Raaj Ki Baat: तालिबानी कब्जे के बाद ड्राई फ्रूट्स का संकट बढ़ा, अफगानिस्तान में आर्थिक व्यवस्था पड़ने लगी ढीली
Raaj Ki Baat: 15 अगस्त के बाद पाकिस्तान के रास्ते वाघा सीमा पर सूखे मेवे का एक भी ट्रक नहीं पहुंचा है जबकि हर साल लगभग 30 हजार ट्रक मेवा भारत में आता रहा है.

Raaj Ki Baat: तालिबान के आतंकी तार में उलझने के बाद अफगानिस्तान की हालत खराब है. मानवाधिकार के मोर्चे से लेकर देश के आर्थिक हालात तक के होश फाख्ता हैं. इन हालातों को तालिबान समझ भी रहा है, दुनिया की नजरों में खुद को समझदार, सुलझा और दमदार शासन देने वाला साबित करने की कोशिश भी कर रहा है लेकिन फिलहाल हालात बिगड़े हुए हैं और ये कब समान्य होंगे इस मोर्चे पर भी घोर अनिश्चितता बनी हुई है. अफगानिस्तान संकट के बीच एक बड़ी महत्वपूर्ण राज की बात हम आपको बताने जा रहे हैं. ये राज की बात सेहत से जुड़ी हुई है. ये सेहत आर्थिक भी है और शारीरिक भी है. राज की बात ये है कि अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद मेवे यानि की ड्राई फ्रूट्स का संकट खड़ा हो गया है.
दरअसल, अफगानिस्तान मेवों का बड़ा उत्पादक और निर्यात है और उसकी अर्थव्यवस्था में ड्राईफ्रूट्स का बड़ा योगदान रहता है. अब जब अफगानिस्तान में अस्थिरता के हालात बने है तो ड्राईफ्रूट्स का निर्यात ठप पड़ गया है और अफगानिस्तान की आर्थिक व्यवस्था ढीली पड़ने लगी है. अब चूंकि अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा तो कर लिया है लेकिन देश चलाने की चुनौती भी है ऐसे में तालिबानियों की टेंशन बढ़ रही है लिहाजा वो भी अब हालात सामान्य करने की जुगत में लगे हुए हैं.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि मेवे का निर्यात रुकने से समस्या केवल अफगानिस्तान के लिए पैदा हो रही, समस्या में भारत भी है और आने वाले समय में इसमें और इजाफा हो सकता है. दरअसल भारत बहुत बड़ी मात्रा में अफगानिस्तान से सूखे मेवे आयात करता है. पिछले वित्त वर्ष में ही 85 फीसदी मेवे का आयात भारत ने केवल अफगानिस्तान से ही किया था.
अब हालात ये है कि 15 अगस्त के बाद पाकिस्तान के रास्ते वाघा सीमा पर सूखे मेवे का एक भी ट्रक नहीं पहुंचा है जबकि हर साल लगभग 30 हजार ट्रक मेवा भारत में आता रहा है. ऐसे में अब भारत में सूखे मेवे का स्टॉक धीरे धीरे कम हो रहा है और इसका असर ये होगा कि डिमांड बढ़ने से दाम बढ़ेंगे और इसकी शुरुआत हो भी चुका है. कारोबारियों के मुताबिक बादाम, अंजीर, खुबानी और किशमिश में लगभग 200 रुपये प्रति किलो की बढोत्तरी हो रही है जबकि पिस्ता की कीमतों में 250 रुपए प्रति किलो की वृद्धि हो रही है और आने वाले वक्त में मेवे के दामों में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है.
मतलब साफ है कि संकट दोनो तरफ है लेकिन अफगानिस्तान के लिए संकट ज्यादा बड़ा है. दरअसल अफगानिस्तान में अफीम का भी कारोबार तगड़ा है लकिन अपनी छवि बेहतर करने के लिए तालिबान उससे फिलहाल तौबा कर रहा है. और अगर ड्राईफूर्ट्स पर फोकस करना है तो भारत से बड़ा बाजार उसे मिल नहीं सकता है.
इन हालात के बीच राज की बात ये है कि तालिबान चाहता है कि भारत के साथ उसका व्यापार चलता है. राज की बात ये भी है कि दिल्ली के चांदनी चौक के बड़े डिस्ट्रीब्यूटर्स से तालिबान खुद संपर्क कर रहा है कि ताकि मेवे की धंधे में आई मंदी से आने वाली मुसीबत से बचा जा सके. चूंकि देश चलाने के लिए अर्थव्यवस्था का मजबूत होना जरूरी है इसलिए आर्थिक फ्रंट पर अफगानिस्तान की उम्मीदें भारत पर टिक गई है. आंकड़ों पर गौर करें तो अफगानिस्तान से सालाना 38 हजार मीट्रिक टन मेवों का आयात होता है जो लगभग 650 मिलियन डॉलर का बिजनेस है.
मतलब साफ है कि भले की तालिबान पहले भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा है लेकिन अब जब पूरे देश को चलाने की बारी है आई है तो उसकी उम्मीदें भारत से टिक गई हैं. भारत के सिवा कोई विकल्प भी नहीं है लिहाजा तालिबान भारत से अच्छे व्यापारिक संबंध के लिए छटपटा रहा है. क्योंकि देश चलाने के लिए अच्छी अर्थव्यवस्था चाहिए और अच्छी अर्थव्यस्था को सही माध्यम से आए पैसे से चलाना है तो फिर भारत के साथ होने वाले मेवे का व्यापार की तालिबान को अफगानिस्तान की आर्थिक सेहत सुधारने की ताकत दे सकता है.
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