Pulwama Terror Attack Anniversary: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए हमले की तीसरी बरसी के मौके पर शहीद वीर सपूतों को देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है. इस मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शहीदों को याद करते हुए कहा कि उनका बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि पुलवामा के शहीदों को हम कभी भुला नहीं सकते. उनका व उनके परिवारों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा- हम जवाब लेके रहेंगे.
जबकि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वीर जवानों को याद करते हुए कहा कि उनकी बहादुरी और बलिदान भारत को मजबूत और समृद्ध भारत की ओर अग्रसर करता रहेगा. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा- मैं 2019 में आज के दिन पुलवामा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देता हूं. इसके साथ ही, देश की सेवा को लेकर उन्हें याद किया.
अमित शाह बोले- बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा देश
इस मौके पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पुलवामा हमले के शरीदों को याद करते हुए कहा देश आपका सदैव ऋणी रहेगा. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा- पुलवामा के कायरतापूर्ण आतंकी हमले में अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने वाले सीआरपीएफ के बहादुर जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देता हूँ. देश आपके बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा. आपकी वीरता हमें आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने हेतु निरंतर प्रेरित करती रहेगी.
जबकि, बीजेपी अध्यक्ष जेबी नड्डा ने इस मौके पर वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा- पुलवामा में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले में देश की रक्षार्थ अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले अमर वीर जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि. देश आपके बलिदान को ना भुला है और ना कभी भूलेगा. देश के प्रति आपकी निष्ठा और समर्पण हमें सदैव आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने को प्रेरित करेगा.
पुलवामा हमले पर आई किताब
पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को एक आत्मघाती हमलावर द्वारा विस्फोट में उड़ा दी गई बस के चालक जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी और वह किसी अन्य सहकर्मी के स्थान पर आए थे। एक नयी किताब में यह कहा गया है. भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी दानेश राणा वर्तमान में जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं. उन्होंने पुलवामा हमले से जुड़ी घटनाओं पर ‘‘एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड’’ नामक किताब लिखी है जिसमें हमले के पीछे की साजिश का जिक्र किया गया है. हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हो गए थे.
साजिशकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत साक्षात्कार, पुलिस के आरोप पत्र और अन्य सबूतों के आधार पर राणा ने कश्मीर में आतंकवाद के आधुनिक चेहरे को रेखांकित करते हुए 14 फरवरी 2019 की घटनाओं के क्रम को याद करते हुए लिखा है कि कैसे काफिले में यात्रा कर रहे सीआरपीएफ के जवान रिपोर्टिंग समय से पूर्व, भोर होने से पहले ही आने लगे. नियम के अनुसार, अन्य चालकों के साथ पहुंचने वाले अंतिम लोगों में हेड कांस्टेबल जयमल सिंह शामिल थे. ड्राइवर हमेशा सबसे अंतिम में रिपोर्ट करते हैं. उन्हें नींद लेने के लिए अतिरिक्त आधे घंटे की अनुमति है क्योंकि उन्हें कठिन यात्रा करनी पड़ती है. राणा ने लिखा है, ‘‘जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी, वह दूसरे सहयोगी के स्थान पर आए थे.’’
हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित किताब में कहा गया है, ‘‘हिमाचल प्रदेश के चंबा के रहने वाले हेड कांस्टेबल कृपाल सिंह ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था क्योंकि उनकी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली थी. कृपाल को पहले ही पंजीकरण संख्या एचआर49एफ-0637 वाली बस सौंपी गई थी और पर्यवेक्षण अधिकारी ने जम्मू लौटने के बाद उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कहा था। इसके बाद जयमल सिंह को बस ले जाने की जिम्मेदारी मिली.’’ राणा लिखते हैं,'वह एक अनुभवी ड्राइवर था और कई बार राजमार्ग 44 पर वाहन चला चुका था। वह इसके ढाल, मोड़ और कटावों से परिचित था. 13 फरवरी की देर रात, उसने अपनी पत्नी को पंजाब में फोन किया और उसे अंतिम समय में अपनी ड्यूटी बदलने के बारे में बताया. यह उनकी अंतिम बातचीत थी.,'
जवानों में महाराष्ट्र के अहमदनगर के कांस्टेबल ठाका बेलकर भी शामिल थे. उसके परिवार ने अभी-अभी उसकी शादी तय की थी और सारी तैयारियाँ चल रही थीं. बेलकर ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था, लेकिन अपनी शादी से ठीक 10 दिन पहले, उसने अपना नाम कश्मीर जाने वाली बस के यात्रियों की सूची में पाया. राणा लिखते हैं 'लेकिन जैसे ही काफिला प्रस्थान करने वाला था, किस्मत उस पर मेहरबान हो गई. उसकी छुट्टी अंतिम समय में स्वीकृत हो गई थी. वह जल्दी से बस से उतर गया और मुस्कुराया और अपने सहयोगियों को हाथ हिला कर अलविदा कहा। उसे क्या पता था कि यह अंतिम समय होगा.'
जयमल सिंह की नीले रंग की बस के अलावा, असामान्य रूप से लंबे काफिले में 78 अन्य वाहन थे, जिनमें 15 ट्रक, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस से संबंधित दो जैतूनी हरे रंग की बसें, एक अतिरिक्त बस, एक रिकवरी वैन और एक एम्बुलेंस शामिल थे. पुलवामा हमले के बाद, एनआईए, जिसे जांच का जिम्मा सौंपा गया था वह घटना की कड़ियों को जोड़ने में सफल नहीं हो रही थी. हालांकि फोरेंसिक और अन्य वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर प्रारंभिक जांच में कुछ सुराग मिले थे, लेकिन ये यह समझने के लिए पर्याप्त नहीं थे कि अपराधी कौन थे. जब ऐसा लगा कि एनआईए की जांच रुक गई है, तो एजेंसी को एक मुठभेड़ स्थल से एक क्षतिग्रस्त मोबाइल फोन मिला, जहां जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादी मारे गए थे. बरामद फोन में एक एकीकृत जीपीएस था जो तस्वीरों को जियोटैग करता था, जिसमें तस्वीरों और वीडियो की तारीख, समय और स्थान का खुलासा होता था. इस फोन की खोज ने पुलवामा मामले की गुत्थी को खोल दिया.