राज की बातः देश में कोरोना के दूसरे वेब की रफ्तार अपने अपने पहले स्ट्रेन के हर रिकॉर्ड को तोड़ देने के लिए बेकरार है. संक्रमण का दायरा रोजाना 1 लाख के दायरे को पार कर रहा है. केंद्र से लेकर राज्य तक सरकारों के हाथ पांव फूल गए हैं और समीक्षाओं का ताबड़तोड़ दौर चल रहा है. लेकिन ये भारत है जनाब. बात समीक्षाओं की हो या सियासत की, बात आपदा की हो या आफत की. नकारात्मक सियासत न हो, ये तो नामुमकिन है. कोरोना के बढ़ते संक्रमण और वैक्सिनेशन की तेज की जा रही रफ्तार के बीच कुछ राज्य सरकारों ने जुमला फूंका है कि वैक्सीन की कमी है तो वैक्सिनेशन की रफ्तार बढ़ाएं कैसे और जब केंद्र सरकार सारी वैक्सीन भारत के बाहर ही भेज रही है तो हम अपनी कमी मिटाएं कैसे.


जी हां, जुमला तो फिलहाल यहीं छूटा है और इसी की बुनियाद पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश भी हो रही है. लेकिन वैक्सिनेशन और कोरोना से लड़ने के नाम पर शुरु हुई सियासी बयानबाजी के पीछे राज की बात क्या है हम उसे बताएंगे. वैक्सीन की उपलब्धता पर अलग अलग दलों की चिंता के पीछे का सच और राज की बात भी हम आप आज बताने जा रहे हैं.


ये राज की बात आपके लिए इसलिए जानना जरूरी है क्योंकि वैक्सीन्स की कमी की जो बात बोल बोल कर डर पैदा किया जा रहा है उस सच को जानकर ही आप जगरुक रह सकते हैं. तो सबसे पहले वैक्सीन की कमी का रोना महाराष्ट्र सरकार ने रोया और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हमारे पास केवल 3 दिन की वैक्सीन बची है. इस फेहरिस्त में छत्तीसगढ, झारखंड, पंजाब और दिल्ली की सरकारों ने भी सुर में सुर मिला दिए. लेकिन वैक्सिनेश की डिलीवरी और उसके उपभोग के आंकड़े दूसरी ही कहानी बयां करते हैं.


दरअसल, राजनैतिक हल्ला ये मचाया जा रहा है कि वैक्सीन को मदद के नाम पर मैत्री देशों को भेज दिया गया और देश में कोरोना वैक्सीन की कमी हो गई. अब चलिए आपको सियासी हल्ले के बीच आंकड़ों वाली राज की बात बताते हैं. राज की बात ये है कि भारत में लोगों को 9.4 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं और बाहर भेजी गई वैक्सीन की संख्या 6.45 करोड़ है. जिन वैक्सीन्स को बाहर भेजा गया उनमें गिफ्ट की केवल 1.05 करोड़ डोज है जो नेपाल, म्यामार, बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों को भेजी गई हैं. करीब 3.45 करोड़ टीके अन्य देशों से भारत में खरीदे हैं. यानि की इसमें भी भारत का फायदा ही हुआ है.


यहां पर आपके लिए यह भी जानना जरूरी है कि मार्च 2021 के बाद किसी भी देश को बड़ी संख्या में टीकों की आपूर्ति नहीं की गई है. सिवाय नौरू जिसे 6 अप्रैल को 10 हजार टीका भेजा गया था. इसके साथ ही साथ ये समझना भी जरूरी है कि भारत WHO के एग्ज्युकेटिव बोर्ड का मेंबर प्रमुख होने के नाते अंतर्राष्ट्रीय कमिटमेंट निभा रहा है और इसीलिए कोवैक्स कार्यक्रम में 1.81 करोड़ टीके दिए हैं.


मतलब साफ है कि विदेशों में भेजी गई मात्रा देश के मुकाबले काफी कम है और इसका वैक्सीन की कमी के सुरो से कम सियासत से वास्ता ज्यादा है. राज की बात में गौर करने वाली बात ये भी है जो राज्य आज वैक्सीन की कमी के नाम पर अपनी सियासत का झंड़ा बुलंद करके बैठ गए हैं वो आखिर अब तक क्या कर रहे थे.


केवल 3 दिन 4 दिन या 5 दिन का स्टॉक बचने के बाद ही उन्हें सुध क्यों आई की वैक्सीन खत्म हो रही है. क्या वाकई वैक्सीन की कमी है या फिर इस कमी के नाम पर अपनी कमियों को छिपाने और केंद्र पर कलंक लगाने की कोशिश हो रही है.


यकीन मानिए कि इन सवालों के जवाब आपको नहीं मिलेंगे लेकिन एक और राज की बात आपके लिए जानना जरूरी है. राज की बात ये कि देश के हर राज्य में भेजी गई लगभग 6 प्रतिशत वैक्सीन खराब मैनेजमेंट के चलते खराब हो गईं और इसी वजह से केंद्र को अब वैक्सीन के इस्तेमाल की मिनट टू मिनट मॉनिटरिंग की भी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है.


मतलब साफ है कि अभी भी राज्यों के पास जरूरत से कहीं ज्यादा वैक्सीन केंद्र की तरफ से भेजी जा चुकी है. लेकिन, अब जब कोरोना की दूसरी लहर हलकान कर रही है ऐसे में तमाम सियासी सवालों को बीच से वैक्सीन की कमी के मुखर हो रहे सुर गणित से ज्यादा सियासत के करीब नजर आ रहे हैं. राज की बात | कोरोना के बीच कुंभः हरिद्वार न आने के लिए संत समाज से श्रद्धालुओं के लिए अपील करवाना चाहती है सरकार