नई दिल्लीः खबरें थी कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब पर्दे के पीछे से नहीं बल्कि खुले तौर पर राजनीति में उतरने वाले हैं. हालांकि हैदराबाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रशांत किशोर ने साफ कर दिया है कि वो किसी पार्टी में शामिल होने नहीं जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं कि मैं इस पार्टी में जा रहा हूं या इस पार्टी के साथ काम करने जा रहा हूं, फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है.


इस मौके पर प्रशांत किशोर ने कहा कि जब 2014 के बाद उनसे पूछा गया कि उन्होंने बीजेपी का साथ क्यों छोड़ा ? क्या नीतीश कुमार ने उन्हें बेहद बड़ी धनराशि का ऑफर दिया था तो इसके जबाव में प्रशांत किशोर ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं था. उन्हें संस्थान पसंद आया तो उसके लिए उन्होंने काम किया, इसके पीछे पैसा तो वजह बिलकुल नहीं था. मैं बीजेपी से अलग इसलिए हो गया क्योंकि मैं कुछ कामों को करने के लिए बेहद जल्दी में था लेकिन पीएम मोदी कामों को अलग तरीके से करना चाहते थे. इन्हीं विचारों की भिन्नता के चलते  मैंने अलग रास्ता चुना और इसके बाद मुझे नीतीश कुमार से बेहतर और कोई नहीं लगा क्योंकि उनकी भी अपनी एक सोच है जो मेरी सोच से मिलती थी.

प्रशांत किशोर ने इस मौके पर पीएम मोदी की तारीफ भी की और कहा कि वो हमेशा आइडिया को अच्छे से सुनते हैं और उसका स्वागत करते हैं.

इसके बाद उन्होंने 2017 के यूपी चुनाव को लेकर भी बात की और कहा कि राहुल गांधी के साथ उन्होंने कांग्रेस का भी साथ दिया लेकिन यूपी चुनाव में रणनीति काम नहीं आई, ये काम का एक हिस्सा है.

राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं या नहीं इस पर प्रशांत किशोर ने कहा कि इसका फैसला देश की जनता करेगी और अगर उसका भरोसा और प्यार राहुल गांधी को मिला तो वो उपयु्क्त उम्मीदवार हो सकते हैं. प्रियंका गांधी के पीएम पद के लिए उपयुक्त होने के सवाल पर भी उन्होंने कहा कि ये कांग्रेस के लोगों का फैसला होना चाहिए. वो सार्वजनिक जीवन में नहीं हैं और लोगों को अपनी सोच उन पर थोपनी नहीं चाहिए.

2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी की बंपर चुनावी जीत के पीछे प्रशांत किशोर का बड़ा हाथ था लेकिन कथित तौर पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ मतभेद होने के बाद वो बीजेपी से अलग हो गए थे. इसके बाद साल 2015 में बिहार चुनाव में उन्होंने महागठबंधन को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका अदा की थी. हालांकि इसके बाद 2017 में हुए यूपी चुनाव में उन्होंने कांग्रेस का साथ दिया लेकिन इस चुनाव में पार्टी की बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा.

दरअसल प्रशांत किशोर ने पिछले 6 सालों में अपने काम की बदौलत कई नेताओं से प्रगाढ़ संबंध बनाए हैं और 2014 के चुनावों में मोदी के लिए बंपर जीत का रास्ता खोलने के बाद तो वो नेताओं के बेहद प्रिय हो गए हैं.

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