जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी नसीहत, कहा- आचरण को लेकर संजीदा रहना चाहिए
गुजरात में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को अपने आचरण को लेकर संजीदा रहना चाहिए.
केवड़िया: सांसदों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों के आचरण को लेकर अक्सर जो तस्वीरें सामने आती है जिनमें सांसद और विधायक सदन में हंगामा कर रहे हैं और तोड़फोड़ कर रहे हैं. ऐसे आचरण को राज्य सभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू पहले भी गलत और अमर्यादित ठहराते रहे हैं और आज एक बार फिर अपनी उसी बात को दोहराया. लेकिन इस बार सिर्फ राज्यसभा के चेयरमैन और उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने अकेले नहीं बल्कि देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सांसदों और जनप्रतिनिधियों के आचरण को लेकर लगातार उठते सवालों पर कहा कि उनका ऐसा आचरण देखकर उनको चुनने वाली जनता को भी पीड़ा होती है.
लोकसभा और राज्यसभा में यह अलग-अलग विधानसभा में अक्सर इस तरह की तस्वीरें सामने आती रहती है जहां पर सांसद विधायक और जनप्रतिनिधि हंगामा करते हैं. हंगामा इतना बढ़ जाता है कि सदन की कार्रवाई तो बाधित होती है, तोड़फोड़ तक हो जाती है और उसके चलते लाखों करोड़ों रुपए का जनता का पैसा बर्बाद होता है. इसी तरह के हंगामा को लेकर आज देश के राष्ट्रपति ने भी चिंता जाहिर की. राष्ट्रपति ने गुजरात में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में संबोधन के दौरान कहा कि जनप्रतिनिधियों का ऐसा आचरण देख जनता को भी पीड़ा होती है. जनप्रतिनिधियों को अपने आचरण को लेकर संजीदा रहना चाहिए जिससे कि सदन की कार्रवाई भी ढंग से चल सके और जनता से जुड़े मुद्दों को उठाया जा सके.
हालांकि राष्ट्रपति ने विरोध उठने वाली आवाजों को लेकर साफ तौर पर कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष का रोल भी महत्वपूर्ण होता है और अगर कोई विवाद है तो ख़ुद को सुलझाने का सबसे अच्छा माध्यम संवाद ही हो सकता है.
राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने भी जनप्रतिनिधियों के आपत्तिजनक आचरण और अपराधी छवि का ज़िक्र करते हुए का कि इससे राजनेताओं की छवि खराब होती है और जनता की नज़र में गिर जाते हैं. राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने कहा कि संसद के सदनों में हंगामा करना भी ठीक नहीं है. क्योंकि कई बार इस हंगामे की वजह से संसद में प्रश्न काल का भी समय बर्बाद होता है जो बिल्कुल भी सही नहीं है. ऐसे में ज़रूरी है कि राजनीतिक दल इस पर मंथन करें और ऐसे गतिरोधों को रोकें और उस वक़्त का सदुपयोग किया जा सके.
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कोई यह बात इस वजह से करनी पड़ी क्योंकि लगातार लोकसभा राज्यसभा से लेकर अलग-अलग विधानसभाओं की तस्वीर सामने आती रही हैं. इसे लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं कहा जा सकता. इसमें अगर किसी का नुकसान होता है तो वह आम जनता ही है. इन हंगामों की वजह से जनता से जुड़े हुए अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती है और साथ ही जनता के लाखों करोड़ों रुपए की बर्बादी भी होती है.
कोविड-19: केन्द्र सरकार ने जारी कई नई गाइडलाइन्स, कंटेनमेंट जोन में रहेगी सख्ती