Sharad Pawar Vs Ajit Pawar: महाराष्ट्र में शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में सब ठीक नहीं चल रहा है. महाराष्ट्र की राजनीति में हर कुछ महीने पर अजित पवार के बारे में खबर आ ही जाती है कि वे साइड बदलने वाले हैं. एक बार फिर ये सुर्खियां हैं कि वे चाचा शरद पवार से उनके रिश्ते तनाव में हैं और वे अपने लिए नई संभावना तलाश रहे हैं. अजित पवार के लिए शरद पवार राजनीतिक गुरु रहे हैं. उनके साथ राजनीति की सीढ़ियां चढ़ी हैं, कभी उन्हें पवार का उत्तराधिकारी समझा जाता था. तो ऐसा क्या हुआ जो अजित पवार बागी बनते नजर आने लगे हैं.


एनसीपी में चाचा-भतीजे की खींचतान खुलकर 2019 में सामने आई, जब अजित पवार ने बिना चाचा की सहमति के देवेंद्र फडणवीस के साथ जाकर सहमति ले ली. हालांकि, राजनीति के हैवीवेट चाचा भारी पड़े और भतीजे को वापस आना पड़ा. 


15 साल पहले पड़े थे दरार के बीज


चाचा-भतीजे के बीच दांव-पेच हाल के दिनों में ज्यादा नजर आने लगे हैं लेकिन इसके बीज पहल बार 15 साल पहले पड़े थे. साल था 2008. अशोक चव्हाण के नेतृत्व में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी. सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद एनसीपी के हिस्से में आया तो शरद पवार ने छगन भुजबल की ताजपोशी करा दी. अजित पवार को ठगा सा महसूस हुआ. वे खुद को पवार का सबसे करीबी समझ रहे थे. लगा जैसे हक मार लिया गया हो.


दो साल बाद जब आदर्श सोसायटी घोटाले के चलते अशोक चव्हाण को कुर्सी छोड़नी पड़ी तो अजित पवार को लगा कि इस बार वह सीएम बन सकते हैं. लेकिन चाचा ने एक बार फिर कांग्रेस की तरफ कुर्सी खिसका दी और पृथ्वीराज चव्हाण सीएम बने.


शरद पवार ने बढ़ाया तो लेकिन संभलकर


अजित पवार को चाचा शरद पवार ही राजनीति में लाए थे. जैसे-जैसे अजित पवार का कद बढ़ा, शरद पवार उनका हौसला बढ़ाते रहे लेकिन समर्थन को एक सीमा से ज्यादा भी नहीं जाने दिया. यही नहीं सीनियर पवार ने छगन भुजबल, जयंत पाटिल और आरआर पाटिल जैसे नेताओं को भी बढ़ाया ताकि नंबर दो के लिए कई दावेदार रहें.


बेटे पार्थ को आगे लाना चाहते हैं अजित


अजित पवार अपने बेटे पार्थ को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं. 2019 में जब लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए शरद पवार का मन नहीं था लेकिन अजित पवार के चलते उन्होंने हां कर दी. पार्थ को मावल से टिकट मिला लेकिन वह 2 लाख से ज्यादा वोट से हार गए. शरद पवार को लगा कि अजित की जिद के चलते पार्टी की प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ है. वहीं, अजित पवार को ये लगता रहा कि पार्टी ने उनके बेटे के लिए मेहनत नहीं की.


अजित को इस बात का भी मलाल रहता है कि पार्टी ने ईडी की कार्रवाई में उनका उस तरह साथ नहीं दिया जैसा कभी शरद पवार को दिया था.


सुप्रिया सुले और अजित के रिश्ते


साल 2029 में अजित पवार ने अचानक बारामती विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया तो चीजें साफ हो गईं कि कुछ ठीक नहीं चल रहा. खुले विद्रोह को सीनियर पवार ने यह कहकर घुमाने की कोशिश की कि यह अजित का अपने चाचा के खिलाफ ईडी की जांच को लेकर नाराजगी जताने का तरीका है.


राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि सुप्रिया सुले के हाल के दिनों में ज्यादा आगे आने से भी अजित पवार असहज महसूस कर रहे हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि वह किनारे किए जा रहे हैं. हालांकि, दोनों के बीच सार्वजनिक तौर पर हमेशा अच्छे रिश्ते नजर आए हैं लेकिन राजनीति में जो होता है वो कभी-कभी दिखता नहीं है.


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