जज़्बे को सलाम: 80 फीसदी आंखों की रौशनी खोने से लेकर IIM तक की सीढ़ी चढ़ने वाली प्राची की कहानी
नई दिल्ली: कहा जाता है कि जिन्हें खुद पर भरोसा होता है और जो मेहनत को अपना हथियार बना लेते हैं, वे अपने जीवन में वह सब कुछ हासिल कर लेते हैं जो वह चाहते हैं. मेहनत और जुनून के दम पर इंसान बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार कर जाता है और सफलता उसके कदम चूमती है.
21 साल की प्राची सुखवानी की कहानी भी कुछ इस तरह की ही है. धीरे-धीरे अपनी आंखों की रौशनी खो रही प्राची का सपना था कि वह देश के सबसे टॉप मैनेजमेंट इंस्टीट्युट आईआईएम अहमदाबाद में दाखिला ले. लेकिन वह एक ऐसी लाइलाज बीमारी से जूझ रही थीं जिसकी वजह से उनकी आंखों की रौशनी धीरे-धीरे खत्म होती चली जा रही थी. इसके बाबजूद भी प्राची ने हिम्मत नहीं हारी, अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने मेहनत करनी जारी रखी और जिसका परिणाम यह निकला की देश के तीन टॉप मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट आईआईएम अहमदाबाद, आईआईएम बेंगलुरू और आईआईएम कोलकाता ने प्राची से संपर्क किया है. अब प्राची ने इंटरव्यू दे दिया है.
महाराज सायाजिरो यूनिवर्सिटी की छात्रा प्राची ने कैट (कॉमन एप्लिट्यूड टेस्ट) का इक्जाम पास कर इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब हुई. बीमारी से जूझने के बावजूद भी साल 2016 की कैट परीक्षा में प्राची ने 98.55 पर्सेंटाइल अंक हासिल किए.
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक प्राची ने अपनी आंखों की 80 फीसदी रौशनी खो दी है. वह मसक्युलर डिसट्रॉफी से पीड़ित हैं और इस बीमारी का कोई इलाज भी उपलब्ध नहीं है. जब प्राची तीसरी क्लास की छात्रा थीं तभी से उन्हें यह बीमारी है.
हौसले की मिसाल प्राची का एक और सपना है कि वह दृष्टीहीन लोगों के लिए एक एनजीओ खोलें. प्राची के पिता एक कपड़े की दूकान चलाते हैं और उनकी मां एलआईसी एजेंट के तौर पर काम करती हैं.
प्राची के अब तक के सफर की यह कहानी मौजूदा दौर के युवाओं के लिए प्रेरणा का विषय है.