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सवालों के घेरे में कनाडाई पीएम के स्वागत का तरीका, सात दिन के भारत दौरे पर हैं ट्रूडो

कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो सात दिनों के भारत दौरे पर हैं. भारत भ्रमण के लिहाज़ से ट्रूडो और उनके परिवार के लिए ये दौरा काफी अच्छा साबित हो रहा है लेकिन भारतीय सरकार ने जो रुख अपनाया है उससे ये ट्रूडो का ऑफ़िशियल विज़िट तो नहीं नज़र आता. दरअसल ना तो पीएम मोदी और ना ही उनके कद से दूर-दूर तक ताल्लुक रखने वाला कोई भी भारतीय नेता ट्रूडो की अगवानी में शामिल हुआ है. ऐसी ही बातें हैं जो ट्रूडो के भारत दौरे को सवालों के घेरे में ला खड़ा करती हैं.

नई दिल्ली: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भारत आए दो दिन से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. मगर मेहमान प्रधानमंत्री की यह सात दिनी यात्रा फिलहाल एक पारिवारिक पर्यटन टूर से ज्यादा नज़र नहीं आ रही, जिसमें मेहमान को उत्साहित है लेकिन मेजबान यानी भारत कुछ उदासीन दिख रहा है. दिल्ली में ट्रूडो परिवार की अगवानी से लेकर आगरा, अहमदाबाद और मुंबई में एक मेहमान प्रधानमंत्री ट्रूडो के कार्यक्रमों को लेकर मेजबान की गर्मजोशी कुछ हालिया विदेशी मेहमानों की यात्राओं के मुकाबले फीकी नजर आ रही है.

ट्रूडो के लिए मोदी ने नहीं तोड़ा प्रोटोकॉल

सवालों के घेरे में कनाडाई पीएम के स्वागत का तरीका, सात दिन के भारत दौरे पर हैं ट्रूडो

17 फरवरी को भारत पहुंचे प्रधानमंत्री ट्रूडो की अगवानी के लिए कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को भेजा गया था. रविवार को ट्रूडो परिवार की आगरा यात्रा के दौरान उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ नदारद दिखे. वहीं कनाडाई प्रधानमंत्री की अहमदाबाद यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से एयरपोर्ट पर हुई उनकी मुलाकात महज एक औपचारिकता नजर आई.

इस बीच अटकलों और अफवाहों को दरकिनार करते हुए 21 फरवरी को ट्रूडो की अमृतसर यात्रा के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का उनसे मुलाकात का कार्यक्रम ज़रूर तय हो गया है. सात दिनों की इस यात्रा में प्रधानमंत्री ट्रूडो की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात छठे दिन यानी 23 फरवरी को होगी.

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि कहीं कनाडा के युवा प्रधानमंत्री की मेजबानी में जानबूझकर कोई कोताही तो नहीं बरती जा रहा है. इस बाबत अटकलें चल लगाई जा रही हैं कि खालिस्तान के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ट्रूडो और उनके कई नेताओं का नजरिया भारत को खटकने वाला रहा है.

खालसा डे परेड में शामिल हुए थे ट्रूडो

 सवालों के घेरे में कनाडाई पीएम के स्वागत का तरीका, सात दिन के भारत दौरे पर हैं ट्रूडो

आपतो बता दें कि बीते साल कनाडा में कट्टरपंथी विचारों का समर्थन करने वाले टोरंटो के गुरुद्वारा द्वारा निकाली गई खालसा डे परेड में ट्रूडो भी शरीक हुए थे. इतना ही नहीं इस परेड में उस राजनेता का भी सम्मान किया गया था जिसने 1984 के सिख दंगों में भारत को नरसंहार का दोषी बताने वाला प्रस्ताव ओंटोरियो विधानसभा में रखा था.

ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी सरकार मेहमान युवा प्रधानमंत्री के आगे खालिस्तान मुद्दे के प्रति हमदर्दी जताने को लेकर अपनी नाखुशी दर्ज करा रही है और यही वजह है कि उनके अगवानी में वैसी गर्मजोशी नज़र नहीं आती जैसी अमेरिका से इस्राइल और ईरान से चीन तक के राष्ट्र प्रमुखों की मेजबानी में नज़र आती रही है.

विशेष रिश्तों के लिए टूटते हैं प्रोटोकॉल

सवालों के घेरे में कनाडाई पीएम के स्वागत का तरीका, सात दिन के भारत दौरे पर हैं ट्रूडो

File Photo

हालांकि इन अटकलों के बीच प्रोटोकॉल परंपराओं के जानकारों का मत है कि प्रधानमंत्री का किसी मेहमान नेता की अगवानी में एअरपोर्ट पहुंचना कोई नियम नहीं है. ऐसा केवल कुछ खास नेताओं के सम्मान में और रिश्तों में विशेष गर्मजोशी का सबूत देने के लिए किया जाता है. लिहाज़ा इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू या अप्रैल 2017 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की अगुवाई में पीएम मोदी का एअरपोर्ट पहुंचना अपवाद बताया जा रहा है.

आम तौर पर मेहमान नेताओं की अगवानी में मिनिस्टर इन वेटिंग की भूमिका राज्य मंत्री स्तर के नेता ही निभाते हैं. इतना ही नहीं जानकारों की दलील है कि किसी भी VVIP मेहमान नेता का कार्यक्रम उनके देश के साथ मिलकर तय होता है, जिसमें उनकी सहमति और असहमति का बराबर स्थान होता है. बहरहाल, कूटनीति कहने से ज्यादा बताने और जताने की कला है. ऐसे में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आगे यह साफ है कि भारत अतिथि देवो भव: तो कहता है लेकिन साथ ही यह उम्मीद भी करता है कि उसका मेहमान भी मेजबान की भावनाओं का ख्याल रखे.

कनाडा में भारतीय मूल के 12 लाख से अधिक लोग रहते हैं जो कनाडाई आबादी का तीन फीसद हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार 6 अरब डॉलर से ज्यादा का है. भारतीय कंपनियों के कनाडा में निवेश 2 अरब डॉलर से अधिक का है. ऐसे में दोनों देश चाहेंगे कि उनके रिश्तों में खटास मत आए लेकिन किसी भी देश के लिए उसके खिलाफ़ चल रहे अलगाववाद की मुहिम को कहीं से भी समर्थन मिलना नाकाबिले बर्दाश्त है और संभव है कि भारत के इस इशारे को कनाडा गंभीरता से लेगा.

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