RSS Chief Dussehra Speech: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में दशहरा के पर्व पर संघ के मुख्य दशहरा दिवस को संबोधित किया. साल 1925 में दशहरे के दिन संघ की स्थापना के बाद से इस दिन को आरएसएस बड़े ही धूम धाम के साथ मनाता है. इस मौके पर पहली ऐसा हुआ कि इस कार्यक्रम में किसी महिला को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया हो. दरअसल, आरएसएस के इस कार्यक्रम में मशहूर पर्वतारोही संतोष यादव को मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया था.
विजयदशमी के त्योहार के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत में कई बातें कहीं लेकिन कुछ बातें ऐसी रहीं जो आकर्षण का केंद्र रहीं. उनमें जनसंख्या नियंत्रण, अपसंख्यकों तक पहुंच और महिला सशक्तिकरण मुख्य रहीं. तो आइए जानते हैं संघ प्रमुख मोहन भागवत के दशहरा भाषण के प्रमुख 5 बिंदु कौन-कौन से रहे.
जनसंख्या नियंत्रण
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि जनसंख्या को लेकर भारत में एक समग्र नीति बननी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को भी इससे छूट नहीं मिले. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजयादशमी उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा, ‘‘जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पंथ आधारित जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती.’’
उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का कारण बनती है, ऐसे में नई जनसंख्या नीति सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए.
अल्पसंख्यकों तक पहुंच
उन्होंने कहा कि संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाए बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आएगा, ऐसी चेतावनी बाबा साहब आंबेडकर ने सभी को दी थी. उन्होंने कहा, ‘‘हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे मित्रों में सभी जातियों एवं आर्थिक समूहों के लोग हों ताकि समाज में और समानता लाई जा सके.’’
सरसंघचालक ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों के बहकावे में न फंसते हुए, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए.
महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण के बारे में बात करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि एक समाज का संतुलन महिलाओं के बिना नहीं हो सकता. उन्होंने कहा स्त्री और पुरुष दोनों के बिना एक समाज का अस्तित्व नहीं हो सकता. ये भारतीय फिलॉसफी है. तो राष्ट्र निर्माण का कार्य पुरुषों और महिलाओं के लिए संगठनात्मक इकाइयों से किया जाता है, लेकिन सभी सामाजिक कार्यों में पुरुष और महिलाएं एक साथ काम करते हैं.
उन्होंने कहा कि जब विदेशी आक्रमणकारी भारत आए तो इन प्रतिबंधों को वैधता मिल गई. हम या उन्हें भगवान के मंदिर में खड़ा कर देते हैं, या फिर उन्हें दोयम दर्जे का बताकर कमरों में बंद कर देते हैं. हमें उन्हें घरेलू और सार्वजनिक क्षेत्र में समान अधिकार देकर उन्हें सक्रिय बनाने की आवश्यकता है.
मातृ भाषा
मोहन भागवत ने कहा कि हमें इस मिथ्या को तोड़ने की जरूरत है कि अच्छे करियर के लिए अंग्रेजी जरूरी है. अगर हम देश के टॉप के लोगों को देखें तो उनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने अपनी मातृ भाषा में ही पढ़ाई की होगी. उन्होंने कहा कि जब तक माता-पिता अपने बच्चों को ये नहीं सिखाएंगे कि उनके जीवन का उद्देश्य पढ़ना है, चाहे वो इसे पसंद करें या नहीं, वो कहां से अच्छे कमा सकते हैं तब तक हमारे पास देश में सभ्य और जिम्मेदार नागरिक नहीं होंगे. वे सिर्फ पैसा कमाने की मशीन बनकर रह जाएंगे.
राष्ट्रीय सुरक्षा
मोहन भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भारत बेहतर और आत्म निर्भर बन रहा है. उन्होंने आत्म निर्भर भारत की अवधारणा का स्वागत भी किया. उन्होंने कहा कि तरक्की का रास्ता इतना सरल और आसान नहीं है. रास्ते में हमें बाधाओं का सामना करना पड़ेगा. पहली बाधा तो हम खुद हैं. हमें अपने मूल्यों को नहीं छोड़ना है बल्कि समय के साथ उनका निर्माण करना है.
भागवत ने कहा कि भारत की प्रगति को रोकने के लिए विरोधी ताकतें हैं जो भाईचारा और सद्भाव नहीं चाहती हैं. जाति, समुदाय और यहां तक कि अपने हितों के नाम पर, वे हमारे शुभचिंतकों के रूप में हमारे पास आते हैं. हमें उनके जाल में नहीं फंसना है... प्रशासन उन्हें निष्प्रभावी करने के लिए जो भी प्रयास करे, हमें उनके साथ खुद को जोड़ना होगा.
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