पुणेः हम अपने घरों में इसीलिए खुलकर सांस ले पाते हैं क्योंकि बॉर्डर पर जवान हमारी सुरक्षा कर रहे हैं. जवान अपना कर्तव्य पूरी तरह निभाते हैं लेकिन हम शायद अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह नहीं निभाते. ऐसा कहना है पुणे की स्कूल टीचर सुमेधा चिथडें का.
इन्होंने 1999 में पुणे के कुछ लोगों के साथ मिलकर सोल्जर्स इंडिपेंडेंड रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन शुरू की थी. इस फाउंडेशन का मकसद जवानों के घरवालों और बच्चों को हर संभव मदद देना और उनका मोटिवेशन करना था. साथ ही इस फाउंडेशन के माध्यम से ये लोग जवानों को बॉर्डर पर दीवाली पर घर की बनी मिठाईयां और रक्षा बंधन पर राखियां इत्यादि भिजवाते हैं.
सुमेधा के पति सेंकेंड रैंक के रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं और बेटा भी आर्मी में ही हैं. इनके घर में ही आर्मी अफसर मौजूद हैं लेकिन बावजूद इसके सुमेधा को लगता है कि ये अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभा पा रही.
दरअसल, सुमेधा ने सियाचीन के बारे में पढ़ा. सियाचीन देश के सबसे कठिन शिखरों में से एक है जहां हर पल जिंदगी और मौत का सामना करना पड़ता है. जब सुमेधा को पता चला कि सिर्फ ऑक्सीजन की कमी के कारण हमारे कई जवान सियाचीन में हर साल मरते हैं. तभी से इन्होंने अपनी फाउंडेशन की मदद से जवानों के लिए कुछ काम करने की सोची. उन्होंने ये जाना कि कैसे वो जवानों की मदद कर सकती हैं.
इसके बाद सुमेधा ने जवानों के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगवाने के बारे में काम करना शुरू किया. अपने पति और अफसरों की मदद से सुमेधा को पता चला कि ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए 1 करोड़ 10 लाख का खर्चा आएगा तो सुमेधा ने इतनी रकम जोड़ने की ठानी. इसके लिए सुमेधा ने सबसे पहले अपने गहने बेचकर सवा लाख रूपए इकट्ठे किए ताकि वे बाकी लोगों को भी बॉर्डर के जवानों की मदद के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए प्रेरित कर सकें. अभी भी सुमेधा इसी कोशिश में है कि जल्द से जल्द रूपए इकट्ठे हो सकें.