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Power Crisis: कोयले की कमी पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद, ऊर्जा मंत्री बोले- लोगों को गुमराह कर रही AAP सरकार
Power Crisis: केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री के बयान के बाद एक बार फिर दिल्ली सरकार की तरफ़ से केन्द्र पर इस मुद्दे को नज़र अंदाज़ करने का आरोप लगाया गया है.
Power Crisis: बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति को लेकर केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच विवाद शुरू हो गया है. दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येन्द्र जैन ने बृहस्पतिवार को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह को एक पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने लिखा कि बिजली आपूर्ति करने वाले विभिन्न थर्मल स्टेशनों में इस समय कोयले की बहुत ज्यादा कमी है. नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरशन NTPC के दादरी-II और झज्जर (अरावली), दोनों पॉवर प्लांट्स मुख्य रूप से दिल्ली में बिजली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्थापित किए गए थे. लेकिन इन पॉवर प्लांट्स में कोयले का बहुत कम स्टॉक बचा है.
अलग-अलग पॉवर प्लांट के आँकड़ों की जानकारी देते हुए मंत्री सत्येन्द्र जैन ने बताया था...
1. दादरी- II में एक दिन का स्टॉक बचा है
2. ऊँचाहार में दो दिनों का स्टॉक बचा है
3. कहलगांव में साढ़े तीन दिनों का स्टॉक बचा है
4. फरक्का में 5 दिनों का स्टॉक बचा है
5. झज्जर (अरावली) में 7-8 दिनों का स्टॉक बचा है
दरअसल सत्येन्द्र जैन ने आंकड़े केन्द्र के सामने इसलिये रखे थे ताकि इसको ध्यान में रखते हुये केन्द्र इस पर विचार करे, लेकिन सत्येन्द्र जैन की इस चिट्ठी का जवाब देते हुये केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा कि दिल्ली सरकार लोगों को गुमराह करने का काम कर रही है. आर के सिंह ने अपने जवाबी पत्र में NTPC के संयंत्रों में बिजली के स्टॉक का ब्यौरा देते हुये बताया कि NTPC के दादरी प्लांट में 8.43 दिन, ऊंचाहार प्लांट में 4.60 दिन, कहलगांव प्लांट में 5.31 दिन, फरक्का प्लांट में 8.38 और झज्जर प्लांट में 8.02 दिनों के कोयले का स्टॉक बचा हुआ है.
दिल्ली ने खुद छोड़ी थी बिजली
इतना ही नहीं इन प्लांटों में रोजाना कोयले का स्टॉक धीरे धीरे बढ़ाया भी जा रहा है. केन्द्रीय मंत्री आर के सिंह ने एक और जानकारी देते हुए कहा कि 2015 में दिल्ली सरकार ने ख़ुद ही ये कहते हुए अपने हिस्से की बिजली छोड़ने का फ़ैसला किया था कि उनके पास सरप्लस बिजली थी. अपने फ़ैसले की जानकारी देते हुए दिल्ली सरकार ने केंद्रीय बिजली मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा था. दिल्ली की ओर से छोड़े गए बिजली को 2017, 2018 और 2019 में दूसरे राज्यों के लिए आवंटित किया गया था जिसपर दिल्ली सरकार ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी.
सरकार ने इस मुद्दे को नज़र अंदाज़ किया
केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री के इस बयान के बाद एक बार फिर दिल्ली सरकार की तरफ़ से इस पर बयान सामने आया और केन्द्र पर इस मुद्दे को नज़र अंदाज़ करने का आरोप लगाया. आम आदमी पार्टी के विधायक और मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि ये बहुत ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात है. 2021 में भी जब कोयले की कमी थी तो तब भी केन्द्र सरकार इसे नकारती रही और अंत में उन्होंने माना कि हां क्राइसिस था.
कोयले की कमी को नकार रही सरकार
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि अब जब एक बार फिर कोयले की कमी सामने आयी है तो उसको भी सरकार नकार रही है. जबकि बीजेपी शासित राज्यों में भी बिजली की कमी देखी जा रही है. भूपेन्द्र हुड्डा ने हरियाणा में इसको लेकर मुहिम चलाई है. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि अगर कमी नहीं होती तो हमारे मुख्यमंत्री और मंत्री को क्या ज़रूरत थी इस पर बात करने की.
बिजली नहीं तो दिल्ली में चीजें अव्यवस्थित
जब राज्य सरकारें पैसे देकर बिजली ख़रीदती है तो केन्द्र सरकार के मिस मैनजमेंट की वजह से हमारे राज्य के लोग क्यों परेशानी झेले. अगर बिजली नहीं रहेगी तो दिल्ली में चीजें अव्यवस्थित हो जायेंगी. सौरभ भारद्वाज ने केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री पर तेज कसते हुये कहा कि उनको इस लेवल पर तू-तू, मैं-मैं बिल्कुल नहीं करनी चाहिये थी, उनको अपना समय इस व्यवस्था को सुधारने में लगाना चाहिये.
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