क्या है मोटा अनाज, भारत सरकार क्यों पहुंचाना चाहती है इसको आपकी थाली तक?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोटा अनाज पसंद है और देश की हर थाली में इसकी मौजूदगी के लिए उन्होंने 2018 में खास अभियान चलाया था. नतीजा यूएन ने साल 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है.
नए साल के चंद दिन बाकी हैं और 2023 के जश्न के साथ ही देश मोटे अनाज (Coarse Grains) का उत्सव भी मनाने जा रहा है. लोगों की थाली से दूर हो चुका ये अनाज अब हर भारतवासी की थाली में नजर आएगा. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके मुरीद हैं. उन्हीं की कोशिशों का नतीजा है कि आज पूरा विश्व मोटे अनाज की अहमियत समझ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र ने 2023 के अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष होने का ऐलान कर डाला है. कभी वो दौर था कि हर भारतीय घर की थाली में कोई न कोई मोटा अनाज जरूर नजर आता था, लेकिन धीरे-धीरे खानपान के तरीके इस कदर बदले की थाली में अनाज कम जंक फूड ज्यादा नजर आने लगा. देश का हर नागरिक सेहतमंद रहे इसके लिए सुपरफूड मिलेट्स को हर घर की पंसद बनाने के लिए सरकार की कोशिशें जारी हैं.
मन की बात में मोटे अनाज का जिक्र
2022 अगस्त के तीसरे महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात कार्यक्रम' में मिलेट्स जैसे मोटे अनाज का जिक्र किया था. इस दौरान उन्होंने मोटे अनाज के लिए लोगों में जागरुकता लाने और लोगों की थाली में इसकी मौजूदगी के लिए जन आंदोलन चलाने की बात भी कही थी. पीएम मोदी ने मोटे अनाज को कुपोषण के खिलाफ कारगर हथियार तो डायबिटीज और हाइपरटेंशन सरीखी बीमारियों को दूर भगाने का जरिया बताया था.
दरअसल मोटे अनाज के लिए पीएम का ये प्रेम यूं ही नहीं है. इस तरह का अनाज सेहत को दुरुस्त रखने के सुपर फूड के तौर पर पहचाना जाता है. सरकार ने साल 2018 से ही भारतवासियों की थाली में इसकी पक्की वापसी के लिए कोशिशें तेज कर दी थीं. भारत सरकार ने 2018 को कदन्न वर्ष (Millet Year) यानी मोटे अनाज के तौर पर मनाया था.
सरकार ने कदन्न फसलों (Millet Crops) यानी ज्वार, बाजरा, रागी, मडुवा, सावां, कोदों, कुटकी, कंगनी, चीना जैसे मोटे अनाज की अहमियत समझते हुए ये कदम उठाया था. इस साल मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहन देने की कोशिशों को अमली जामा पहनाया गया. यही नहीं भारत सरकार ने मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र आमसभा में 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स साल मनाने का प्रस्ताव पेश किया था. इस प्रस्ताव के पक्ष में दुनिया के 72 आए.
इसके बाद 20 दिसंबर, 2021 को नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के संग घोषणापत्र पर साइन किए और यूएन की तरफ से साल 2023 के अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष होने का ऐलान किया गया. यूएन और भारत की इस भागेदारी में मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने की कवायद की जाएगी.
इसके साथ ही 2023 में भारत मोटे अनाज को लेकर ज्ञान-विज्ञान में दुनिया का नेतृत्व करेगा और पूरी दुनिया इसमें उसका सहयोग करेगी. इस साझेदारी के तहत छोटे किसानों के लिए लगातार आजीविका के मौके मुहैया कराने की कोशिशों हो होंही ही जलवायु परिवर्तन के नजरिए से खाद्य प्रणाली में बदलाव भी लाया जाएगा. इसके साथ ही देश के केंद्रीय कृषि मंत्रालय मोटे अनाजों को लोगों में मशहूर बनाने के लिए कमर कस ली है.
दिसंबर के पहले हफ्ते में इटली की राजधानी रोम 'अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष-2023' (International Year of Millets – 2023) के उद्घाटन समारोह मनाया गया. इसके लिए भेजे खास संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करेगा. यहीं देश में पोषक तत्वों से भरपूर ऐसे अनाजों के सेवन के लिए लोगों में जागरूकता लाने के लिए खास अभियान भी चलाएगा.
जब संसद में हुआ मोटे अनाज का लंच
मंगलवार 20 दिसंबर को संसद में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सांसदों और अन्य नेताओं ने मोटे अनाज का लंच किया. संसद परिसर में केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इस लंच का आयोजन किया था. इतना ही नहीं इससे पहले 15 दिसंबर को देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर की तरफ से संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित यूएन सुरक्षा परिषद के सदस्यों को मोटे अनाज के लंच के लिए आमंत्रित किया गया था.
लंच से पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि इसके जरिए मोटे अनाज की खासियतों से सुरक्षा परिषद के सदस्य वाकिफ हो पाएंगे. ये लंच टाटा समूह के ताज होटेल से जुड़े पियरे होटल में बनाया गया था. इसे लेकर विदेश मंत्री ने ट्वीट किया था, “न्यूयॉर्क में आज संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और यूएनएससी सदस्यों के ‘मिलेट लंच’ की मेजबानी से खुशी हो रही है."
Delighted to welcome UNSG @antonioguterres and UNSC members for a ‘millet lunch’ in New York today. #IYOM2023 pic.twitter.com/6I0K54LTXj
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) December 15, 2022
इस लंच में यूएन के सदस्यों को बाजरे की खिचड़ी, पकौड़े जैसे व्यंजन परोसे गए थे. आखिर मोटे अनाज के इस तरह से वैश्विक स्तर पर प्रचार करने की भारत को क्या जरूरत आन पड़ी और ये मोटा अनाज आखिर है जो इसे इतनी तव्वजो दी जा रही है? आगे इन्हीं सवालों के जवाबों पर बात करेंगे.
संक्रामक बीमारियां और संतुलित आहार
आज संक्रामक बीमारियां इंसानी जिंदगी पर इस कदर हावी हैं कि लोगों का ध्यान संतुलित और पोषक आहार की तरफ जाने लगा है. ऐसा आहार जो आपको ऐसा पोषण दे जिससे आपकी प्रतिरोधक क्षमता इतनी मजबूत हो जाए की बाहर की कोई बीमारी आपको आसानी से अपनी चपेट में न ले सकें. इसे देखते हुए भी खानपान में अनाजों का संतुलन बनाने की तरफ वैश्विक तौर पर लोगों का ध्यान गया. और इस मामले में मोटे अनाज का कोई सानी नहीं है. इससे शरीर को सही पोषण मिलता है जो आमतौर पर गेहूं और धान जैसे अनाज से नहीं मिल पाता.
सुपर फूड है मोटा अनाज
मोटा अनाज यूं ही सुपर फूड नहीं कहलाता है. इसके खास गुणों की वजह से ही इसे ये नाम दिया गया है. इसमें पोषक तत्वों की अच्छी खासी मात्रा होती है. ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू 8 फसलों को मोटे अनाज की फसलें कहा जाता है. गेहूं और धान की फसलों के मुकाबले इसमें सॉल्युबल फाइबर के साथ ही कैल्शियम और आयरन की मात्रा अधिक होती है.
रागी यानी मडुवे को ही ले तो इसके प्रति 100 ग्राम में 364 मिलिग्राम कैल्शियम की मात्रा होती है. हड्डियों की मजबूती में भी रागी का कोई सानी है. ये डायबिटीज के मरीजों के लिए खासा फायदेमंद रहता है. बाजरे में अच्छा खासा प्रोटीन होता है. बाजरे के प्रति 100 ग्राम में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम के करीब कैरोटीन होता है.
कैरोटीन आंखों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है. बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने और बेबी फूड में ज्वार का मुकाबला नहीं है. आसानी से पचने वाले जौ यानी ओट्स में बहुत अधिक मात्रा में फाइबर होता है. कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट वाले मोटे अनाज जौ में ब्लड कोलेस्ट्रोल काबू रहता है. यही वजह है कि मोटे अनाज के सेहत संबंधी फायदों को देखते हुए दुनिया इसे अपनाने में खासी दिलचस्पी ले रही है.
कम मशक्कत वाली फसलें
दुनिया का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हाल में जारी की गई एक रिपोर्ट इस मामले में लोगों को आगाह करती है. इसमें कहा गया है कि भारत जैसे कई देशों में आने वाले वर्षों में बढ़ते तापमान की वजह से दिन में काम करना दूभर हो जाएगा. इसका सबसे अधिक प्रभाव असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर पड़ने की बात की जा रही है. खेती ऐसा ही असंगठित क्षेत्र है. खेती जैसे पेशे में सुबह से लेकर रात तक किसान लगा रहता है.
दिन के वक्त तापमान जब सहने लायक नहीं होगा तो खेती-किसानी करने में भी परेशानी आएगी. इस हिसाब से देखा जाए धान जैसी बहुत अधिक मेहनत वाली फसलों के मुकाबले मोटे अनाज की फसलें मुफीद रहेंगी. धान की फसल को ही ले इसके लिए किसान को घंटों पानी में खड़ा रहना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ मोटे अनाज को उगाने में इस तरह की मशक्कत कम करनी पड़ती है. ये अनउपजाऊ किस्म की मिट्टी और कम मेहनत में भी आसानी से पैदा हो जाते हैं .