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जम्मू- कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का परिवार दशकों से राजनीति कर रहा है. शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूक अब्दुल्ला और पोते, उमर अब्दुल्ला जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे. शेख अबदुल्ला ने 1931 में जम्मू- कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का गठन किया और इस पार्टी के पहले अध्यक्ष चुने गए. साल 1938 में उन्होंने अपनी पार्टी का नाम बदलकर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर लिया. नेशनल कॉन्फ्रेंस आज के जम्मू- कश्मीर में बड़ी राजनीतिक पार्टी है.
आजादी से पहले जम्मू- कश्मीर में लगभग 77 फीसद जनता मुस्लिम थी और वहां के राजा हिंदू थे. शेख अब्दुल्ला की राजनीति जम्मू- कश्मीर में महाराजा हरि सिंह यानि राजशाही के खिलाफ थी. 1941 में शेख अब्दुल्ला ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को ऑल इंडिया स्टेट्स पीपल्स कॉन्फ्रेंस में शामिल हो गई. ये संस्था रियासतों में राजशाही के खिलाफ लड़ाई लड़ रही थी. जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस पार्टी का ये मानना था कि राजा महाराजा और नवाबों को अपनी रियासत के लोगों के भविष्य के बारे में फैसला करने का अधिकार नहीं है, आखिरी फैसला जनता करेगी. जबकि मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने साफ कहा था कि फैसला नवाबों और राजाओं को ही करना था क्योंकि ब्रिटेन के साथ संधि -समझौते इन्हीं लोगों ने कर रखे थे.
साल 1944 की गर्मियों में मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर आए. उन्होंने शेख अबदुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस को गुंडों की जमात कहा. शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना पर पलटवार करते हए कहा ‘इस जमीन की जो गुरबत है जो परेशानी है उसका इलाज तभी मुमकिन है जब हिंदू, मुस्लिम और सिख साथ खड़े हों’. शेख अब्दुल्ला का मतलब साफ था, वो मोहम्मद अली जिन्ना को और उनकी राजनीति को किसी भी हाल में समर्थन देने को तैयार नहीं थे.
साल 1946 में शेख अब्दुल्ला ने जम्मू- कश्मीर में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन चलाया. महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को जेल मे डाल दिया. अपने दोस्त को जेल से छुड़ाने के लिए खुद पंडित नेहरू कश्मीर के लिए रवाना हुए. महाराजा हरि सिंह ने पंडित नेहरू के कश्मीर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. पंडित नेहरू ने जब कश्मीर में दाखिल होने की कोशिश की तो महाराजा हरि सिंह ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दे दिए.
जम्मू- कश्मीर रियासत ने 15 अगस्त 1947 तक फैसला नहीं किया था कि वो भारत या पाकिस्तान किस डोमिनियन के साथ विलय करेगी. सरदार पटेल के करीबी मेहरचंद महाजन को महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत का प्रधानमंत्री नियुक्त किया. आगे चलकर जस्टिस मेहर चंद महाजन, भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी बने. 19 सितंबर 1947 को जम्मू- कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन की दिल्ली मे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से एक अहम मुलाकात हुई. इस मुलाकात में पंडित नेहरू ने कहा ‘भारत में विलय से पहले प्रशासन में बदलाव जरूरी है और शेख अब्दुल्ला को जेल से रिहा किया जाए.’’
इस मुलाकात में मेहरचंद महाजन जम्मू- कश्मीर के भारत में विलय की बात कर रहे थे जबकि पंडित नेहरू पहले प्रशासन में आंतरिक बदलाव और शेख अब्दुल्ला की रिहाई की बात कर रहे थे. दूसरी तरफ जम्मू- कश्मीर में स्थिति लगातार खराब हो रही थी. पाकिस्तान ने जम्मू- कश्मीर को अपनी तरफ से मिलने वाली रसद की सप्लाई काट दी थी और हमले की तैयारी में लगा हुआ था.
27 सितंबर 1947 को पंडित नेहरू ने एक और अहम चिठ्ठी सरदार वल्लभ भाई पटेल को लिखी. इस चिठ्ठी में भी उन्होंने कहा कि शेख अब्दुल्ला की मदद से जम्मू- कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया जाए. पंडित नेहरू ने इस बात पर जोर दिया कि पहले शेख अब्दुल्ला की जेल से रिहाई करवाई जाए. हिमाचल सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर कुलदीप चंद अग्निहोत्री का कहना है, ‘’मैं जब उस पत्र को पढ़ रहा था तो मैंने सोचा कि पंडित नेहरू ने बड़ा जोर से कहा होगा कि महाराजा हरि सिंह को भारत के संविधान का हिस्सा बन जाना चाहिए, उसमें वो पूरी डिटेल देते हैं कि साहब आगे सर्दियां शुरू हो जाएंगी. वहां बर्फ पड जाएगी, वहां सेना भेजना मुश्किल हो जाएगा, रास्ते बंद हो जाएंगे. इसलिए सरदार पटेल को वो कह रहे हैं कि महाराजा हरि सिंह पर प्रभाव का प्रयोग करके उन्हें कहिए कि शेख अब्दुल्ला को रिहा कर दे. भारत सरकार उन्हें शेख अब्दुल्ला को रिहा करने पर जोर दे रहा है, भारत के संविधान का हिस्सा बनने को नहीं कह रहा है.’’
यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि पंडित नेहरू ऐसा क्यों कर रहे थे ? इसका जवाब ‘पंजाब यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर आशुतोष कुमार देते हैं वे कहते हैं ‘’पंडित नेहरू के दिमाग में कहीं ना कहीं ये है कि शेख अबदुल्ला, कश्मीरी आवाम का नेतृत्व करते हैं, कश्मीरी आवाम के वो पॉपुलर लीडर हैं, शेख अब्दुल्ला को रिहा किया जाए उन्हें प्रस्थापित किया जाए और पूरी दुनिया में संदेश जाए कि जो ये फैसला हुआ है ये कश्मीर की आवाम की सहमति के हुआ है’’ आशुतोष आगे बताते हैं कि ऐसा करने से जिन्ना को जवाब देना था ‘’ कि जिन्ना ने जो ‘टू- नेशन’ थ्योरी बनाई, हमारी कश्मीर की जनता जो मुस्लिम है, वो आवाम भारत के साथ है. जो कश्मीर का पॉपुलर लीडर है शेख अब्दुल्ला वो भारत की बात करता है’’
हिमाचल सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर कुलदीप चंद अग्निहोत्री इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ''पंडित नेहरू को चमत्कार करके दिखाना था, जिन्ना को उत्तर देना था. जिस मरहले पर पंडित जवाहरलाल नेहरू खुद आत्मसमर्पण कर गए उस अपराधबोध से बचने के लिए पंडित जी ने शेख अब्दुल्ला का सहारा लेकर उसका उत्तर देने की कोशिश की. सहारा तो लिया और उत्तर भी थोड़ा बहुत दिया लेकिन पंडित जी के इस उत्तर ने आज तक जम्मू- कश्मीर में अशांति पैदा कर रखी है’’ शेख अब्दुल्ला की राजनीति और नेहरू की कश्मीर नीति को विस्तार से जानने समझने के लिए न्यूज टेलीविजन इतिहास की सबसे बड़ी सीरीज प्रधानमंत्री 2 के पहले एपिसोड़ को देखें। 1 फरवरी 2020, रात 10 बजे प्रसारित होने वाला प्रधानमंत्री सीरीज का दूसरा एपिसोड जम्मू- कश्मीर और उसके किरदारों पर अधिक रोशनी डालेगा.