नई दिल्ली: शहीदों के बच्चों की ट्यूशन फीस की लिमिट तय करने को लेकर केंद्र सरकार घिरती नजर आ रही है. रक्षा मंत्रालय पर लगातार ट्यूशन फीस की लिमिट वापस लेने का दबाव बन रहा है. इस बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामण ने भरोसा दिलाया है कि सरकार ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगी, जिससे शहीदों के परिवार वालों को परेशानी उठानी पड़े.


दरअसल पिछले दिनों सरकार ने शहीदों के बच्चों की ट्यूशन और हॉस्टल फीस की सीमा तय कर दी थी, जिसका अब हर ओर विरोध हो रहा है. 13 सितंबर को रक्षा मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ एक्स सर्विसमेन वेलफेयर ने इस बाबत आदेश जारी किया. जिसमें शहीद, विकलांग और लापता अफसरों के बच्चों की ट्यूशन फीस की भुगतान सीमा 10 हजार रुपये प्रतिमाह तय कर दी गई थी.


इस फैसला का सीधा असर उन तीन हजार बच्चों पर पड़ेगा, जिनकी पढ़ाई के बीच ये फैसला लिया गया है. हैरानी की बात ये है कि सरकार के इस कदम से महज चार करोड़ रुपये प्रति साल बचत की उम्मीद है.


इस फैसले के बाद शहीदों की पत्नियों ने भी रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखा है और शहीदों के बच्चों को मिल रही मदद को पहले की तरह ही जारी रखने की मांग की है.


बता दें कि 1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद ये योजना शुरू की गई थी, जिसमें शहीदों के बच्चों को ट्यूशन फीस के अलावा हॉस्टल, किताब, यूनिफॉर्म का पूरा खर्च मिलता था.


सरकार ने इस फैसले के पीछे 7वें वेतनमान की सिफारिशों का हवाला दिया है. लेकिन लगातार बढ़ते दबाव के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामण ने इस पर दोबारा विचार का भरोसा दिलाया है. उम्मीद है कि सरकार जल्द इस फैसले पर फिर से विचार करेगी. ताकि देश के लिए जान गंवाने वाले जवानों के बच्चों का भविष्य पर कोई मुश्किल न आए.