असली और नकली दवाओं बीच का अंतर कैसे समझें? हमारे देश में नकली दवाओं का बिजनेस तेजी से बढ़ रहा है. आजकल, बाजार में फार्मा कंपनियों की बाढ़ आ गई है आए दिन खबर आती है कि फलां शहर के दुकान सें नकली दवा पकड़ी गई. इसके अलावा कोरोना महामारी के बाद से ही ऑनलाइन दवा लेने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है. एक तरफ जहां ये तरीका आसान और सुविधाजनक है. वहीं दूसरी तरफ ऑनलाइन दवा कारोबार सेहत के लिए खतरनाक भी है.
कई बार आपके दिमाग में यह ख्याल भी आता होगा कि आप जो दवा ले रहे हैं वह सुरक्षित है या नहीं. लेकिन आपके पास विक्रेता पर भरोसा करने के अलावा कोई और रास्ता बचता भी नहीं है. इसी मसले को हल करने और नकली दवाओं के इस्तेमाल को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने इस समस्या का एक समाधान ढूंढ निकाला है. दरअसल सरकार एक ट्रैक एंड ट्रेस मैकेनिज्म (Track and Trace Mechanism) पर काम कर रही है जिससे नकली दवाओं के इस्तेमाल पर नकेल कसा जा सकेगा.
केंद्र सरकार ने देश में बढ़ रहे नकली और घटिया दवाओं के फ्रॉड को रोकने और क्वालिटी सुनिश्चित करने के लिए सबसे ज्यादा बेची और खरीदी जाने वाली दवाओं के लिए ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ व्यवस्था शुरू करने की योजना बनाई है. इस व्यवस्था के पहले स्टेज में में दवा कंपनियां सबसे ज्यादा बेचने वाली 300 दवाओं की प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग लेबल पर बारकोड या क्यूआर (quick response-QR) कोड प्रिंट करेंगी या चिपकाएंगी.
प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग में बोतल, कैन, जार या ट्यूब शामिल हैं. जिसमें बिक्री के लिए दवाएं होती हैं. TOI के मुताबिक इसमें 100 रुपये प्रति स्ट्रिप से ज्यादा की कीमत वाली बड़ी संख्या में बिकने वाली एंटीबायोटिक्स, कार्डियक, पेन किलर और एंटी-एलर्जी दवाओं को शामिल किया जा सकता है.
TOI में छपी खबर के मुताबिक सरकार ने ट्रैक एंड ट्रेस मैकेनिज्म ऐप की कल्पना दशकों पहले कर ली थी. लेकिन घरेलू दवा इंडस्ट्री में तैयारियों की कमी के कारण यह ठंडे बस्ते में चला गया था. ये ऐप अभी आया नहीं है लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक जल्द ही लॉन्च हो सकता है. इस ऐप की मदद से दवा खरीदने वाला व्यक्ति इसकी क्वालिटी के बारे में जान पाएगा.
कैसे काम करेगा ऐप
इसी साल जून के महीने में दवा बनाने वाली फार्मा कंपनियों को अपनी प्राइमरी या सेकेंडरी पैकेजिंग पर बारकोड या क्यूआर कोड लगाने के लिए कहा गया था. इस कोड में प्रोडक्ट की पूरी जानकारी डिटेल में दी जाएगी.
एक बार यह व्यवस्था लागू हो गई तो उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा विकसित एक पोर्टल (वेबसाइट) पर इस QR कोड को दर्ज करके दवा की असली है या नकली इसकी जांच कर सकेगा और बाद में मोबाइल फोन या टेक्स्ट मेसेज की मदद से इसे ट्रैक भी कर सकेगा.
सूत्रों की मानें तो प्रस्तावित व्यवस्था से दवा बनाने वाली कंपनियों और ग्राहकों को नकली दवा की पहचान करने का मौका मिलेगा. इस बीच फार्मा इंडस्ट्री के एक जानकार ने कहा कि इस सिस्टम को लागू करने से लागत तीन से चार फीसदी बढ़ जाएगी.
क्यूआर कोड में क्या होगा
इस क्यूआर कोड में दवा की ओरिजिन से लेकर इसकी पूरी सप्लाई चेन की जानकारी होगी. कोई भी कंज्यूमर दवा लेने के बाद यूनिक कोड नंबर को एसएमएस कर सकेगा. टेक्स्ट मैसेज करते ही दवा की ओरिजिनल कंपनी की सारी जानकारी कंज्यूमर के पास होगी. इसके अलावा इसके सप्लाई चेन की जानकारी भी मिल जाएगी. इस तरह से आप नकली दवा लेने की किसी भी संभावना से बच जाएंगे।
नकली दवा के मामले
देश में कोरोना महामारी के आने के बाद से एक तरफ जहां लोग तेजी से किसी भी बीमारी के चपेट में आ जा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ नकली और घटिया दवाओं के पकड़े जाने के मामले भी बढ़ने लगे हैं. ASSOCHAM की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नकली दवाओं का कारोबार करी 10 बिलियन डॉलर यानी एक हजार करोड़ रुपए से ऊपर का है.
हाल ही में तेलंगाना सरकार ने एबट कंपनी की थायराइड की दवा Thyronorm को नकली और घटिया बताया था. हालांकि एबट कंपनी ने दावा किया है कि जिस दवा की तेलंगाना सरकार ने बात की है वह नकली है. उनका कहना है कि उस दवा को उनकी कंपनी ने न तो बनाया था और न ही बेचा था.
इसी तरह अगस्त के महीने में हिमाचल प्रदेश के बद्दी में नकली दवा बनाने वाले एक रैकेट का पर्दाफाश हुआ था. पकड़ा जाने वाला ये रैकेट ग्लेनमार्क (Glenmark) की ब्लड प्रेशर की दवा Telma-H बना रहा था.
अगस्त में उत्तराखंड में नकली दवाओं के अवैध कारोबार पर नकेल कसने में जुटी सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 साल में पहाड़ी राज्यों में 40 करोड़ से ज्यादा नकली दवाओं की खेप पकड़ी गई है.
देहरादून, नैनीताल सहित बॉर्डर इलाके में ऑनलाइन दवा ऑर्डर करने वाले लोगों के घर में नकली दवाएं पहुंच रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट की माने तो गरीब और कम आय वाले देशों में 10 फीसदी मेडिकल प्रॉडक्ट्स घटिया और नकली है.