(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Raaj Ki Baat: चीन की 'छद्म' चाल को पस्त करने के लिए पीएम मोदी का बड़ा फैसला
Raaj Ki Baat: चीन की 'छद्म' चाल को पस्त करने के लिए पीएम मोदी का बड़ा फैसला लिया है. क्योंकि पीएम मोदी को ड्रैगन की हरकत और मंसूबों की खबर लग चुकी है.
Raaj Ki Baat: जितना बड़ा मुल्क, उतनी बड़ी जिम्मेदारी. जितनी आपकी ताकत, उतनी ही बड़ी साजिशें. भारत जैसे मुल्क पर तो ये बात शत-प्रतिशत लागू होती है. दुश्मन कौन है, किस भेष में है, कैसे वार करेगा? इसे समझना और फिर सही समय पर इसका प्रति-उत्तर देना देश और वहां की सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है. जब सरकार की यहां बात हो रही है तो मानकर चलिए कि तमाम मुल्कों की रणनीति या हित भी भारत में सत्ता किसकी हो, इससे जुड़े होते हैं. आज राज की सबसे बड़ी बात यही कि भारत में कैसे पीएम मोदी को कमजोर करने के लिए पड़ोसी चीन अजगर की तरह अपना शिकंजा कसने में जुटा है. सीमा पर दाल नहीं गल सकी और वहां पर शांति का परचम फहराकर भारत के खिलाफ ड्रेगन ने चुनिंदा ट्रेड वार यानी व्यापारिक युद्ध यानी देश के अर्थतंत्र पर प्रहार करने का प्रयास किया है.
जी ये बात आपको चौकाने वाली लग सकती है, लेकिन ये सच है कि ड्रैगन को मोदी खटक रहे हैं. भले ही पीएम मोदी ने शी जिंनपिंग को गुजरात ले जाकर अहमदाबाद में झूला झुलवाया हो. शानदार इस्तकबाल किया हो, लेकिन सच्चाई ये है कि जिनपिंग के देश को मोदी खटक रहे हैं. चाहे सीमा विवाद हो या फिर मध्य सागर या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का बढ़ता रुतबा और बेलौस रुख. ये सब हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाने वालों को भा नहीं रहा है.
राज की बात ये है कि जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को अमेरिका की सत्ता से बेदखल करने के लिए चीन ने अपनी चालें चली थीं, वैसा ही कुछ वो हिंदुस्तान में भी करना चाह रहा है. यह बहस का विषय हो सकता है कि ट्रंप अपनी अपरिपक्वता से गए या विदेशी साजिशों के चलते, लेकिन ये एक बड़ा सच है कि चीन अपने मुफीद न होने पर दूसरे देशों की सत्ता को अस्थिर करने की जोर-आजमाइश करता रहता है.
भारत में मोदी को कमजोर करने की साजिश कैसे कर रहा है चीन, ये जानने से पहले समझते हैं कि कैसे उसने अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की. अमेरिका में 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद डोनाल्ड ट्रम्प की आमद हुई और साथ ही शुरु हुई चीन के साथ ट्रेड वॉर की. बीजिंग ने पहले तो कोशिश की ट्रम्प को साधने की. लेकिन, बात नहीं बनी तो चीन ने उन तीरों का इस्तेमाल करना शुरू किया जो खासतौर पर उन उत्पादों जो निशाना बनाते थे जिनका उत्पादन रिपब्लिकन पार्टी के राज वाले सूबों में होता था यानी लक्ष्य था ट्रम्प के वोटरों की जेब में छेद करना. साथ ही इन तीरों ने उन सूबों को भी निशाना बनाया जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के गढ़ थे ताकि वहां के कारोबारी ट्रम्प से नाराज़ रहें और मतदाता नाखुश.
अमेरिकी सोयाबीन ऐसा ही उत्पाद था जिसके अयात पर चीन ने रोक लगाई. दुनिया के सबसे बड़े सोया उत्पादक चीन ने अमेरिका की बजाए ब्राज़ील से सोयाबीन खरीदना शुरू किया. ज़ाहिर है इसका असर सर्वाधिक सोयाबीन उत्पादक इलिनॉय जैसे सूबों में हुआ जो डेमोक्रेटिक पार्टी के गढ़ माने जाते हैं. साथ ही जिस मिनिसोटा में ट्रम्प 2016 के चुनाव में सेंध लगा चुके थे और 2020 में उसे आसानी से जीत सकते थे, वहाँ रिपब्लिकन पार्टी की संभावनाएं लड़खड़ा गईं.
कुछ ऐसा ही हुआ क्रैनबेरी का बड़ा उत्पादन करने वाले विस्कोंसिन सूबे के साथ. चीन ने क्रैनबेरी के आयात पर शुल्क बढ़ा दिए. ज़ाहिर है इससे निर्यात गिरा और इसके उत्पादन से जुड़े लोगों के रोजगार खतरे में पड़े. नतीजा 2020 में नज़र आया जब 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में विस्कोंसिन जीतने वाले ट्रम्प 2020 में इसे हार गए.
अब सवाल उठता है कि क्या चीन भारत के खिलाफ भी ऐसे ही ट्रेड हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है? क्या चीन की नज़र उस गुजरात के सियासी समीकरणों पर है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का गढ़ रहा है. इसे नमक की सियासत से समझते हैं. दरअसल, गुजरात देश का सबसे बड़ा नमक उत्पादक सूबा है. अकेले कच्छ के इलाके से करीब 90 लाख टन नमक का सालाना निर्यात होता रहा है, जिसका लगभग 50 फीसद हिस्सा चीन जाता था.
बीते कुछ समय में चीन ने इसमें लगातार कटौती की जिसके कारण भारत के नमक निर्यात में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. इसे आंकड़ों से समझिए चीन लगभग 50 लाख टन नमक भारत से लेता रहा है. मगर जून 2020 से जून 2021 तक उसने मात्र 15 लाख टन नमक ही लिया. ये लगातार दूसरे साल है कि चीन ने भारत से नमक के आयात को कम किया है. जाहिर है इसका असर कच्छ समेत गुजरात के नमक उत्पादन से जुड़े लोगों पर होगा. इसके अलावा भारतीय नाविक दल वाले जहाज़ों पर पाबंदियों के बहाने भी चीन ने वार करने की कोशिश की है. जाहिर है कि निशाना भारत की उन क्षमताओं पर है जिसने दुनिया में अपनी जगह बनाई है और चीन को चुनौती दी है.
दुनियाभर के व्यापारिक पोत परिवहन में डेढ़ लाख से ज़्यादा भारतीय नाविक हैं. वहीं मर्चेंट नेवी में अधिकारी स्तर मानव संसाधन का भारत तेज़ी से उभरता और 5 वां सबसे बड़ा सप्लायर है. हालांकि, चीन आधिकारिक तौर पर ऐसे किसी प्रतिबंध से इनकार करता है लेकिन भारतीय समुद्री नाविक संघ ने पोत परिवहन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को इसकी शिकायत दर्ज कराई है. यहां भी समझने की बात है कि कैसे भारत में रोजगार के अवसरों को कम किया जा रहा है. इसका असर अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सीधे युवाओं के रोजगार पर भी पड़ रहा है. मतलब सीमा पर तो चीन भारतीय सेना से निरस्त्रीकरण कर रहा है, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उसने छद्म युद्ध छेड़ दिया है.
राज की बात ये है कि ऐसा नहीं कि ड्रैगन की इन चालों को भारत नहीं समझ रहा है. दरअसल, चीन और भारत दो ही ऐसे देश हैं, जिनके पास बड़ा क्षेत्र और बड़ी आबादी है. इसी दम पर दोनों ही देशों ने जब दुनिया पूरी तरह से ठप थी तो भी यहां पर काम होता रहा है. हालांकि, निर्यात में चीन काफी आगे रहा, लेकिन भारत ने भी निर्यात के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन किया है. 2014-15 वित्तीय वर्ष में भारत ने कुल 18.96 लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया था. बीच के चार सालों में यही संख्या बढ़कर 23.07 लाख करोड तक हो गई. दुनिया समेत भारत को कोरोना काल से गुजरना पड़ा. इसके बावजूद भारत का निर्यात बहुत कम नहीं हुआ है. 2020-21 वित्तीय वर्ष में निर्यात 21.54 लाख करोड़ का हुआ है.
वहीं, चीन दुनिया के निर्यात में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई है. इस साल के पहले छह माह में चीनी निर्यात में 38.6 फीसद की बढ़ोत्तरी देखी गई है. मतलब 112 लाख करोड़ तक निर्यात पहुंच गया है. दक्षिणी चीन में कोरोना महामारी का प्रकोप बहुत ज्यादा होने के बावजूद ये बढ़ोत्तरी बहुत देखी गई है और लगातार 12 महीनों निर्यात में बढ़ोत्तरी हुई है. मतलब आंकड़ों के लिहाज से चीन मजबूत है तो भारत भी कमजोर नहीं.
जैसा कि आपको हमने पहले बताया कि भारत चीन की इन चालों को समझ रहा है. जैसे सीमा पर ड्रैगन के जमावड़े का मुकाबला सेना के जमावड़े से दिया गया. कूटनीतिक स्तर पर पूरी आक्रामकता और संवेदनशीलता से चीन की हर चाल का जवाब दिया गया. उसी तरह इस आर्थिक युद्ध पर भी पीएम मोदी बेहद संजीदा हैं. इसी कड़ी में अपनी तरह के पहले कार्यक्रम का आयोजन शुक्रवार को किया गया, जिसका नाम था –लोकल गोज ग्लोबल मेक इन इंडिया फार वर्ल्ड-. इस कार्यक्रम का आयोजन वाणिज्य व विदेश मंत्रालय ने मिलकर किया. इसमें मोदी ने 400 अरब डालर का निर्यात लक्ष्य निर्धारित कर दिया. इस बैठक में विदेशों में मौजूद भारतीय मिशन के प्रमुख भी मौजूद थे और साथ ही विभिन्न मंत्रालयों के 30 से ज्यादा सचिव भी.
तो आप इस सम्मेलन का समय देखिए और मौजूदा हालात को भी. पीएम मोदी जानते हैं कि बिना आर्थिक ताकत के न तो देश की प्रगति हो सकती है और न ही दुनिया में रुतबा मिलेगा. इसीलिए, चीन की इस अजगर सरीखी चाल को परखते हुए इस दिशा में तेजी से कदम आगे बढ़ा दिया गया है. मतलब ड्रैगन की इस हरकत और मंसूबों की खबर तो पीएम मोदी को लग ही चुकी है और उसका काउंटर भी शुरू कर दिया गया है.