ED के छापे से छूट जाते हैं नेताओं के पसीने, अब उसके चीफ पर सुप्रीम कोर्ट में क्यों उठे सवाल?
ईडी के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाये जाने को लेकर सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कार्यकाल केवल असाधारण परिस्थितियों में बढ़ाने के अपने 2021 के फैसले पर फिर से विचार करेगा. मामला प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा की दोबारा से नियुक्ति का है.
सुप्रीम कोर्ट ने मिश्रा को तीसरी बार सेवा विस्तार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
8 सितंबर, 2021 को न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की बेंच ने मिश्रा के कार्यकाल को दो साल से आगे बढ़ाने के केंद्र के आदेश को बरकरार रखा था.
हालांकि, बेंच ने कहा था कि सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने वाले अधिकारियों के कार्यकाल में विस्तार केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए. विस्तार थोड़े समय के लिए होना चाहिए न कि अनिश्चित काल के लिए.
अदालत ने गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि इसकी जांच होनी चाहिए कि क्या मिश्रा के तीन साल के कार्यकाल का फैसला सुप्रीम कोर्ट के 1997 के फैसले के विपरीत है, जिसमें ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुखों के लिए न्यूनतम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया है.
मामले में सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था,‘ केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और अदालत के 1997 के फैसले को धारा 25 (डी) में शामिल किया गया है, जिसमें कहा गया है, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 या इस समय लागू किसी भी कानून में प्रवर्तन निदेशक पदभार संभाले जाने के बाद से कम से कम दो वर्ष की अवधि तक पद पर बने रहेंगे.’
उन्होंने कहा कि 1997 के फैसले में न्यूनतम कार्यकाल का प्रावधान है. इसमें दो साल से अधिक के कार्यकाल को लेकर कुछ नहीं कहा गया है.
ईडी प्रमुख का कार्यकाल
संजय कुमार मिश्रा को 19 नवंबर, 2018 के एक आदेश के बाद दो साल के लिए दोबारा से पद पर नियुक्त किया गया था. 13 नवंबर, 2020 को केंद्र ने उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया.
एनजीओ कॉमन कॉज ने एक जनहित याचिका दायर कर 13 नवंबर, 2020 के आदेश को इस आधार पर रद्द करने की मांग की कि मिश्रा का तीन साल का कार्यकाल सीवीसी अधिनियम की धारा 25 का उल्लंघन करता है.
नवंबर 2021 में मिश्रा का एक साल का विस्तार समाप्त होने के साथ, तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अध्यादेशों पर हस्ताक्षर किए.
इन अध्यादेश में सीबीआई और ईडी को नियंत्रित करने वाले कानूनों में संशोधन किया गया. जिससे सरकार को ये ताकत मिल गई कि वो प्रवर्तन निदेशालय के दोनों प्रमुखों को उनके पदों पर कायम रख सकते हैं.
साथ ही एक साल का एडिशनल विस्तार तब तक जारी रखा जाएगा जब तक कि वे प्रमुख के रूप में पांच साल पूरे नहीं कर लेते.
ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
न्यायमूर्ति गवई ने सोमवार को कहा कि उनका मानना है कि 2021 के मामले में सही फैसला नहीं किया गया है. फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है. उन्होंने कहा कि तब मामले में विस्तार का सवाल नहीं था.
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल कर रहे थे. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने मिश्रा की प्रारंभिक नियुक्ति और विस्तार करने की कोशिश की थी, अब न्यायमूर्ति गवई ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 2021 का फैसला केवल प्रारंभिक नियुक्ति से संबंधित है.
मिश्रा इसी साल नवंबर में ईडी प्रमुख के रूप में पांच साल पूरे करेंगे. मिश्रा की सेवा में विस्तार को लेकर केंद्र ने कहा कि वैश्विक आतंकी वित्तपोषण निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा लंबित समीक्षा की वजह से ये विस्तार दिया गया था.
वहीं केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘यह अधिकारी किसी राज्य के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) नहीं हैं, बल्कि एक ऐसे अधिकारी हैं जो संयुक्त राष्ट्र में भी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस अदालत को उनके कार्यकाल के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और (वैसे भी) वह नवम्बर के बाद उस पद पर नहीं होंगे.
गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि विस्तार को अपवाद की स्थिति में ही दिया जा सकता है, न कि नियमित आधार पर.
कैसे होती है ईडी चीफ की नियुक्ति
- ईडी निदेशक की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के अनुसार की जाती है.
- केंद्र एक समिति की सिफारिश पर निदेशक की नियुक्ति करता है, जिसके अध्यक्ष केंद्रीय सतर्कता आयुक्त होते हैं.
- समिति के अन्य सदस्य वित्त, गृह और कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालयों का सचिव होते हैं.
- कार्यकाल "दो साल से कम नहीं" होना चाहिए, और किसी भी स्थानांतरण को नियुक्ति समिति द्वारा मंजूरी दी जानी चाहिए.
मामला सुप्रीम कोर्ट कब पहुंचा
- साल 2020 में जब ईडी के मौजूदा निदेशक एसके मिश्रा को एक साल का विस्तार दिया गया, तो एक एनजीओ ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. ये ईडी निदेशक के विस्तार को लेकर अपनी तरह का ऐसा पहला मामला बना.
- तब के फैसले में अदालत ने कहा कि "दो साल से कम नहीं" की व्याख्या "दो साल से अधिक नहीं" के रूप में नहीं की जा सकती है.
- यह भी स्पष्ट किया गया कि मिश्रा को आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा, और उनका कार्यकाल नवंबर 2021 में समाप्त होना चाहिए.
- अदालत ने ये भी कहा कि इस तरह के किसी भी विस्तार की सिफारिश एक समिति द्वारा की जाएगी, जो लिखित रूप में दर्ज करेगी कि यह "राष्ट्रीय हित" में होगा.
मामले पर विपक्ष का रवैया
साल 2021 में कांग्रेस के मनीष तिवारी ने इस मामले पर सवाल उठाते कहा था कि इस तरह का फैसला किसी भी कानून को नष्ट करने जैसा है. मोदी सरकार पसंदीदा रास्ता अपनाने के लिए अध्यादेश पारित कर देती है और तमाम तरह की जांच को दरकिनार कर दिया जाता है. कांग्रेस के कोरमैन अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट करके कहा था, 'शीर्ष अदालत ने इस पर नाराजगी जताई है.
पार्टी ने यह भी कहा था कि इस तरह का कोई भी कदम प्रमुख पदों पर बैठे लोक सेवकों को सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति उनकी ईमानदारी के एवज में दिया गया एक तोहफा है. जो विपक्ष को अपमानित करने जैसा महसूस हो रहा है.
क्या है प्रवर्तन निदेशालय, ये कब और क्यों बनाया गया ?
प्रवर्तन निदेशालय या ईडी एक बहुअनुशासनिक संगठन है जो आर्थिक अपराधों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जांच के लिए भारत सरकार द्वारा बनाया गया है.
01 मई, 1956 को आर्थिक कार्य विभाग के नियंत्रण में एक प्रवर्तन इकाई के रूप में इस निदेशालय की स्थापना हुई थी. साल 1957 में इस इकाई का नाम बदलकर 'प्रवर्तन निदेशालय' हो गया.
ये भारत सरकार की एक आर्थिक खुफिया एजेंसी की तरह काम करता है. शुरुआती दौर में ये निदेशालय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अधीन था. साल 1960 से ये भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के नियंत्रण में काम करता है.
ईडी का मुख्यालय और दूसरे दफ्तर कहाँ हैं?
ईडी का मुख्यालय दिल्ली में है. इसके अलावा ईडी के पांच क्षेत्रीय कार्यालय भी है जो मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और चंडीगढ़ में है. इन क्षेत्रीय कार्यालयों के प्रमुख प्रवर्तन निदेशालय के विशेष निदेशक होते है जो अपने क्षेत्र में आने वाले प्रवर्तन निदेशालय के सभी जोनल और सब जोनल कार्यालयों का काम देखते है.
किन कानूनों के तहत काम करता है ईडी
1- प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट, 2002(पीएमएलए): इस कानून का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग या धन शोधन को रोकने के लिए, उससे प्राप्त या शामिल संपत्ति को जब्त करने के लिए, साथ ही उससे जुड़े मामलों के लिए किया जाता है.
ईडी धन शोधन के अपराधों की जांच इसी कानून के इस्तेमाल से करता है. संपत्ति की कुर्की, जब्ती की कार्रवाई और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलना इसमें प्रमुख है.
2- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम,1999 (फेमा): यह कानून विदेशी व्यापार और भुगतान की सुविधा से संबंधित कानूनों को एकीकृत और संशोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए भी इन कानून का इस्तेमाल होता है.
प्रवर्तन निदेशालय का काम फेमा के उल्लंघन के दोषियों की जांच करना और इसमें शामिल राशि का तीन गुना तक जुर्माना लगाना है.
3- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम,2018 (एफ.ई.ओ.ए): यह कानून उन आर्थिक अपराधियों को ध्यान में रखकर बनाया गया था जो आर्थिक अपराध करने बाद भारत से भाग जाते है. ईडी इसी कानून के तहत ऐसे अपराधियों को वापस भारतीय कानून की प्रक्रिया में लाने का काम करता है.
साल 2020 में ‘प्रवर्तन निदेशालय’ ने ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ के तहत हीरा कारोबारी नीरव मोदी की लगभग 329.66 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की. ऐसा पहली बार था जब देश में ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ के तहत किसी संपत्ति को जब्त की गई.
इस कानून के तहत 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक की धोखाधड़ी करने वाले भगोड़ों को रखा गया है.
4- निरस्त विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973: इस कानून को भारत में विदेशी भुगतानों पर नियंत्रण लगाने और विदेशी मुद्रा का सही इस्तेमाल करने के लिया बनाया गया था. वर्तमान में यह कानून लागू नहीं है पर अधिनियम के तहत 31.05.2002 तक जारी कारण बताओ नोटिस का उल्लंघन होने पर ईडी कार्रवाई करता है.
5- विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी अधिनियम 1974: इस कानून के तहत ईडी को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम,1999 (फेमा) के उल्लंघनों के संबंध में निवारक निरोध (प्रिवेंटिव डिटेंशन) के मामलों को प्रायोजित करने का अधिकार है.