देश में रेल और सड़क जैसे आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं में देरी कोई नई बात नहीं रही है. 4 अगस्त को लोकसभा में दिए एक लिखित जवाब में सांख्यिकी और योजना क्रियान्वयन मंत्रालय ने बताया था कि देश में कुल 557 ऐसे प्रोजेक्ट हैं जो अपनी तय समयसीमा में पूरे नहीं किए जा सकेंगे. जवाब के मुताबिक़ इस देरी से सरकारी ख़ज़ाने पर क़रीब 2.77 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. मतलब ये हुआ कि अगर ये सारे प्रोजेक्ट अपने तय समय पर पूरे कर लिए जाते तो देश को 2.77 लाख करोड़ रुपए की बचत होती.


लोकसभा में ही दिए एक अन्य लिखित जवाब के मुताबिक़ परियोजनाओं के समय पर पूरे होने में जो प्रमुख कारण हैं उनमें क़ानून व्यवस्था , ज़मीन अधिग्रहण में देरी , वन और पर्यावरण की मंज़ूरी में देरी और पुनर्वास सम्बन्धी मुद्दे शामिल हैं. इनमें ज़मीन अधिग्रहण और पर्यावरण मंज़ूरी को लेकर कई बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है और कोर्ट का निर्णय आने तक परियोजना का काम रुक जाता है.


अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोर्ट के फ़ैसलों के चलते परियोजनाओं में होने वाली देरी को लेकर गम्भीर दिखाई देते हैं. पिछले हफ़्ते बुधवार को सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए गठित 'प्रगति' (PRAGATI) की बैठक हुई. बैठक में भानुपली - बिलासपुर - बेरी रेलवे लाइन और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रे कॉरिडोर की समीक्षा के दौरान प्रधानमंत्री ने रेलवे, सड़क परिवहन और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों को क़ानून मंत्रालय से परामर्श से अदालत के उन फ़ैसलों की पहचान करने का निर्देश दिया जिसके चलते परियोजनाओं को पूरा करने में देरी हो रही है.


पीएम मोदी ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को इस पूरी कसरत की निगरानी करने का निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे सभी अदालती फ़ैसलों की एक सूची तैयार की जाए जिनसे आधारभूत ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में देरी हुई हो. अहम बात ये है कि पीएम ने इस बात की सूची बनाने का भी निर्देश दिया कि अदालती फ़ैसलों के चलते हुई देरी के कारण देश के सरकारी ख़ज़ाने का कितना नुकसान हुआ.


सूत्रों के मुताबिक़ बैठक में प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट को पूरा करने में हो रही देरी से नाखुशी भी ज़ाहिर की. उन्होंने कैबिनेट सचिव को एक हफ़्ते के भीतर उन अधिकारियों और एजेंसियों की पहचान करने का भी निर्देश दिया जिनके चलते ऐसी परियोजनाओं का काम तय समय पर पूरा नहीं हो पाया.


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