राज की बातः मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार हो चुका है और तमाम चेहरों को जिम्मेदारी दे दी गई है कि वो जनहित और देश के विकास की योजनाओं को तेजी से मूर्त रूप देना शुरू करें. जनता से किए गए वादों को वक्त पर पूरा करने पर ही सरकार छवि बेहतर होगी और सारे समीकरण सेट होंगे. लेकिन राज की बात ये है कि सियासत के बहुत सारे समीकरणों को मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए साधने में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई मुरव्वत नहीं की है.


राज की बात ये है कि मंत्रिमंडल विस्तार में इस बात का ख्याल रखा गया कि हर तरह के संतुलन बने रहें. मसलन न तो कोई मंत्री असीमित अधिकार वाला हो जाए और अगर सहयोगी है तो वो इतना मजबूत न हो जाए की भाजपा के गले की ही फांस बन बैठे. हां लेकिन ये भी ख्याल रखा गया कि सहयोगी दल है तो उसके सम्मान में कोई गुस्ताखी नहीं होनी चाहिए. उनका मान बनाए रखकर सारी बिसात अपनी सहूलियत और खुद को मुफ़ीद रखने वाले समीकरणों के लिहाज़ से बिछाई गई है.


मंत्रिमंडल विस्तार के पीछे संतुलन वाली इस कहानी और राज की बात की शुरुआत करते हैं पशुपति पारस से. राज की बात ये है कि नीतीश कुमार ने चिराग की पार्टी को पशुपति पारस के सहयोग से तोड़ दिया और बीजेपी ने नीतीश को खुश करने के लिए पशुपति पारस को मंत्री भी बना दिया लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि पारस को मंत्रालय कौन सा दिया गया.


पशुपति पारस को खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाया गया है. केंद्रीय मंत्री पारस जरूर बन गए लेकिन अगर उनके मंत्रालय की बात करें. बिहार में खाद्य प्रसंस्करण को लेकर फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है जिससे लोगों को सीधा फायदा दिया जा सके और जनता को खुद से जोड़ा जा सके. मतलब ये हुआ कि लोजपा में विद्रोह की लकीर खीच कर पद को भले ही पशुपति पारस ने बड़ा कर लिया लेकिन सियासी कद बढ़ाने में इस मंत्रालय के कोई खास फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है.


दूसरे मंत्री हैं जेडीयू कोटे से आए आरसीपी सिंह. यूं तो जेडीयू अपने लिए 4 मंत्री पद मांग रही थी लेकिन प्रधानमंत्री ने एक पद ही दिया पर विभाग काफी भारी भरकम दिया गया. आरसीपी सिंह को इस्पात मंत्री बनाया गया है. देश की अर्थव्यवस्था में इस्पात मंत्रालय की बहुत बड़ी भूमिका होती है लेकिन मंत्रालय जितना बड़ा है इससे जुड़े फैसले भी उतने ही बड़े बड़े लोगों के बीच होते हैं. इस मंत्रालय से जुड़े फैसलों में सीधा हस्तक्षेप प्रधानमंत्री का होता है. लिहाजा जेडीयू का भारी भरकम मंत्रालय तो मिल गया लेकिन फैसला लेने की असीमित  स्वतंत्रता आरसीपी सिंह के पास नहीं होगी. यानि कि सहयोगी होने का सम्मान तो बरकरार रहेगा लेकिन कमांड कैबिनेट के हाथ में बनी रहेगी.


वहीं अपना दल एस से अनुप्रिया पटेल को इस बार पूरी उम्मीद थी कि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनया जाएगा लेकिन राज्य मंत्री से ही संतोष करना पड़ा. अनुप्रिया पटेल को वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया है. पिछले टर्म में अनुप्रिया स्वास्थ्य राज्य मंत्री थीं तो जनता से सीधे जुड़ाव था लेकिन अब चूंकि वाणिज्य मंत्रालय है तो जनता से सीधे संवाद और संबंध नहीं रहेगा. ऐसे में जो जनाधार वाला फायदा पहले मिलता था अब वो बात वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में नहीं रहेगी. यही नहीं उनसे पहले बीजेपी ने अपने कुर्मी नेता पंकज चौधरी को भी शपथ दिलाई. इसके मायने समझना मुश्किल नहीं है.


कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कद के हिसाब से पद दिया गया है. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि महाराजा को कंगाल महाराजा थमा दिया गया है. प्रोफाइल तो बड़ा है लेकिन सिविल एविएशन सेक्टर में एयर इंडिया की माली हालत क्या है ये किसी से छिपा नहीं है. यह ऐसा मंत्रालय भी नहीं कि वे अपनी टीम को मदद कर सकें.


वहीं शिवसेना से बीजेपी में आए नारायण राणे को एमएसएमई मंत्रालय दिया गया है जिसकी महाराष्ट्र में अपार संभावनाएं हैं. महाराष्ट्र की एमएसएमई इकाईयों को मदद करके राणे केवल कोंकण ही नहीं बल्कि पूरे सूबे में बीजेपी को मजबूत कर सकते हैं और शिवसेना के लिए एक और बड़े झटके का सबब बन सकते हैं. ख़ास बात है कि राणे को ये मंत्रालय बीजेपी दिग्गज नितिन गड़करी से हटाकर दिया गया है.


कुल मिलाकर राज की बात ये है कि मंत्रालयों के कामकाज से तो समीकरण सधेंगे ही लेकिन सियासत की तमाम बारीकियों के जरिए. बहुत कुछ मंत्रियों के अप्वाइंटमेंट से ही साध लिया गया है. राज की बात ये है कि मंत्रिमंडल विस्तार इस तरह से किया गया है कि सहयोगियों का सम्मान भी बना रहे, स्थान भी बना रहे लेकिन ऐसा न हो कि जो सहयोगी हैं कल को सीना तान कर सामने खड़े हो जाएं. जिसकी जो भूमिका है उसे उतने ही तक सीमीत रख कर सरकार को चलाया जाएगा. मतलब परचम सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी-शाह का ही बुलंद रहेगा.


मोदी कैबिनेट विस्तार का संदेश, विरासत या क़द के आधार पर मंत्रिमंडल में नहीं मिलेगा पद