हेडगेवार को महान सपूत बता गांधी-नेहरू के राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया- पढ़े प्रणब के भाषण की 10 खास बातें
प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के मंच से कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय और हिंसा, भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक , से मुक्त करना होगा.
नागपुर: राष्ट्रवाद, देशभक्ति, सहिष्णुता, विविधता पर एक बार फिर नए सिरे से बहस शुरू हो चुकी है. इस बार बहस को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जन्म दिया है. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुरूप देशभक्ति ही असली राष्ट्रवाद है. मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा. उन्होंने कहा कि कई लोगों ने सैकड़ों वर्षों तक भारत पर शासन किया, फिर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर शासन किया. बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी आई फिर भी हमारी संस्कृति सुरक्षित रही. प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषणों में कौटिल्य से लेकर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल तक का जिक्र किया और इसी बहाने आरएसएस को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाया.
1. हिंसा बढ़ी: 83 वर्षीय प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के मंच से कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय और हिंसा, भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक, से मुक्त करना होगा. प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं. इस हिंसा के मूल में भय, अविश्वास और अंधकार है.
2. आत्मा बहुलतावाद में बसती है: मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमजोर होगी. उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद, सह अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है. उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है. ‘‘भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है.’’
3. संविधान से राष्ट्रभक्ति: पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ''भारत का संविधान करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है. हमारा राष्ट्रवाद हमारे संविधान में निहित है.''
4. नेहरूवाद का जिक्र: पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में कहा था कि भारतीय राष्ट्रवाद में हर तरह की विविधता के लिए जगह है. भारत के राष्ट्रवाद में सारे लोग समाहित हैं. इसमें जाति, मजहब, नस्ल और भाषा के आधार पर कोई भेद नहीं है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र , भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है.
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5. सबका झंडा एक: प्रणब मुखर्जी ने कहा कि 'भारत की राष्ट्रीयता एक भाषा और एक धर्म में नहीं है. उन्होंने कहा, "यह 1.3 अरब लोगों के शाश्वत एक सार्वभौमिकतावाद है जो अपने दैनिक जीवन में 122 भाषाओं और 1,600 बोलियों का इस्तेमाल करते हैं. वे सात प्रमुख धर्मो का पालन करते हैं और तीन प्रमुख नस्लों से आते हैं, मगर वे एक व्यवस्था से जुड़े हैं और उनका एक झंडा है. साथ ही भारतीयता उनकी एक पहचान है और उनका कोई शत्रु नहीं है. यही भारत को विविधता में एकता की पहचान दिलाता है."
6. वसुधैव कुटुंबकम: प्रणब मुखर्जी ने कहा कि 17वीं सदी में वेस्टफेलिया के समझौते के बाद अस्तित्व में आए यूरोपीय राज्यों से भी प्राचीन हमारा राष्ट्रवाद है. यूरोपीय विचारों से अलग भारत का राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है और हमने पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में देखा है. मुखर्जी ने कहा कि हमारे देश की राष्ट्रीय पहचान किसी खास धर्म, भाषा या संस्कृति से नहीं हो सकती.
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7. कौटिल्य को किया याद: प्रणब मुखर्जी ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता और खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था. मुखर्जी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन नागरिकों को खुशी नहीं मिल रही है. हम हैपीनेस रैंकिंग में 133वें नंबर पर हैं. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि संसद में जाएंगे तो गेट नंबर 6 पर लिफ्ट के ऊपर संस्कृत में एक श्लोक लिखा है. उन्होंने कौटिल्य के श्लोक 'प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम, नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम' का जिक्र करते हुए कहा कि प्रजा के हित और सुख में भी राजा का सुख निहित है.
8. हेडगेवार महान सपूत: इससे पहले मुखर्जी जब संघ मुख्यालय आये तो उन्होंने संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को ‘भारत माता का महान सपूत’ बताया. हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की थी. मुखर्जी ने अपने संबोधन से पहले संघ की आगंतुक पुस्तिका में लिखा , ‘‘ मैं भारत माता के एक महान सपूत के प्रति अपनी श्रद्धा एवं सम्मान व्यक्त करने यहां आया हूं.’’
9. भागवत का बचाव: पूर्व राष्ट्रपति के संबोधन से पहले संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस के कार्यक्रम में मुखर्जी के भाग लेने को लेकर छिड़ी बहस ‘ निरर्थक ’ है. भागवत ने कहा कि इस कार्यक्रम के बाद भी मुखर्जी वही रहेंगे जो वह हैं और संघ वही रहेगा जो वह है. उन्होंने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई बाहरी नहीं है.
10. कांग्रेस का बदला मूड: कांग्रेस के कई नेता प्रणब के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने से नाखुश थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा था कि ‘प्रणब दा’ से ऐसी उम्मीद नहीं थी. हालांकि प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रवाद पर विचार के बाद से पार्टी काफी खुश नजर आ रही है.
11. गांधी का राष्ट्रवाद: प्रणब दा ने कहा कि गांधी का राष्ट्रवाद न संकीर्ण था न आक्रामक और न ही विनाशकारी.
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