फिर विवादों में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग,हाईकोर्ट ने तलब किये दो सदस्यों की नियुक्ति के रिकार्ड
समिति की तरफ से हाईकोर्ट में दाखिल पीआईएल में कहा गया है कि ये दोनों इनमें से किसी भी मानक को पूरा नहीं करते. इन दोनों सदस्यों की नियुक्ति पिछले साल तीन जून को हुई थी. मामले की सुनवाई आज चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस विवेक वर्मा की डिवीजन बेंच में हुई.
प्रयागराज: यूपी के डिग्री कॉलेजों में प्रिंसिपल और प्रोफेसरों की भर्ती करने वाला उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग एक बार फिर विवादों में हैं. यहां के दो सदस्यों को ज़रूरी योग्यता न होने के बावजूद मनमाने तरीके से नियुक्त किये जाने का गंभीर आरोप लगा है. अदालत ने इस मामले में न सिर्फ यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है, बल्कि इन दोनों सदस्यों की नियुक्ति से जुड़े सभी रिकार्ड भी तलब कर लिए हैं.
यूपी सरकार को दोनों सदस्यों की नियुक्ति से जुड़े रिकार्ड एक हफ्ते में कोर्ट में पेश करने होंगे. चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच इस मामले में सत्ताइस नवम्बर को फिर से सुनवाई करेगी. अखिलेश राज में हाईकोर्ट यहां के तत्कालीन चेयरमैन और तीन सदस्यों को गलत तरीके से नियुक्त किये जाने के मामले में बर्खास्त कर चुका है.
दो सदस्यों की नियुक्ति के रिकार्ड तलब किये जाने के बाद कहा जा सकता है कि सरकार बदलने के बावजूद उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में हुई नियुक्तियों से विवादों का नाता छूटने का नाम नहीं ले रहा है.
प्रतियोगी छात्रों की संस्था प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का आरोप है कि यूपी के डिग्री कॉलेजों में प्रिंसिपल व प्रोफेसरों की नियुक्ति करने वाले उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में दो सदस्यों डॉ कृष्ण कुमार और डॉ हरबंश की नियुक्ति नियमों की अनदेखी करके की गई है. इनमें से कृष्ण कुमार असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं जबकि डॉ हरबंश एक डिग्री कालेज में प्रोफ़ेसर हैं.
नियम यह है कि किसी युनिवर्सिटी में दस साल तक प्रोफ़ेसर का अनुभव रखने वाला या फिर डिग्री कालेज में पंद्रह साल प्रोफ़ेसर या फिर दस साल प्रिंसिपल रहने वाला ही उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में सदस्य नियुक्त हो सकता है. इसके साथ ही किसी ख्याति प्राप्त विद्वान् को भी सदस्य बनाया जा सकता है.
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