मंगलवार यानी 7 फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण के कुछ अंश को स्पीकर के आदेश पर संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया है. इस प्रक्रिया को संसदीय भाषा में 'एक्संपज' कहा जाता है. भाषण के उस अंश में राहुल सरकार पर अडानी मुद्दे को लेकर हमला बोल रहे थे. राहुल ने सरकार पर अडानी का नाम लेकर कई आरोप लगाए थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि राहुल गांधी के संसद में दिए गए भाषण के अंश के रिकॉर्ड को कैसे हटाया गया और इसके पीछे क्या नियम हैं.
भाषण के अंश को रिकॉर्ड से हटाने के नियम क्या हैं?
संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत, 'भारत की संसद में कही गई किसी भी बात के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है. आसान भाषा में समझे तो सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब ये भी नहीं है कि सांसदों को संसद में कुछ भी बोलने की छूट मिली हुई है.
सांसदों का भाषण संसद के नियमों के अनुशासन और स्पीकर के नियंत्रण में होता है. स्पीकर सुनिश्चित करते हैं कि सांसद सदन के अंदर "अपमानजनक या असंसदीय भाषा का इस्तेमाल न करें.
लोकसभा में 'प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के रूल 380' के तहत अगर स्पीकर को लगता है कि कोई भी सांसद अपने भाषण में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो मानहानिकारक या असंसदीय हैं. जिसे सार्वजनिक करना जनहित में नहीं है, तो अध्यक्ष अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए भाषण के उस अंश को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दे सकता है. आदेश के बाद ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाता है."
रूल 381 के मुताबिक, सदन की कार्रवाई के दौरान जो भाषण का अंश हटाना होता है, उसे मार्क किया जाएगा और कार्यवाही में एक फुटनोट इस तरह से डाला जाएगा: ‘स्पीकर के आदेश पर इसे हटाया गया.’
असंसदीय शब्द होते क्या हैं?
सदन कार्यवाही के दौरान कुछ नियम और स्टैंडर्ड अपनाती हैं. जिसमें कुछ शब्दों या फ्रेज का इस्तेमाल करना सदन में अनुचित माना जाता है, उन्हें ही असंसदीय भाषा कहते हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार जिन शब्दों को असंसदीय भाषा की श्रेणी में रखा गया है उनमें शकुनि, तानाशाह, तानाशाही, जयचंद, विनाश पुरुष, ख़ालिस्तानी और खून से खेती जैसे कई शब्द शामिल हैं.
जिसका मतलब है कि अगर कोई सांसद भाषण के दौरान इन शब्दों का इस्तेमाल संसद में करता है तो उसे सदन के रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा.
भारत के संसद में असंसदीय शब्दों की पहचान की शुरुआत कब हुई
सदन में असंसदीय शब्दों को रिकॉर्ड से हटा देने की परंपरा लगभग 418 साल पुरानी है. इसकी शुरुआत ब्रिटेन से हुई थी. इंडियन एक्प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंग्लिश, हिंदी और अन्य भाषाओं में ऐसे हजारों शब्द हैं, जो असंसदीय हैं. भारत में असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी सबसे पहले साल 1954 में जारी की गई थी. इसके बाद इसे साल 1986, साल 1992, साल 1999, साल 2004, साल 2009 और 2010 में जारी किया गया. साल 2010 के बाद इसे हर साल जारी किया जाने लगा.
राहुल गांधी के भाषण के इस हिस्से को हटाया गया
संसद में अपने भाषण के दौरान राहुल गांधी ने अपने संबोधन के दौरान कहा, 'अडानीजी और नरेंद्र मोदीजी, धन्यवाद.'
भाषण के दौरान राहुल ने सवाल उठाते हुए कहा था, "और सबसे जरूरी सवाल यह था कि इनका हिंदुस्तान के प्रधानमंत्रीजी के साथ क्या रिश्ता है और कैसा रिश्ता है?
राहुल गांधी ने संदन में एक पुरानी तस्वीर भी दिखाई थी और कहा, 'फोटो देख लीजिए. ये फोटो तो पब्लिक में है." राहुल गांधी के भाषण के इस हिस्से को भी कार्यवाही से हटा दिया गया है.'
सदन के रिकॉर्ड से हटा दिए जाते हैं ये शब्द
'संसद में क्या बोलें' का विवाद पुराना है. पिछले साल जुलाई में संसदीय भाषा संबंधी शब्दों की एक नई सूची जारी की गई थी. इसमें 62 ऐसे शब्द शामिल किए गए थे, जिन्हें असंसदीय करार दिया गया था. इस लिस्ट में 'जुमलाजीवी', 'बाल बुद्धि', 'कोविड स्प्रेडर' (कोरोना फैलाने वाला) और 'स्नूपगेट (जासूसी के संबंध में फोन पर हुई बातचीत को टेप करना)', 'अशेम्ड (शर्मिंदा)', 'अब्यूज्ड (दुर्व्यवहार)', 'बिट्रेड (विश्वासघात)', 'भ्रष्ट', 'ड्रामा (नाटक)', 'हिपोक्रेसी (पाखंड)' और 'इनकंपीटेंट (अक्षम)' जैसे शब्दों को भी असंसदीय करार दिया गया था.
कहा गया था कि अगर बहस के दौरान या अन्यथा दोनों सदनों में इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो इसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा. इसके अलावा 'मर्डर (हत्या)', 'सेक्सुअल असॉल्ट (यौन हमला)', 'नेग्लिजेंस (लापरवाही) जैसे शब्दों का भी उल्लेख सूची में मिलता है.