Raaj Ki Baat: अफगानिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. हर तरफ आतंक है, हर तरफ बदहवासी है, हर तरफ हाहाकार है. हर देश अफगानिस्तान में फंसे अपने नागरिकों को लेकर परेशान है, उन्हें वहां से निकालने की जद्दोजहद 24 घंटे जारी है. दूसरे देश तो दूसरे ही हैं. हालत ये है कि जो अफगानिस्तानी हैं वो भी अपनी सरजमीं को छोड़कर किसी भी कीमत पर निकल जाना चाहते हैं. क्योंकि, उन्हें पता है कि वो इस वक्त किसकी हुकूमत में फंस गए हैं और अफगानिस्तान में फंसे रहे तो भविष्य कितना जहन्नुम सरीखा होने वाला है. यही वजह है कि जिस अफगानिस्तानी को जहां मौका मिल रहा है वो भाग रहा है, सुरक्षित ठिकाने ढूंढ रहा है और अन्य देशों की नागरिकता चाह रहा है.
भागमभाग की इसी फेहरिस्त में हजारों की संख्या में अफगानिस्तान के लोग भारत भी पहुंचे हैं. अफगानिस्तान में बने विकट हालात को देखते हुए भारत ने भी मानवीय आधार पर 'ई-इलेक्ट्रॉनिक एक्स-एमआईएससी वीजा' नाम की नई वीजा श्रेणी जारी की है ताकि अफगानिस्तान के लोगों के आवेदनों को फास्ट ट्रैक मोड पर लाया जा सके. अफगानिस्तान से भागकर भारत आ रहे लोगों को जारी किए जा रहे ई-वीजा की अवधि 6 महीने की रखी गई है. ये तो रही अफगानिस्तान संकट को लेकर सामान्य बात जिसके बार में लगभग हर किसी को पता है.
चलिए अब आपको इस खबर से जुड़ी राज की बात बताते हैं. वो ये है कि अफगानिस्तान से भागकर भारत आ रहे लोगों को शरण तो दी जा रही है लेकिन ये भारत सरकार की तरफ से दी गई इन्हें फौरी राहत है. भारत सरकार की अघोषित नीति है कि देश में शरणार्थियों की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी. आंकड़ों के मुताबिक देश में पहले से ही लगभग 3 लाख शरणार्थी रह रहे हैं.
दरअसल इस फैसले के पीछे की वजह ये है कि किसी को अगर शरणार्थी का दर्जा दिया जाता है तो उनकी व्यवस्था करने की भारी भरकम जिम्मेदारी भारत पर आ जाएगी. इसमें पुनर्वास की चुनौती से लेकर रोजगार और आर्थिक सहयोग का जिम्मा भारत सरकार को उठना पड़ेगा जो इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए मुहैया करना संभव नहीं है. मसलन खासी संख्या में म्यांमार से भाग कर भारत में शरण पाए रोहिंग्या मुसलिम भी हैं. इनको शरणार्थी का दर्जा दिए जाने को लेकर भारत के भीतर भी खासी बहस-मुबाहिस हो चुकी है. मगर मोदी सरकार इस मामले में स्पष्ट है कि शरणार्थियों की संख्या बढ़ाना देशहित में नहीं.
वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान से जान बचाकर भारत आए लोगों की कोशिश ये है कि उन्हें ब्रिटेन या कनाडा जैसे देशों की नागरिकता मिल जाए लेकिन वो राह भी इतनी आसान नहीं है.
बीते हफ्ते सैकड़ों की संख्या में अफगानियों ने दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया और ‘रिफ्यूजी कार्ड’ की मांग की, ताकि उन्हें दूसरे देशों की नागरिकता मिल सके. ज्यादातर नागरिक यूएस, कनाडा, इंग्लैंड और स्पेन की नागरिकता चाहते हैं. चूंकि भारत में पहले से ही काफी अफगानी हैं और वे शऱणार्थी के बजाय काम कर यहां अपना गुजारा कर रहे हैं. ऐसे में उनकी पसंद अन्य देश होना स्वाभाविक ही है.
तो यहां स्थिति स्पष्ट है कि मानवीय आधार पर अफगानिस्तान से आ रहे अफगानी नागरिकों को देश में शरण तो दी जा रही है लेकिन उन्हें शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया जाएगा और न ही नागरिकता. उच्च सूत्र कहते हैं कि फैसला वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से है. आने वाले वक्त में अँतर्ऱाष्ट्रीय स्तर पर किस तरह से समीकरण बनते हैं और क्या स्थति होती है उसका सभी को इंतजार है. ऐसे में ये भी कहा जा सकता है कि फिलहाल जो भारत सरकार का स्टैंड है वो वर्तमान परिस्थितयों के हिसाब से है क्योंकि एक सत्य यह भी है कि कूटनीति और विदेश नीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता कई बार हालात के हिसाब से अप्रत्याशित फैसले भी लिए जाते हैं.