India Presidential Election 2022: देश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज है. एनडीए (NDA) ने द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है तो वही विपक्ष दलों ने आपसी सहमति से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत (Yashwant Sinha) सिन्हा को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर उतारा है. बीजेपी लंबे वक्त से खुद को आदिवासियों के लिए सबसे भरोसमंद बताती रही है ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election 2022) में पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर आदिवासी समुदाय को साधने की कोशिश करते हुए सियासी दांव चला है. 


भारत में अभी तक आदिवासी समुदाय से कोई राष्ट्रपति नहीं बन सका है. आदिवासी समुदाय से भी किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने की मांग उठती रही है. देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 8.9 फीसदी मानी जाती है. कई राज्यों में ये समाज सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.  


द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर आदिवासी समाज को संदेश


एनडीए की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ओडिशा की रहने वाली आदिवासी नेता हैं. वो झारखंड की राज्यपाल भी रही हैं. मुर्मू ओडिशा के रायरंगपुर से विधायक रह चुकी हैं. वो पहली ओडिशा की नेता रही हैं जिन्हें गवर्नर बनाया गया था. बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर आदिवासी समाज को बड़ा संदेश दिया है. मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में काफी संख्या में आदिवासी वोटर हैं. गुजरात में इसी साल तो बाकी तीन राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं ऐसे में आदिवासी समाज से उम्मीदवार बनाने का एनडीए को फायदा मिल सकता है.


पहले भी आदिवासी नेता लड़ चुके हैं राष्ट्रपति चुनाव


साल 2012 में पीए संगमा ने भी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था. पीए संगमा गारो जनजाति समाज से आते थे. हालांकि 2016 में ही उनका निधन हो गया. उन्होंने यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था लेकिन वो जीत नहीं पाए थे. यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी 7,13,763 (69 फीसदी) वोट मूल्य के साथ बीजेपी के पीए संगमा को पछाड़ते हुए भारत के राष्ट्रपति बने थे. संगमा को 3,15,987 वोट मूल्य के साथ 30.7 फीसदी वोट मिले थे.


पीए संगमा 2012 में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ लड़े चुनाव


पीए संगमा ये मानते थे कि देश में आदिवासियों को उच्चतम स्तर पर प्रतिनिधित्व की जरूरत है. वो मानते थे कि आदिवासियों को किनारे कर दिया है. शिक्षक से वकील और फिर नेता बने पीए संगमा ने 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कई दलों से समर्थन मांगा था लेकिन वो प्रणब मुखर्जी से पिछड़ गए थे. वो आदिवासी पहचान पर वोट की उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन सफलता नहीं मिल पाई. 1996 में लोकसभा अध्यक्ष उनके करियर में बड़ी उपलब्धि थी. 


पीए संगमा 8 बार रह चुके थे सांसद


पीए संगमा (PA Sangma) का जन्म 1947 को पश्चिम गारो हिल्स में मेघालय (Meghalaya) के चपाथी गांव में हुआ था. शिलांग से स्नातक की डिग्री लेने के बाद पीए संगमा ने असम के डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय संबंध में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी. साल 1973 में पीए संगमा प्रदेश युवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. 1977 के लोकसभा चुनावों में संगमा तुरा निर्वाचन क्षेत्र (Tura Lok Sabha) से जीत दर्ज करने के बाद पहली बार सांसद बने थे. वो आठ बार लोकसभा के मेंबर रहे. निधन के दौरान वो तुरा (अनुसूचित जनजाति) लोकसभा सीट से सांसद थे.


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