दिल्ली: देश भर में कोरोना की बीमारी व्यापक है और अब जैसे-जैसे ठंड करीब आ रही है राजधानी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता एक बार फिर खराब हो चली है. पराली जलने से हर साल ही दिल्ली गैस चैम्बर बन जाता है.


कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन में हवा की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार आया था लेकिन उनलॉक के दौर में जहां जीवन सामान्य हो रहा है और लोगों ने बाहर निकलना शुरू किया है तो एक बार फिर से दिल्ली की हवा जहरीली होनी शुरू हो चुकी है. आज से दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रेडेड एक्शन रिस्पांस प्लान (GRAP) भी लागु कर दिया गया है.


जिसके तहत अगले साल 15 मार्च ताक डीजल जनरेटर के इस्तेमाल पर  पाबन्दी रहेगी. दिल्ली के साथ-साथ एनसीआर के शहरी क्षेत्रों में भी डीजल जेनरेटर चलाने पर पाबंदी रहेगी. कोरोना के चलाते इस बार प्रदूषण की समस्या और भी ज़्यादा होगी यानी आम आदमी पर दोहरी मार पड़ेगी. एक्सपर्ट्स का ये भी मानना है के ठंड बढ़ने से और प्रदूषण से कोरोना का खतरा भी बढ़ सकता है.


दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर रसायन युक्त पानी का छिड़काव किया जा रहा


वहीं दिल्ली में खराब हो रही हवा की गुणवत्ता से निपटने के लिए एम. सी. डी प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए दिल्ली के अलग-अलग स्थानों पर रसायन युक्त पानी का छिड़काव किया जा रहा है. पूर्वी दिल्ली के मेयर निर्मल जैन ने इसी पर ज़्यादा जानकारी देते हुए बताया कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम के धूल के कणों को नष्ट करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.


वाटर स्प्रिंकलर के माध्यम से पानी के साथ मिश्रित रसायनो का छिड़काव किया जा रहा है. ये दुस्ट सप्रेसेंट की खासियत ये है के इससे धूल के कण वातावरण से 8-10 घंटे के लिए नष्ट किए जा सकते है. जबकि समान्य पानी के छिड़काव से धूल के कण केवल 20 मिनट के लिए नष्ट होते हैं. अगर बात की जाए पूर्वी दिल्ली की तो यहां पर तीन मुख्य हॉटस्पॉट हैं विवेक विहार,  मंडोली और आनंद विहार है. दिल्ली का आनंद विहार हर साल ही सबसे ज़्यादा प्रदूषण से ग्रस्त रहता है.


दिल्ली का दम ठंड आते ही घुटना शुरू हो जाता है इस बार भी नगर निगम निकाय अपनी तैयारियां शुरू कर चुकें हैं जिससे प्रदुषण को बढ़ने से रोका जा सके. केवल पूर्वी दिल्ली में ही 40 के क़रीब वाटर स्प्रिंकलर का प्रयोग किया जा रहा है इसके साथ ही मिकैनिकल रोड स्वीपर,स्मोग गन और भी कई अभ्यान चलाए जा रहें हैं जिससे प्रदूषण पर क़ाबू पाया जा सके.


हवा में उड़ने वाले धूल के कणों को नष्ट करने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा


पिछले साल भी प्रदूषण पर वाटर स्प्रिंकलर को क़ाबू पाने का प्रयास किया गया था और इस बार भी ऐसी ही कोशिशें हैं. अलग-अलग धूल से प्रभावित क्षेत्रों पर वाटर स्प्रिंकलर के माध्यम से पानी के सतह मिश्रित डस्ट सप्रेसेंट ( मैग्नीशियम क्लोराइड हाइड्रेटेड फ्लेक्स) (1.0%  से 1.5% यानी 900 लीटर पानी  में 50 किलोग्राम की दो बैग) का छिड़काव करा जा रहा है.


नई और आधुनिक तकनीकों के जरिए यह कोशिश की जा रही है कि हवा में उड़ने वाले धूल के कणों को नष्ट कर दिया जाए. प्रदूषण का एक सबसे बड़ा कारण हवा में उड़ने वाले धूल के कण ही होते हैं. जसप्रीत सिंह नाम केवल एक किफायती बल्कि बेहद असरदार तकनीक है. बेस्ट स्पीच इन की लागत कम है यानी 10- 15 पैसे प्रति वर्ग मीटर में का छिड़काव किया जा सकता है और इसके लिए कोई भी विशेष प् प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है. इसका प्रयोग कई सड़कों पर किया जा सकता है और यह वातावरण के लिए भी हानिकारक नहीं है.


साथ ही साथ स्मोग गन से भी धूल के कण निपटाने की कोशिश की जा रही है. अगर बात करें फूल भी दिल्ली की तो यहां पर एमसीडी के पास पांच स्मोग गन हैं. और यह अलग-अलग दिशाओं में जाकर के पानी का छिड़काव भी करती है. पानी के छिड़काव से हवा में बहने वाली धूल के कण नष्ट हो जातें हैं.


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