों की लिस्ट तैयार की है जो सिर्फ कागज़ों पर हैं. देशभर में करीब 1900 राजनीतिक दल हैं, इनमें 7 राष्ट्रीय दल, 58 क्षेत्रीय दल हैं, और बाकी बचे दल रजिस्टर्ड तो हैं पर उनकी कोई पहचान नहीं है, इसमें करीब 1500 पार्टियां ऐसी हैं जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा.


एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानि एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाली 75 फीसदी रकम बेनामी है, यानि जिसका कोई स्त्रोत ही नहीं है.


एडीआर की सबसे ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी को इस साल 76 करोड़ 85 लाख की रकम ऐसे चंदे से मिली जो 20 हजार से ज्यादा थी. जबकि पिछले साल ये रकम 437 करोड़ 35 लाख थी. कांग्रेस को इस साल 20 हजार रुपए से ऊपर 20 करोड़ 42 लाख ही चंदा मिला, जबकि पिछले साल ये रकम 141 करोड़ 46 लाख थी.


बीएसपी ने चंदे का जो हिसाब दिया है वो तो और भी ज्यादा चौंकाने वाला है. बीएसपी ने कहा कि इस बार उसे एक भी ऐसा चंदा नहीं मिला जो 20 हजार से ज्यादा का हो. चूंकि राजनीतिक पार्टियां ना तो आरटीआई के दायरे में आती हैं, ना ही उन्हें इनकम टैक्स देना होता है, और ना ही 20 हज़ार से नीचे मिले गुप्त चंदे का हिसाब देना पड़ता है.


इसीलिए चुनाव आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले गुप्त चंदे की सीमा 2 हज़ार रुपए कर दी जाए.


चंदे का खेल कैश में कैसे होता है


मान लीजिए किसी ने XYZ पार्टी को 10 लाख रुपए कैश में चंदा दिया. पार्टियों को सहूलियत है कि वो 5,10 और 20 रुपये के कूपन के ज़रिए पैसे ले सकती हैं. ऐसे में उन्हें सिर्फ करना ये होगा कि 10 रुपए वाले 1 लाख कूपन जारी कर दिए जाएंगे. कूपन किसे जारी हुए ये उसे किसी को बताने की भी ज़रूर नहीं है, क्योंकि हिसाब तो सिर्फ 20 हजार रुपए से ऊपर मिले एक मुश्त चंदे का ही देना है.


चुनाव आयोग के पास फिलहाल ऐसी फर्ज़ी पार्टियों को लिस्ट से बाहर करने का ही अधिकार है. वो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द नहीं कर सकता. कानून मंत्रालय के पास इस अधिकार के लिए उसकी मांग काफी वक्त से पड़ी है