राज की बातः किसान आंदोलन निपटने के बाद हरियाणा की सत्ता का चेहरा बदलने के कयास तो न जाने कब के लग रहे हैं. कयास कभी सही साबित होते हैं, लेकिन ज्यादातर गलत भी. कयासों से उलट सियासी हकीकत पर आएं तो हरियाणा में सत्ता या चेहरे में बदलाव हो न हो, लेकिन राज्य की सियासत करवट तेजी से बदल रही है. इस सियासी करवट के असर तात्कालिक से ज्यादा दूरगामी होंगे. राज्य सरकार के भविष्य पर अभी इतना असर नहीं होगा, लेकिन अब जो हलचल होने वाली है उससे हरियाणा का कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं रहेगा और दिल्ली तक हलचल की लहरें उठती रहेंगी.


इस हलचल की इबारत लिख रही है हरियाणा की सियासत इस बूढ़ा शेर ओमप्रकाश चौटाला की रिहाई. पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के पुत्र और सीनीयर चौटाला का भ्रष्टाचार के मामले में शुक्रवार को जेल से छूटने के साथ ही हरियाणा की सियासत में चक्रवात की गारंटी है. जैसा की मैंने पहले कहा कि सीनीयर चौटाला का आना सिर्फ उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ही नहीं, बल्कि कांग्रेस और बीजेपी सभी के समीकरणों को न सिर्फ प्रभावित करेगा, बल्कि उसकी आहट भी साफ सुनाई पड़ने लगी है. सीनीयर चौटाला का अगला कदम क्या होगा, इस राज से परदा बाद में उठाएंगे. पहले बात करते हैं चौटाला की रिहाई की आहट भर से कैसे कांग्रेस में हलचल मची है.  


राज की बात ये कि चौटाला के बाहर आने की आहट के साथ ही कांग्रेस के राज्य में फिलहाल सबसे कद्दावर नेता और विधानसभा में पार्टी के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हाईकमान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. हरियाणा में किसान आंदोलन मुख्यतौर पर जाट समुदाय के लोगों ने ही संभाल रखा है. जाटों के बीच खट्टर सरकार और केंद्र के खिलाफ भरसक गुस्सा की बार दिखा है. दो बार के मुख्यमंत्री हुड्डा फिलहाल कांग्रेस की तरफ से इसी गुस्से को भुनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते. जब तक ओमप्रकाश चौटाला जेल में थे, तब तक हुड्डा पार्टी में शक्तियों के विकेंद्रीकरण और आपसी समन्वय पर कायम रहे.


बेटे दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा पहुंचाने के एवज में उन्होंने सेलजा को कांग्रेस का हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष बनने पर सहमति दी. हुड्डा को ये पता था कि जाट बीजेपी से नाराज हैं. ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला जेल में हैं. अजय चौटाला का बेटा दुष्यंत चौटाला बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर सरकार में है, लिहाजा जाटों का उससे मोह भंग है. दूसरा हुड्डा सीबीआई की पंचकूला में विशेष अदालत में भ्रष्टाचार के मामले में जूझ रहे थे. इस सभी कारणों से हुड्डा कांग्रेस के भीतर बहुत ज्यादा ताकत का प्रदर्शन नहीं कर रहे थे.


राज की बात है कि हुड्डा ने पहले तो हाईकोर्ट से विशेष अदालत में चल रहे मुकदमे पर स्टे यानी रोक का फैसला करवाने में सफलता पाई. इसके साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए अपनी दावेदारी शुरू कर दी. ये सच है कि विपक्ष में किसी चेहरे के साथ अगर सबसे ज्यादा विधायक और नेता हैं तो वो हुड्डा हैं. हुड्डा को लगता है कि यदि प्रदेश अध्यक्ष वो बने तो पूरे हरियाणा में सरकार विरोधी लोग उनके साथ जुटेंगे. साथ ही यूथ कांग्रेस के भी चुनाव होने हैं, उसमें उन्हें अपनी टीम बनाने में मदद मिलेगी. यदि सीबीआई हुड्डा पर शिकंजा कसती है तो बेटा दीपेंद्र आगे विरासत तो संभालेगा ही. साथ ही हुड्डा को सरकार पर दमनकारी नीति का आरोप लगाकर सहानुभूति मिलेगी सो अलग. इसीलिए, चौटाला के बाहर आते ही हुड्डा ने हाईकमान पर दबाव बनाने की कोशिश कर दी है, ताकि जाट वोटों के बीच में वो सबसे बड़े चेहरे के रूप में रहें.


अब राज की बात में ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई और आगे की रणनीति पर बात. आपको पता ही है कि किसान आंदोलन के नाम और आंदोलनकारियों के आह्वान पर सिरसा की एलनाबाद सीट से ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. उस सीट पर उपचुनाव होना है. राज की बात ये है कि सीनीयर चौटाला को उस सीट से लड़ाने की जमीन तैयार करने की कोशिश हो रही है. वैसे तो भ्रष्टाचार के मामले में सजायाफ्ता मुजरिम को छह साल तक चुनाव लड़ना प्रतिबंधित है. इसकी काट के लिए कानूनी विमर्श जारी है और जल्दी इनेलो चुनाव लड़ने पर रोक को हटाने के खिलाफ चुनाव आयोग के सामने जाने वाली है.


राज की बात ये कि इनेलो ने पूर्वोत्तर के एक मुख्यमंत्री का केस लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री भी भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सजा काट कर आए थे. उन्हें लगभग एक साल बाद चुनाव लडऩे की इजाजत दे गई थी. फिर ओम प्रकाश चौटाला की उम्र अब 88 साल है और साथ ही 70 प्रतिशत वह शारीरिक रूप से अशक्त हैं. इन्हीं सब आधार पर चुनाव आयोग के पास चौटाला जाएंगे. यहां बताना जरूरी है कि चौटाला यदि ऐलानाबाद से लड़ने के लिए पात्र पाए जाते हैं तो हरियाणा में हुड्डा के सामने सबसे कद्दावर जाट नेता खड़ा हो जाएगा.


इतना ही नहीं, चुनाव लड़ने की बात तो अलग है, लेकिन चौटाला ने जेल से छूटने के बाद इस उम्र में भी तूफानी दौरे का मन बना लिया है. ध्यान रहे कि मुख्यमंत्री और मंत्री तक तमाम इलाकों में अपने हेलीकाप्टर नहीं उतार पा रहे. सरकार के लोग गांवों में घुस तक नहीं पा रहे. जिस तरह का माहौल है और चौटाला जैसे वक्ता हैं और अनुभव है, उससे पूरे प्रदेश में सियासी माहौल तो गरमाना तय है. खट्टर सरकार में शामिल दुष्यंत चौटाला वैसे ही देवीलाल की विरासत से अलग करार दे दिए गए हैं. अब सीनीयर चौटाला कहीं सदन पहुंच जाते हैं तो वह सदन में न सिर्फ सबसे वरिष्ठ होंगे, बल्कि वहां भी सीन अलग होगा.