(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'प्रणब का भाषण उच्च-वर्णीय हिंदू भारत का उद्घोष, रविदास, कबीर, नानक का जिक्र नहीं'
रामचंद्र गुहा ने कहा कि मोहन भागवत के राष्ट्रवाद की संकीर्ण समझ को प्रणब मुखर्जी ने अपने व्यापक विचार के जरिए आईना दिखाया. उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने भागवत को बताया कि आखिर भारतीयता का असली मतलब क्या है.
नई दिल्ली: नागपुर में आरएसएस के शिविर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संबोधन पर प्रतिक्रयाओं का दौरा जारी है. राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ-साथ बुद्धजीवियों और पत्रकारों ने भी मुखर्जी के भाषण पर अपनी राय व्यक्त की है. जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय(जेएनयू) के प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा कि प्रणब मुखर्जी का भाषण एक उच्च-वर्णीय हिंदू भारत के उद्घोष से ज्यादा कुछ नहीं था. उन्होंने कहा, "प्रणब मुखर्जी ने यह नहीं बताया कि इस्लाम भारत में विशेषकर तीन लहरों मे आया. पहला- व्यापारियों के साथ, दूसरा सूफियों के साथ और तीसरा आक्रांताओं के साथ. मुखर्जी ने केवल तीसरी लहर का जिक्र किया और अन्य दो लहरों को भुला दिया. भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति को बनाने में इन दोनों लहरों का खासा योगदान है जो आज भी विद्यमान हैं. परन्तु प्रणब जी इन्हे भूल गए."
विवेक कुमार ने प्रणब मुखर्जी को अपने भाषण में कई संतों, समुदायों, सामाजिक समूहों और व्यक्तियों का जिक्र किए बगैर देश का इतिहास बताने को लेकर आलोचना की है. उन्होंने कहा, प्रणब मुखर्जी ने मध्यकाल को पूरा नजरअंदाज कर दिया. न तो रविदास, ना कबीर, ना दादू, चोखमेला, यहां तक नानक का भी जिक्र नही था. उन्होने भारत को गंगा-जमुनी तहजीब का पुंज तो जरूर बताया. लेकिन यह गंगा-जमुनी तहजीब कैसे बनी, इसका उन्होने एक बार भी जिक्र नहीं किया. क्या यह गंगा-जमुनी तहजीब भारत की 450 से अधिक जन-जातियों (जिनकी आबादी 8.5% है), 1200 दलितों जातियों (जिनकी संख्या लगभग 18%), 3743 अति-पिछड़ी जातियां (जिनकी आबादी लगभग 52% है) और लगभग 15 प्रतिशत धर्मांतरित अप्ल्संख्यकों के योगदान के बगैर बन सकती है?"
कुमार ने यह भी कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश और किसानों के योगदान के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती. लेकिन मुखर्जी ने अपने भाषण में इस बात का भी जिक्र नहीं किया. उन्होंने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने दलित विद्वान जैसे कि अंबेडकर, ज्योतिबा फूले, पेरियार जैसे लोगों का नाम तक लेना भी जरूरी नहीं समझा. भारत की संस्कृति एवं सभ्यता के निर्माण में भारतीय महिलाओं का क्या योगदान है, उन्होने इसका भी जिक्र नहीं किया.
Mohan Bhagwat’s unitary and homogenising nationalism has been shamed by Pranab Mukherjee’s catholic and broad-minded understanding of what it means to be an Indian. Mukherjee dwells on the significance of our Constitution, a document Bhagwat would not or could not mention.
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) June 7, 2018
वहीं इतिहासकार और "भारत गांधी के बाद" जैसी चर्चित किताब के लेखक रामचंद्र गुहा ने भी मुखर्जी के भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि मोहन भागवत के राष्ट्रवाद की संकीर्ण समझ को प्रणब मुखर्जी ने अपने व्यापक विचार के जरिए आईना दिखाया. उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने भागवत को बताया कि भारतीयता का असली मतलब क्या है. गुहा ने कहा कि मुखर्जी ने संघ के मंच से सविधान की महत्ता पर जोर दिया जिसका जिक्र मोहन भागवत नहीं कर सकते हैं.
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने प्रणब मुखर्जी के भाषण को आरएसएस की जीत बताया है. उन्होंने कहा कि ये बेहद हास्यास्पद है कि कई लोगों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में कहा कि भारत 1947 से पहले ही एक राष्ट्र और सभ्यता थी. संघ हमेशा से इसी बात को कहता आ रहा है. वहीं मधु किश्वर ने ट्वीट कर कहा कि मुखर्जी ने आरएसएस संस्थापक हेडगेवार को भारत माता का महान सपूत बताया है. ये कांग्रेस के लिए बुरी खबर है.
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने प्रणब मुखर्जी के भाषण का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, "प्रणब मुखर्जी का भाषण मुझे ठीक लगा. संघ के मंच से संघ को संविधान, सहिष्णुता, वास्तविक देशभक्ति, राष्ट्रवाद आदि की ज़िम्मेदारियों का पाठ पढ़ा आए. वह भी नेहरू सिला देते हुए. कांग्रेसी यों ही आसमान सर पर उठाए हुए थे." वहीं पत्रकार अजीत अंजुम ने कहा कि मुखर्जी का भाषण ऐसा था कि लेफ्ट, राइट और सेंटर सभी धड़ों के लोग खुश हैं. उन्होंने कहा, "नागपुर में प्रणव मुखर्जी के भाषण की व्याख्या हर पार्टी अपने हिसाब से करने में जुटी है. लेफ़्ट भी खुश. राइट भी खुश. सेंटर भी खुश. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उन्होंने हमारी नीतियों के हिसाब से बातें की. बीजेपी कह रही है कि राष्ट्र की हमारी अवधारणा पर उनकी मुहर लगी. लेफ़्ट भी खुशी जाहिर कर रहा है "