(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
इन आंकड़ों से समझिए महिला सुरक्षा को लेकर राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में कितना अंतर
2012 में हुई घटना के बाद कानून को सुदृढ़ करने का काम भी किया गया और ऐसी दुर्घटनाएं ना हो उसको रोकने के लिए निर्भया फंड भी बना दिया गया.
नई दिल्ली: हैदराबाद में हुई घटना ने एक बार फिर देशभर में महिला सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. एक ऐसी घटना जिसने पूेर देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर हम अपने देश में कितने सुरक्षित हैं? साल 2012 में जब दिल्ली में चलती बस में निर्भया के साथ बर्बरता पूर्ण तरीके से बलात्कार हुआ और बाद में देश की बेटी ने अपनी जान गंवा दी उसके बाद हजारों लाखों लोग सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर में हाथ में मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतरे. इस उम्मीद के साथ कि भविष्य में इस तरीके की कोई घटना ना हो.
2012 में हुई घटना के बाद कानून को सुदृढ़ करने का काम भी किया गया और ऐसी दुर्घटनाएं ना हो उसको रोकने के लिए निर्भया फंड भी बना दिया गया. निर्भया फंड का मकसद था कि ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए पहले से ही जो कदम उठाए जाने चाहिए वह उठाए जा सके. इसके लिए हर साल राज्यों को केंद्र की तरफ से करोड़ों रुपए भी दिया जाने लगा.
लेकिन विडंबना यह है कि राज्य सरकारें इस पैसे को खर्च तक नहीं कर पा रही हैं. इस बात का खुलासा हुआ है लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं विकास मंत्रालय की तरफ से दिए गए जवाब में. जवाब में जानकारी दी गई कि केंद्र सरकार की तरफ से हर साल राज्यों को करोड़ों रुपए निर्भया फंड के नाम पर दिया जाता रहा है लेकिन अधिकतर राज्य ऐसे हैं जिन्होंने उस पैसे का अब तक सही इस्तेमाल तक नहीं किया गया है. लोकसभा में दिए गए इस जवाब से पता चलता है कि देश के 6 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जिन्होंने करोड़ों रुपए में से 1 रुपया भी खर्च नहीं किया है. इनमें महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, और दादर नागर हवेली भी शामिल हैं. वहीं देश के बाकी राज्यों में भी निर्भया फंड को लेकर स्थिति बहुत बुरी है इसलिए पता चलता है कि देश के बाकी राज्य भी निर्भया फंड को लेकर कितने गंभीर हैं.
लोकसभा में सामने आये अनुमानित आंकड़े के मुताबिक-
आंध्र प्रदेश ने अब तक 20 करोड़ में से 8 करोड़ अरुणाचल प्रदेश ने 8 करोड़ में से 2 करोड़, आसाम ने 20 करोड़ों में से 3 करोड़, बिहार 22 करोड़ में से 7 करोड़, छत्तीसगढ़ 16 करोड़ में से 7.5 करोड़, गोवा 7 करोड़ में से 2 करोड़, गुजरात 70 करोड़ में से 1 करोड़, हरियाणा 16 करोड़ में से 6 करोड़, हिमाचल प्रदेश 11 करोड में से 3 करोड़, जम्मू कश्मीर 12 करोड़ में से 3 करोड़, झारखंड के 15 करोड़ में 4 करोड़, कर्नाटक के 191 करोड़ों में से 13 करोड़, केरल के 19 करोड़ में से 4 करोड़, मध्य प्रदेश के 43 करोड़ों में से 6 करोड़, महाराष्ट्र 149 करोड़ों में से एक पैसा भी नहीं, मणिपुर 8 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं, मेघालय 6 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं, मिजोरम 8 करोड़ में से 5 करोड़, नागालैंड 6 करोड़ में से 3 करोड़, ओडिशा 22 करोड़ में से 58 लाख, पंजाब 20 करोड़ों में से 3 करोड़, राजस्थान 33 करोड़ में से 10 करोड़, सिक्किम 6 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं, तेलंगाना 10 करोड़ में से 4 करोड़, तमिलनाडु 19 करोड़ में से 6 करोड़, त्रिपुरा 7 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं, उत्तर प्रदेश 119 करोड़ में से करीबन 4 करोड़, उत्तराखंड 9 करोड़ में से 7 करोड़, पश्चिम बंगाल 75 करोड़ में से 4 करोड़, अंडमान निकोबार 6 करोड़ में से 1.5 करोड़, चंडीगढ़ 7 करोड़ में से 2.6 करोड़, दादरा नगर हवेली 4 करोड़ में से 1.5 करोड़, दमन दीव 4 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं, दिल्ली 390 करोड़ में से 19 करोड़, लक्षदीप 6 करोड़ में से 76 लाख, पुडुचेरी 5 करोड़ में से 1 करोड़ खर्च किया है.
इन आंकड़ों से पता चलता है कि भले ही सरकारें महिला सुरक्षा को लेकर दावे कितने ही क्यों ना करें लेकिन कोई भी राज्य सरकार इस को लेकर गंभीर नहीं है. निर्भया फंड को लेकर सामने आया यह आंकड़ा एक राजनीतिक उदासीनता को भी दिखाता है. 2012 के निर्भया कांड से लेकर 2019 के हैदराबाद की महिला डॉक्टर के बलात्कार और वीभत्स हत्या के मामले तक सभी राजनीतिक दलों ने राजनीति खूब की, संवेदनाएं जताई, कड़े कानून की बात कही और दोषियों को जल्द से जल्द और कड़ी से कड़ी सजा की वकालत की, लेकिन जब खुद ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास करने की बारी आई तो सब उसमें विफल होते ही नजर आए. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए निर्भया फंड का उचित इस्तेमाल हो. जिससे कि भविष्य में कोई बेटी देश में यह सवाल ना पूछे कि आखिर हम अपने ही देश में असुरक्षित क्यों हैं?
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