नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन करने वाले अध्यादेश को आज मंजूरी दे दी. इस अध्यादेश के जरिये गैर वन्य क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बांस को पेड़ की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है.
यह बांस के पेड़ों को काटने या इसकी ढुलाई के लिये अनुमति हासिल करने से छूट देने में मदद करेगा. अध्यादेश जारी किये जाने से पहले, अधिनियम में पेड़ की परिभाषा में ताड़, बांस, झाड़-झंखाड़ और सरकंडा शामिल थे.
संक्षिप्त अध्यादेश में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 7 से बांस शब्द को हटाया जाता है. सूत्रों ने बताया कि इस कदम का उद्देश्य बांस उगाए जाने को प्रोत्साहन देना है. यह 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने में योगदान देगा.
पर्यावरण मंत्री हर्षवर्द्धन ने कहा, "सरकार ने एक ऐतिहासिक पहल के तहत भारतीय वन संशोधन अध्यादेश 2017 जारी किया है जिसमें गैर वन्य क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बांस को पेड़ की परिभाषा से छूट दी जा सके. इसके जरिये आर्थिक इस्तेमाल के लिये बांस को काटने या उसकी ढुलाई के लिये परमिट की जरूरत को समाप्त कर दिया गया है." यद्यपि वर्गीकरण के हिसाब से बांस एक घास है, लेकिन भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत इसे कानूनन पेड़ के रूप में परिभाषित किया गया था.
इस संशोधन से पहले वन्य के साथ-साथ गैर वन्य क्षेत्र की जमीन पर उगाए जाने वाले बांस को काटने और उनकी ढुलाई के लिये अधिनयम के प्रावधान लागू होते थे. एक आधिकारिक वक्तव्य में कहा गया, "गैर वन्य भूमि पर किसानों द्वारा बांस को उगाने की राह में यह बड़ी बाधा थी." उम्मीद की जाती है कि इस कदम से 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी.
हर्षवर्द्धन के अनुसार, "इस संशोधन का उद्देश्य गैर वन्य क्षेत्रों में बांस उगाए जाने को प्रोत्साहन देना है. इसके जरिए किसानों की आय बढ़ाने और देश के हरित आवरण को बढ़ाने का लक्ष्य हासिल किया जाएगा. वन्य क्षेत्र में उगाए जाने वाले बांस पर अब भी भारतीय वन अधिनियम, 1927 के प्रावधान लागू होंगे."