Presidential Election 2022: आज भी बैलेट पेपर से होता है देश के महामहिम का चुनाव, जानिए वजह
Presidential Election 2022: देश के 15वें राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को मतदान हो रहा है. आप ये जानकार अचंभे में होंगे कि आखिर क्यों आज भी बैलेट पेपर (Ballot Paper) का इस्तेमाल किया जाता है.
Presidential Election 2022: भारत के नए राष्ट्रपति के नाम की 21 जुलाई को घोषणा हो जाएगी. देश के इस प्रतिष्ठित पद के लिए एनडीए (NDA) ने इस बार झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को प्रत्याशी बनाया है. वहीं विपक्षी पार्टियों ने यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को इस पद के लिए चुनाव में उतारा है. देश के इस सबसे बड़े पद के लिए चुनाव में ईवीएम (EVM) का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों बैलेट पेपर (Ballot Paper) ही इस्तेमाल में आते हैं.
आपको लग रहा होगा कि 2004 के बाद से तीन लोकसभा चुनाव और 100 से ज्यादा विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, राज्यसभा सदस्यों और राज्य विधान परिषदों के सदस्यों के चुनाव में इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता? तो आज हम आपके इसी सवाल का जवाब देने जा रहे हैं.
EVM की तकनीक है वजह
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन- ईवीएम (EVM) एक ऐसी तकनीक पर आधारित है जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसे प्रत्यक्ष चुनावों में वोट के समूहक (एग्रेगेटर) के रूप में काम करती है. मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने वाले बटन को दबाते हैं. इसमें जो सबसे अधिक वोट प्राप्त करता है, उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है.
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया है अलग
हमारे देश में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी अलग है. इसके प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव नहीं होता है. राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के जरिए किया जाता है. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के मुताबित एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से, प्रत्येक निर्वाचक उतनी ही वरीयताओं पर निशान लगा सकता है, जितने उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष समर्थित यशवंत सिन्हा दो उम्मीदवार हैं.
EVM की प्रणाली राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुफीद नहीं
जानकारों के मुताबित, ईवीएम को राष्ट्रपति चुनाव की प्रणाली के लिए नहीं बनाया गया है. ईवीएम वोटों का समूहक है, जबकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर वोटों की गणना करनी होगी. जायज है कि इसके लिए पूरी तरह से अलग तकनीक की आवश्यकता होगी. दूसरे शब्दों में, एक अलग प्रकार की ईवीएम की जरूरत होगी.
कब से शुरू हुआ EVM का इस्तेमाल
निर्वाचन आयोग की त्रैमासिक पत्रिका ‘माई वोट मैटर्स’ के अगस्त 2021 के अंक के मुताबिक, 2004 से अब तक चार लोकसभा और 127 विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा चुका है. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, पहली बार 1977 में निर्वाचन आयोग में इसकी परिकल्पना की गई थी और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद को ईवीएम को डिजाइन और विकसित करने का काम सौंपा गया था.
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