नई दिल्ली: प्रियंका गांधी अब नरेंद्र मोदी की राह पर हैं. वो भी उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में संत रविदास की जयंती पर लंगर चखेंगी. रैदासियों के साथ संगत में भी शामिल होंगी. यूपी में कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद से ही प्रियंका पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक सहेजने में जुटी हैं. पार्टी का दलित वोटर बीएसपी में चला गया है. मुस्लिम समाजवादी पार्टी के साथ हैं. ब्राह्मण बीजेपी के हो गए हैं. ऐसे में कांग्रेस यूपी में बेहद कमजोर हो गई है. वो अब चौथे नंबर की पार्टी भर रह गई है. लोकसभा के चुनाव में तो कांग्रेस अमेठी का किला तक नहीं बचा पाई. राहुल गांधी यहां से चुनाव हार गए.


दलित समाज में संत रविदास का बड़ा मान सम्मान है. देश भर में उनके लाखों अनुयायी फैले हुए हैं. उनकी जयंती में शामिल होकर प्रियंका गांधी इसी समुदाय को मैसेज देना चाहती हैं. दिल्ली चुनाव से निपटते ही उन्होंने अचानक रविदास जयंती में आने का फैसला कर लिया. कमजोर हो रही मायावती ने कांग्रेस को नई उम्मीद दे दी है. उन्हें लगता है इस बिरादरी की घर वापसी हो सकती है. इसीलिए पार्टी ने इस बार संत रविदास की जयंती हर जिले में धूमधाम से मनाने का फैसला किया है. पार्टी की नजर दो साल बाद यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है.


संत रविदास के बहाने दलितों को लुभाने की राजनीति नई नहीं है. पिछले ही बरस पीएम नरेंद्र मोदी भी वाराणसी गए थे. जहां संत रविदास का जन्म हुआ था. तब लोकसभा का चुनाव प्रचार चल रहा था. तब मोदी ने यहां लंगर में खाना खाया था. रविदास मंदिर के लिए 50 करोड़ रुपये देने का एलान भी किया था. रविदास के दोहों का अपने भाषण में जिक्र कर दलितों का मन जीतने की कोशिश की थी. लोकसभा चुनाव में दलितों के एक समुदाय ने उनकी पार्टी बीजेपी के लिए वोट भी किया था. साल 2018 में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ रविदास जयंती में शामिल हुए थे. तब उन्होंने कहा था कि उन्हें पीएम मोदी ने भेजा है.


बीएसपी अध्यक्ष मायावती के बारे में कहा जाता है कि दलित वोट उनके साथ हैं. लेकिन उन्हें भी वाराणसी जाकर रविदास मंदिर में मत्था टेकने पड़ा था. ये बात साल 2007 की है. तब वे यूपी की मुख्यमंत्री थीं. मायावती ने अस्सी घाट के बगल में रविदास घाट और पार्क बनवाया था. प्रियंका के भाई राहुल गांधी भी संत रविदास के दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी वहां लंगर चख चुके हैं.


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