PM Modi Nepal Visit: भारत और नेपाल के रिश्तों को प्रधानमंत्री मोदी ने आज ताक़त का 'पावर डोज़' दिया. बुद्ध जयंती के मौक़े पर एक छोटे मगर अहम दौरे के लिए पीएम नेपाल के लुंबिनी पहुंचे. यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली लुंबिनी यात्रा थी. अपने दौरे में पीएम ने जहां चीन की हेकड़ी को भारत की पैठ का पैग़ाम दिया. वहीं महज़ डेढ़ महीने के भीतर दोनों प्रधानमंत्रियों की दूसरी मुलाक़ात ने बीते कुछ सालों के दौरान रिश्तों पर आई सिलवटों की दूर करने का प्रयास किया. 


पीएम मोदी के छह घंटे से कम के दौरे में जहां दोनों देशों के बीच आधा दर्जन से अधिक समझौतों पर दस्तख़त हुए. वहीं आगे की साझेदारी के नए पैमाने भी तय किए. एक तरफ़ जहां भगवान बुद्ध के बहाने साझी विरासत को सींचने का प्रयास किया गया. वहीं नेपाल के साथ आर्थिक भागीदारी बढ़ा मज़बूत रिश्तों का भी संदेश दिया. इतना ही नहीं आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी के लिए भारत ने बिजली कारोबार में साझेदारी का भी रास्ता बढ़ाया. 


पीएम मोदी की अगवानी के लिए पीएम सहित 7 मंत्री उपस्थित
प्रधानमंत्री मोदी की अगवानी के लिए नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा अपनी पत्नी आरज़ू देउबा और कैबिनेट के सात मंत्रियों के साथ मौजूद थे. पीएम मोदी के सोमवार सुबह क़रीब सवा दस बजे लुंबिनी पहुँचने से लेकर उन्हें विदा करने तक हर कार्यक्रम में साथ नज़र आए. नेपाल में पीएम मोदी ने जहां भगवान बुद्ध के जन्मस्थान माया देवी मंदिर में दर्शन किए. वहीं भारत की तरफ़ से बनाए जाने वाले बौद्ध सांस्कृतिक और संपदा केंद्र का भी शिलान्यास किया. भारत स्थित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ की मदद से नेपाल में बनाया जाने वाले इस केंद्र में विश्वस्तरीय सुविधाओं वाला प्रार्थना हॉल, लाइब्रेरी आदि बनाए जाएँगे.यह इमारत नेट ज़ीरो यानि शून्य कार्बन उत्सर्जन करने वाली बिल्डिंग के तौर पर बनाए जानी है. 


दोनों पीएम के बीच ऊर्जा कारोबार सबसे महत्वपूर्ण पहलू
भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बातचीत का महत्वपूर्ण पहलू था ऊर्जा कारोबार. विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ दोनों प्रधानमंत्रियों ने बीते कुछ महीनों के दौरान द्विपक्षीय बिजली व्यापार, ऊर्जा उत्पादन, बिजली ट्रांसमिशन, ढांचागत निर्माण समेत अनेक पहलुओं में बीते कुछ महीनों के दौरान हुई प्रगति की समीक्षा की. नेपाल ने भारत को बरसों से अधूरी पड़ी पश्चिमी सेती परियोजना को विकसित करने का भी न्यौता दिया. विदेश मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी ने नेपाली प्रधानमंत्री को भरोसा दिया कि भारत इस परियोजना के विकास में यथासंभव मदद करेगा.


चीन को मिल चुका है नेपाल से धोखा
महत्वपूर्ण है कि बीते डेढ़ दशक के बीच नेपाल इस परियोजना के विकास में एक-एक कर चीन की दो बड़ी कंपनियों से वादा खिलाफी झेल चुका है. दो साल पहले चीन की सबसे बड़ी बिजली कंपनी थ्री गौर्जेस इंटरनेशनल कार्पोरेशन ने 2012 में इस पन-बिजली परियोजना का काम अपने हाथ में लिया. मगर नवंबर 2017 में लोगों के पुनर्वास का हवाला देते हुए इसे महंगा सौदा बताया और परियोजना से हाथ झाड़ लिए. इससे पहले चीन की सरकारी कंपनी चायना नेशनल मशीनरी एंड इक्विपमेंट एंड इंपोर्ट एंड एक्सपोर्ट कार्पोरेशन ने 2009 में 15 अरब डॉलर के निवेश को लेकर किया समझौता तोड़ चुकी थी.


नेपाल भारत को सौंपेगा पनबिजली परियोजना के चौथे चरण का काम
नेपाल यह अच्छी तरह समझ चुका है कि ऊर्जा क्षेत्र में भारत से हाथ मिलाने का मतलब मदद का भरोसा भी है और मुनाफ़े का सौदा भी. यही वजह है कि नेपाल सरकार ने अरुण नदी पर बन रही पनबिजली परियोजना के चौथे चरण के विकास का काम भी भारत को सौंपने का फ़ैसला किया है. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी SJVN और नेपाल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के बीच 490 मेगावाट की परियोजना को लेकर सोमवार को समझौता पत्र पर दस्तख़त किए गए. ध्यान रहे कि सतलुज जल विकास निगम लिमिटेड नेपाल में 2000 मेगावाट से अधिक की बिजली परियोजनाओं के विकसित कर रही है. साथ ही SJVN ने अगले दस सालों में 5000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है. 


तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था को है बिजली की जरूरत
भारत के साथ लंबी और खुली सीमा वाले नेपाल के लिए बिजली का कारोबार मुनाफ़े का सौदा इसलिए भी है क्योंकि तेज़ रफ़्तार से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को बिजली की ज़रूरत है. ख़ासतौर पर नेपाल से सटे उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे सूबों में विकास की गति बढ़ाने में भारत को भी इसकी खासी ज़रूरत है. हालांकि नेपाल के साथ बिजली के कारोबार में भारत की अंक छोटी सी शर्त ज़रूर है. शर्त यह है कि चीन के पैसे और चीनी कंपनियों की मदद से बनाए गई पन-बिजली परियोजनाओं की बिजली भारत नहीं ख़रीदेगा. इस शर्त के चलते नेपाल के पास विकल्प सीमित ही बचते हैं. लिहाज़ा नेपाल अब भारत के साथ मौजूद संभावनाओं को ही अपनी अर्थव्यवस्था के लिए ताक़त का टॉनिक बनाने में जुटा है.


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