नई दिल्ली: ओडिशा के एक बीजेपी विधायक का दावा है कि पुरी से पीएम नरेन्द्र मोदी लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं. ओडिशा की बीजेपी यूनिट पहले ही इस बारे में प्रस्ताव भेज चुकी है. भगवान जगन्नाथ के मंदिर के कारण हिंदुओं में पुरी का बड़ा सम्मान है. मोदी के बहाने पार्टी लोकसभा चुनाव में ओडिशा में तक़दीर बदलने की जुगाड़ में है. ख़ुद मोदी भी कई बार पुरी जा चुके हैं. 5 जनवरी को वे बारीपदा जिले में एक रैली करेंगे. पिछले पंद्रह दिनों में ओडिशा में मोदी का ये दूसरा दौरा है. पुरी से मोदी के चुनाव लड़ने की चर्चा होती रहती है. अभी बीजू जनता दल के पिनाकी मिश्र यहां से एमपी हैं.


विपक्षी पार्टियों के गठबंधन के मुक़ाबले हिंदी पट्टी के राज्यों में बीजेपी इस बार कांटे के मुक़ाबले में फंसी है. जानकार बताते हैं कि पिछले आम चुनाव के नतीजे दोहराना बेहद मुश्किल होगा. इसीलिए पार्टी ने इस बार उन इलाक़ों में फ़ोकस किया है, जहां पिछली बार पार्टी कुछ ख़ास नहीं कर पाई थी. बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि त्रिकोणीय मुक़ाबले में बीजेपी अच्छा कर सकती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजू जनता दल को बीजेपी चुनौती दे सकती है.


नवीन पटनायक पिछले 18 सालों से ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं. यहां लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ साथ होते हैं. मोदी लहर में भी ओडिशा में नवीन बाबू का क़िला कोई भेद नहीं पाया. 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर बीजेडी जीती जबकि एक सीट बीजेपी को मिली. ओडिशा में कमल खिलाने के लिए स्थानीय बीजेपी नेता चाहते हैं कि पीएम नरेन्द्र मोदी पुरी से चुनाव लड़ें. पूर्वी भारत के लोगों का भगवान जगन्नाथ से इमोशनल कनेक्शन रहा है.


ओडिशा में तो हर घर में जगन्नाथ जी की पूजा होती है. यहां के लोग नमस्कार या आदाब के बदले जय जगन्नाथ कह कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. ऐसे में अगर पुरी से मोदी चुनाव लड़ते हैं तो फिर बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है. उनके यहां चुनाव लड़ने से इलाक़े के कई सीटों पर इसका असर पड़ सकता है. केन्द्र में बीजेपी सरकार के 4 साल पूरे होने पर कार्यक्रम कटक में हुआ था. नरेन्द्र मोदी ने यहां जन सभा भी की थी.


साल 2017 में बीजेपी ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी कर चुकी है. उस दौरान मोदी ने एयरपोर्ट से लेकर शहर तक रोड शो किया था. आपको बता दें कि बीजू जनता दल नौ सालों तक बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही. ओडिशा में गठबंधन की सरकार रही. लेकिन 2009 में सीएम नवीन पटनायक ने बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया. तब से ही बीजेपी को ओडिशा में अच्छे दिन का इंतज़ार है.


कांग्रेस के बाद वो राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बनी हुई है. 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेडी को 43.35, कांग्रेस को 25.71 और बीजेपी को 18 फीसदी वोट मिले थे. ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ साथ होते हैं. इसीलिए नवीन पटनायक के नाम और चेहरे के मुक़ाबले सब छोटे पड़ जाते हैं. हर बार ऐसा ही हो रहा है.


क्या पीएम नरेन्द्र मोदी अपने करिश्मे की बदौलत बीजेपी की नैया पार लगा सकते हैं? इसी सवाल से ओडिशा में पार्टी जूझ रही है. 2017 के निकाय चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ दिया था. इसके बाद से ही बीजेपी ने राज्य में नवीन पटनायक सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था. केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की अगुवाई में पार्टी माहौल बनाने में जुटी है. लेकिन बात बन नहीं पाई है. बीजेपी के दो बड़े नेताओं दिलीप राय और विजय महापात्र ने पार्टी छोड़ दी है.


ओडिशा में बीजेपी के नेता एक दूसरे की टांग खींचने में ही लगे रहते हैं. पीएम मोदी भी नवीन पटनायक पर सीधा हमला करने से बचते रहे हैं. कहते हैं कि दोनों के आपसी रिश्ते मीठे हैं. सूत्र ये भी बताते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर बीजेडी तो बीजेपी का समर्थन भी कर सकती है. नवीन पटनायक की राजनीति कांग्रेस विरोधी रही है. तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद पटनायक का करिश्मा अब भी बना हुआ है. बीजेडी विरोधी वोट बीजेपी और कांग्रेस में बंट जाता है. इसका सीधा फ़ायदा हर चुनाव में नवीन पटनायक को मिलता रहा है.


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