नागपुर में प्रणब मुखर्जी बोले- नफरत से पहचान को खतरा, कांग्रेस ने कहा- RSS की आंख और आत्मा से मकड़जाल हटाया
आरएसएस के कार्यक्रम से पहले प्रणब मुखर्जी संघ संस्थापक डॉ. केश बलिराम हेडगेवार के पुश्तैनी घर भी गए. उन्होंने यहां विजिटर बुक में लिखा कि मैं भारत माता की महान संतान को श्रद्धांजलि देने आया हूं.
नागपुर: कई दिन से चल रहे विवाद के बीच नागपुर में आज वैचारिक और राजनीतिक तौर पर दो ध्रुव एक मंच पर आए. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के तृतीय शिक्षा वर्ग कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के मंच से आरएसएस को ही राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा कि ''मैं आज यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर बोलने आया हूं.'' आगे उन्होंने कहा कि ''विविधिता और सहिष्णुता में भारत बसता है, नफरत और भेदभाव से हमारी पहचान को खतरा है. 50 सालों में मैंने सार्वजनिक जीवन में जो सीखा है वही बता रहा हूं.''
वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ''किसी आरएसएस लोकतांत्रिक विचारों वाला संगठन है, संघ सबको जोड़ने वाला संगठन है. संगठित समाज देश बदल सकता है. राष्ट्र का भाग्य बनाने वाले व्यक्ति, विचार, सरकारें नहीं होते. सरकारें बहुत कुछ कर सकती हैं लेकिन सबकुछ नहीं कर सकती हैं.'' प्रणब मुखर्जी के आरएसएस कार्यक्रम में आने को लेकर चल रहे विवाद पर मोहन भागवत ने कहा, ''प्रणब मुखर्जी जी को हमने निमंत्रण दिया और उन्होंने स्वीकार किया. संघ संघ है और प्रणब मुखर्जी प्रणब मुखर्जी हैं और रहेंगे.''
RSS कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण की मुख्य बातें
राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की बात करने आया हूं अपने भाषण की शुरुआत करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की बात करने आया हूं.'' उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:..’ जैसे विचारों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का मिलाप हुआ है. घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है. भेदभाव और नफरत करेंगे तो पहचान को खतरा प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''1800 साल तक भारत दुनिया में शिक्षा का केंद्र रहा. भारत पहले से खुला हुआ देश है, भारत का राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम से प्रभावित है. विविधिता में एकता ने ही भारत को खास बनाती है. भारत से ही दुनिया के देशों में बौध धर्म की पहुंच हुई. अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे तो पहचान को खतरा है.'' पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''प्राचीन काल में बहुत से विदेशी यात्रियों ने भारत की तारीफ की है.''
विविधिता और सहिष्णुता में ही भारत बसता है मुखर्जी ने कहा, ''अलग रंग भाषा, धर्म भारत की पहचान है. राष्ट्रवाद किसी धर्म, भाषा और जाति से नहीं बंधा है. पहले मुगलों ने देश पर कब्जा किया फिर अंग्रेजों ने और उसके बाद दुनिया भर के शाषकों के राज करने के बाद भी हमारी संस्कृति सुरक्षित है.'' नेहरू के हवाले से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलकर देश बनाते हैं. उन्होंने कहा, ''संविधान से राष्ट्रवाद की भावना बहती है, सिर्फ एक धर्म, एक भाषा भारत की पहचान नहीं है. विविधता और सहिष्णुता में ही भारत बसता है, 50 सालों में मैंने सार्वजनिक जीवन में जो सीखा है वही बता रहा हूं.''
लोगों की खुशहाली में राजा की खुशहाली है मुखर्जी ने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है. उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि कौटिल्य ने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा. मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा.
7 धर्म, 122 भाषाएं, 1600 बोलियों के बावजूद 130 करोड़ भारतीयों की पहचान एक है उन्होंने कहा, ''विचारों में समानता के लिए डायलॉग जरूर है. भारत में सात धर्म, 122 भाषाएं और 1600 बोलियां हैं, इसके बावजूद 130 करोड़ भारतीयों की पहचान एक है. आज गुस्सा बढ़ रहा है, हर दिन हिंसा की खबरें आ रही हैं. हिंसा, गुस्सा छोड़कर हम शांति के रास्ते पर चलना चाहिए. बातचीत से हर समस्या का समाधान संभव है. आर्थिक प्रगति के बाद भी खुशहाली में भारत पीछे है.'' पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ''जनता की खुशी में ही राजा की खुशी होनी चाहिए, हर तरह की हिंसा से हमारे समाज को बचने की जरूरत है चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक.''
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भाषण की मुख्य बातें
संघ, संघ है, प्रणव, प्रणव हैं और रहेंगे भागवत ने कहा, "हर कोई इस देश में प्रणब मुखर्जी के व्यक्तित्व को जानता है. हम आभारी हैं कि हमें उनसे कुछ सीखने को मिला. कैसे प्रणब जी को बुलाया गया और कैसे वह यहां आए, यह बहस का मुद्दा नहीं है. संघ, संघ है, प्रणब, प्रणब हैं. प्रणब मुखर्जी के इस समारोह में शामिल होने पर कई तरह की बहस चल रही है, लेकिन हम किसी को भी अपने से अलग नहीं समझते हैं."
संघ डेमोक्रेटिक माइंड वाला संगठन है डॉक्टर भागवत ने कहा, ''संघ डेमोक्रेटिक माइंड वाला संगठन है. राष्ट्र का भविष्य आम नागरिकों पर निर्भर करता है. जब नागरिक अपनी आकांक्षाओं को किनारे रखने के लिए इच्छुक होंगे तभी एक देश बेहतरी के लिए बदलेगा." उन्होंने कहा, ''हमें खुद से अपनी भूमिका तय करने की जरूरत है. केवल इससे ही देश में बदलाव आ सकता है. स्वतंत्रता के पहले, सभी इस बात से सहमत थे कि हम मिलकर देश के लिए काम करेंगे. राजनीतिक मतभेद अब हमें बांट रहे हैं.''
भारत में जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र है भागवत ने कहा, "संघ केवल पूरे समाज को संगठित करना चाहता है. हम सभी को अपनाते हैं, हम केवल समाज के एक धड़े के लिए नहीं हैं. आरएसएस विविधता में एकता पर विश्वास करता है. भारत की धरती पर जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र है. मातृभूमि की पूजा करना उसका अधिकार है. हम भारतीय एक व संगठित हैं." आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत के पास प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन है और इसलिए यहां जीने के लिए कभी किसी से लड़ने की जरूरत नहीं हुई. भारत ने बाहर से आने वाले सभी लोगों को रहने दिया है. कई महान लोगों ने इस देश के लिए अपना जीवन दिया.
उन्होंने कहा, "कई बार हममें मतभेद होते हैं लेकिन हम एक ही मिट्टी, भारत की संतान हैं. विविधता को स्वीकार किया जाना चाहिए, यह अच्छा है. हम सभी इस विविधता के बावजूद एक हैं. सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती, नागरिकों को भी योगदान देना होगा. इसके बाद ही देश में बदलाव हो सकता है." भागवत ने कहा, "सभी को राजनीतिक विचार रखने का अधिकार है लेकिन विचारों का विरोध करने की एक सीमा होनी चाहिए. हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि हम एक ही देश के बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं लेकिन कुछ समूह केवल बात करने से अधिक का लक्ष्य रखते हैं. सरकारें बहुत कुछ कर सकती है लेकिन सब कुछ नहीं कर सकती है."
देश की आजादी के लिए हेडगेवार जेल गए संघ प्रमुख ने कहा कि ''स्वतंत्रता से पहले सभी विचारधाराओं वाले महापुरुषों स्वतंत्रता की चिंता थी. डॉ. हेडगेवार सभी कार्यों में सक्रिय कार्यकर्ता थे, उनको अपने लिए करने की कोई इच्छा नहीं थी, वे सब कार्यों में रहे. कांग्रेस के आंदोलन में दो बार जेल गए, उसके कार्यकर्ता भी रहे. समाजसुधार के काम में सुधारकों के साथ रहे. धर्म संस्कृति के संरक्षण में संतों के साथ रहे.'' RSS की आंख और आत्मा से मकड़जाल हटाया :मुखर्जी के भाषण पर कांग्रेस कांग्रेस ने आरएसएस मुख्यालय पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण का स्वागत किया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजे वाला ने कहा, ''प्रणब मुखर्जी जी ने भारत के गौरव शाली इतिहास का पाठ आरएसएस के मंच से आरएसएस को पढ़ाने का काम किया है. आरएसएस की आंख और आत्मा पर पड़े मकड़जाल को उतारने का काम भी किया.''
सुरजेवाला ने कहा, ''प्रणब मुखर्जी जी ने सच का आईना दिखाते हुए RSS और देश को बताया कि भारत विविधता और अहिंसा में जीता है.'' उन्होंने कहा, ''प्रणब मुखर्जी जी ने मोदी सरकार को भी राजधर्म की याद दिलाई. उन्होंने बताया कि शासक की खुशी केबल जनता की खुशी है. एक छत्रवाद और अतिवाद किसी बात का हल नहीं हो सकता.'' प्रणब मुखर्जी के RSS कार्यक्रम में जाने पर क्या विवाद था? प्रणब मुखर्जी के आरएसएस कार्यक्रम का न्योता स्वीकार करते ही विवाद की शुरू हो गया था. कांग्रेस के करीब तीस नेताओं चिट्ठी लिखकर प्रणब मुखर्जी से संघ के कार्यक्रम में ना जाने की अपील की थी. इनमें पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और पूर्व रेल मंत्री सीके जाफर ने दस्तखत किए थे. कल प्रणब मुखर्जी की बेटी ने भी उन्हें नसीहत देते हुए कहा था कि भाषण बुला दिया जाएगा, तस्वीरों को गलत तरीके से पेश किया जाएगा. सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमत पटेल ने कहा कि आपसे (प्रणब मुखर्जी) से ऐसी उम्मीद नहीं थी.