'ये प्रॉपर्टी वक्फ की थी और वक्फ की ही रहेगी चाहे मुसलमान...', जमीन को लेकर विवाद पर हाईकोर्ट ने कही ऐसी बात, आप भी जरूर पढ़ें
1968 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा था कि एक बार जब कब्रिस्तान जनता के लिए कब्रिस्तान बन जाता है तो यह वक्फ बन जाता है और किसी गैर-उपयोगकर्ता का इस पर हक नहीं हो सकता.
!['ये प्रॉपर्टी वक्फ की थी और वक्फ की ही रहेगी चाहे मुसलमान...', जमीन को लेकर विवाद पर हाईकोर्ट ने कही ऐसी बात, आप भी जरूर पढ़ें Punjab and Haryana High Court says Muslims using or not this land will be Waqf Property dispute on Takia Kabarastan Mosque Budho Pandher 'ये प्रॉपर्टी वक्फ की थी और वक्फ की ही रहेगी चाहे मुसलमान...', जमीन को लेकर विवाद पर हाईकोर्ट ने कही ऐसी बात, आप भी जरूर पढ़ें](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/11/27/efb17311945ff55ae1567ad9ed6608d61732701151797628_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर देश में छिड़ी बहस के बीच पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि जो भी तकिया, कब्रिस्तान और मस्जिद रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज हैं, वह वक्फ की प्रॉपर्टी रहेंगे. चाहे मुसलमान उसका इस्तेमाल करें या न करें. हाईकोर्ट ने एक ग्राम पंचायत की याचिका पर यह फैसला दिया है, जिसमें वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी गई है. ट्रिब्यूनल ने एक जमीन को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित किया और ग्राम पंचायत को इसके कब्जे से छेड़छाड़ के लिए रोका है.
यह मामला बुधो पुंधेर गांव की ग्राम पंचायत और पंजाब वक्फ बोर्ड और अन्यों के बीच एक विवादित जमीन को लेकर है. जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप शर्मा की बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में अगर कोई जगह तकिया, कब्रिस्तान और मस्जिद के नाम पर दर्ज है तो वो वही रहेगी. चाहे मुस्लिम समुदाय इसका इस्तेमाल न करे. कोर्ट को बताया गया कि विवादित जमीन महाराज कपूरथला ने 1922 में सूबे शाह के बेटों सलामत शा और निक्के शा को दान में दी थी और इसे तकिया, कब्रिस्तान और मस्जिद के नाम पर घोषित कर दिया गया.
शा ब्रदर्स बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए और यह जमीन ग्राम पंचातय के पास चली गई. हालांकि, साल 1966 में बंटवारे के बाद सर्वे किया गया और उस वक्त तैयार किए गए दस्तावेजों में ऑनरशिप कॉलम में ग्राम पंचायत को मालिक बनाया गया और जमीन के वर्गीकरण के कॉलम में इसे ग्राम पंचायत के तकिया, कब्रिस्तान और मस्जिद के तौर पर वर्गीकृत किया गया. रेवेन्यू एंट्री के आधार पर ट्रिब्यूनल ने संपत्ति को गैर मुमकिन मस्जिद, तकिया और कब्रिस्तान के तौर पर वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया.
हाईकोर्ट ने साल 1968 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का सहारा लिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, एक बार जब कब्रिस्तान जनता के लिए कब्रिस्तान बन जाता है तो यह जनता में निहित होता है और वक्फ बन जाता है और किसी गैर-उपयोगकर्ता का इस पर हक नहीं हो सकता, यह हमेशा वक्फ का ही रहेगा, चाहे इसका इस्तेमाल हो या न हो.' हाईकोर्ट ने ग्राम पंचायत की इस मांग को भी खारिज कर दिया कि वक्फ ट्रिब्यूनल मुकदमे का फैसला करने और विवादित जमीन पर आदेश पारित करने का हकदार नहीं है.
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