नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस तरह से उहापोह के हालात कुछ दिनों से बने थे अब उसकी तस्वीर साफ होनी शुरु हो गई है. बहुत कुछ समझ आ गया है और बहुत कुछ अभी राज है. राज की बात में इन्हीं राज से उठाएंगे हम पर्दा. साथ ही जो नहीं छपा है और जो छिपा है उसकी भी खोलेंगे परतें.


राज की बात ये है कि चुनाव से चंद महीने पहले यूपी सरकार और संगठन नें कुछ बड़े फेरबदल होंगे. फेरबदलों की इस फाइल में बहुत कुछ ऐसा होगा जो दिखेगा और बहुत कुछ ऐसा भी होगा जो दिखाने के लिए कुछ और हकीकत में कुछ और होगा. चुनाव से पहले तक चेहरे में कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन सियासत से लेकर शासन अब सीधे दिल्ली की सीधी निगरानी में होगा. इसके अलावा यूपी में कुछ लोगों का महत्व बढ़ेगा तो सियासी समीकरणों को साधने के लिए कुछ नेताओं क़द और पद भी. यूं कहें कि प्रशासनिक फ़ैसलों में विकेंद्रीकरण भी होगा.


तो चलिए पहले शुरु करते हैं राज की बात और आपको बताते हैं कि बीते कुछ हफ्तों से चल रही बीजेपी की सियासी कवायदों के पीछे की कहानी आखिर क्या है. एक वाक्य में जवाब है कि सारी कोशिश 2022 के विधानसभा चुनाव को जीतने की है. लेकिन इस जीत के जतन में कई सियासी राज छिपे हुए हैं. 


शुरुआत करते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिल्ली दौरे से. सीएम दिल्ली आए तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष या संगठन के किसी अन्य पदाधिकारी से मिलने के बजाय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के लिए पहुंचे. इसी मुलाकात के बीच बीजेपी सरकार की सहयोगी और अपना दल एस की नेता अनुप्रिया पटेल भी पहुंची और वार्ता का दौर लगभग डेढ़ घंटे का रहा.


सबसे पहले अमित शाह से सीएम के मिलने के पीछे की राज की बात ये है कि सीएम योगी को सबसे पहले वहीं जाने को कहा गया था. जैसा हमने आपको पहले ही बताया था कि इस मुलाकात के पीछे की राज की बात ये भी है कि आगामी यूपी विधानसभा चुनाव की कमान एक बार फिर से अमित शाह ही संभालने जा रहे हैं और यही वजह है कि सबसे पहले सीएम ने जानकर उनसे सरकार, संगठन और सियासी योजनाओं पर चर्चा की. 


वास्तव में यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चल रही टसल, मंत्रियों और विधायकों में असंतोष, संगठन की अपेक्षा और उपेक्षा के आरोप समेत सभी राजनीतिक विषयों पर शाह ने ही योगी से चर्चा की. सीएम योगी के भी कुछ विषय थे, उन पर भी बात हुई. यूपी में नौकरशाहों का हावी होना और मंत्रियों और विधायकों या जनप्रतिनिधयों की न सुने जाने से असंतोष सबसे ज़्यादा है. योगी को इस मुद्दे को गंभीरता से तत्काल संबोधित करने को कहा गया. न सिर्फ कहा गया, बल्कि इसके लिए एक प्रक्रिया भी तय तक्र दी गई है.


साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो शक्ति प्रदर्शन जैसा माहौल बना उसको लेकर केंद्र सख़्त है. ख़ासतौर से पीएम मोदी के ख़ास नौकरशाह से एमएलसी बने ए.के. शर्मा के साथ जो व्यवहार यूपी में हुआ उसे आपत्तिजनक माना गया और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर खरी चर्चा हुई. यूपी में एक विशेष वर्ग को तरजीह देने और साथ ही ब्राह्णणों व पिछड़ो के बीच में विश्वासबहाली केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता है. यूपी में जीत के शिल्पकार रहे शाह ने योगी को स्पष्ट समझा दिया कि इस समीकरण को मज़बूत करने के लिए संगठन या केंद्र की तरफ से जो भी कदम उठाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, उनमें सहयोग करना बहुत ज़रूरी है. इन्हें साधे बगैर यूपी की सत्ता नहीं पाई जा सकती.


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दूसरी मुलाकात हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से. राज की बात ये है कि प्रधानमंत्री से हुई लगभग 80 मिनट की मुलाकात में सरकार की योजनाओं पर बात हुई. इस मुलाकात में राजनैतिक चर्चा कम, वादों के क्रियान्वयन पर ज्यादा फोकस रहा.  राज्य की तरफ से चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं पर सीएम योगी ने पीएम को प्रजेंटेशन दिया. इस दौरान पीएमओ के अधिकारी भी रहें. इसमें योगी से योजनाओं में हुई देरी या कमियों पर खुलकर पूछताछ हुई. साथ ही केंद्र से जो मदद या अपेक्षाएँ हैं, उन पर भी योगी ने अपनी बात रखी.


पीएम ने यूपी में विकास कार्यों का एक तरह से रिव्यू करते हुए कुछ परियोजनाओं में देरी पर सीधे सवाल भी पूछे. साथ ही बीजेपी के घोषणापत्र में किए गए वादों की स्थिति पर भी चर्चा की. बाकी बचे समय में ये सब कैसे पूरे किए जाएंगे, इस पर जवाब भी तलब किए. केवल योजनाओं का प्रजेंटेशन ही नहीं बल्कि उन मसलों पर भी बात हुई जिसको लेकर कई जनप्रतिनिधियों की शिकायत बीएल संतोष के साथ बैठक में सामने आई थी. राज की बात ये है कि पीएम और योगी के बीच उत्तर प्रदेश में जनप्रतिनिधियों पर हावी पड़ती नौकरशाही को लेकर भी कुछ गुर दिए गए. पीएम का स्पष्ट मत है कि जनता से किए गए वादों पर अमल होते दिखने चाहिए. ज़मीन पर योजनाएं उतरनीं चाहिए.


राज की बात ये है कि दिल्ली दौरे के दौरान सीएम योगी को ये साफ संदेश दे दिया गया है कि केंद्र सरकार यूपी की सियासी और सरकारी गतिविधियों को सीधे पर चुनाव के मद्देनजर मॉनिटर करेगा. हालंकि मॉनिटरिंग का मतलब ये नहीं की सीएम के हाथ बंध जाएंगे. मुख्यमंत्री को भी पार्टी को मजबूत बनाने के लिए मंत्रमण्डल समेत तमाम फैसलों को लेने का अधिकार होगा लेकिन केंद्र के कोटे से तय किए नामों को मंत्रिमण्डल समेत विभागों में जगह देनी होगी. 


इसके बाद योगी की आख़िर में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मुलाक़ात हुई. नड्डा ने संगठन की तरफ से सरकार पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उन पर तफ़सील से चर्चा की. नड्डा ने योगी की तारीफ़ भी की. उन्होंने कहा कि जिस तरह से बीमारी से उठते ही वे कोरोना पर नियंत्रण के लिए जुटे, वैसी ही निरंतरता और जिजीविषा से लगातार लगे रहने की ज़रूरत है. साथ ही बेहद सौम्य तरीक़े से उन्होंने योगी को आईना भी दिखाय. उन्होने स्पष्ट कर दिया कि यूपी में भी जो योजनाएँ चल रही हैं, उनके केंद्र में पीएम को जरूर होना चाहिए. साथ ही कोविड से निपटने को लेकर जो कार्यक्रम चल रहे हैं, उनमें केंद्र में प्रधानमंत्री को रखना ज़रूरी है. सब कुछ केंद्र की तरफ से हो रहा है और मोदी ही ट्रंपकार्ड हैं. उन्हें आगे कर ही आगे बढ़ने से यूपी में फ़ायदा होगा. संगठन की बात सुनी जाए और सरकार से दूरी न दिखे, यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया. ध्यान रहे कि तमाम पोस्टरों से योगी प्रशासन ने पीएम को अलग कर दिया था.


मुख्यमंत्री योगी के लखनऊ वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बैठक हुई. इस बैठक के पीछे की राज की बात ये है कि उत्तर प्रदेश में अब बीजेपी का आलाकमान पूरी सक्रियता के साथ डट गया है. हालांकि यूपी में प्रदेश अध्यक्ष को अभी बदला जाए तो कुछ समय बाद. इस पर विचार विमर्श जारी है लेकिन इतना तो संदेश साफ हो गया है कि यूपी की सत्ता को बीजेपी अपने हाथ में बनाए रखने के लिए हर वो फैसला लेने के लिए तैयार है जो मौजूदाा परिस्थितयों के हिसाब से जरूरी है. 


इस पूरी क़वायद से ये तो स्पष्ट है कि यूपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था. इससे पहले बी.एल. संतोष की बैठक में जो बातें आईं. साथ ही जैसे तेवर योगी की तरफ से दिखाए गए. बल्कि यूं कहे कि उनके चेलों-पंचाटों ने जिस तरह से दुनिया के सबसे बड़े संगठन और अब तक के सबसे शक्तिशाली नेतृत्व के सामने योगी को प्रोजेक्ट करने की कोशिश की, संघ-बीजेपी ने सबसे पहले वो हवा निकाली है. राज की बात ये है कि हालात जब ज्यादा विकट होते दिख रहे थे तो ऐसे में संघ को समाधान के लिए थोड़े सख्त तेवर दिखाने पड़े.


साथ ही संगठन-सरकार के भीतर उपजते असंतोष के मदेद्नजर ही तीन स्तरों पर यूपी में काम किय जा रहा है. पहला झगड़ा सतह पर न आए. दूसरा सोशल इंजीनियरिंग पर कोई समझौता न दिखे. तीसरे, प्रभावी तरीक़े से योजनाएं सड़कों पर उतरें. राजनीतिक समाधान और फ़ैसलों के लिए अमित शाह को फिर से ज़मीन पर उतरना पड़ा है. बाकी मंत्रिमंडल और संगठन में जातीय समीकरण साधे जा रहे हैं.


इसी कड़ी में अपना दल अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी जा रही है. पिछड़ों मे कुर्मी वोटों के लिहाज़ से ही स्वतंत्र देव सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन अनुप्रिया को वापस लाने की तैयारी इस बात का संकेत है कि उससे उद्देश्य सफल नहीं हो सका था. साथ ही संगठन मंत्री सुनील बंसल ने जिस तरह से यूपी में कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को संभाला था, स्वतंत्र देव के अध्यक्ष बनने के बाद उसमें भी जरब आया. ऐसे में अध्यक्ष केशव मौर्या को बनाकर उनका क़द बढ़ाने पर भी मंथन हुआ है.


इससे पिछड़ों में संदेश जाएगा और साथ ही जो लोग नाराज़ है, वे भी फिर से पार्टी के साथ जुटेंगे ऐसा माना जा रहा है. राज की बात ये भी है कि योगी का सम्मान बना रहे और लोगों की नाराज़गी भी दूर हो, इसके लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली में तीन दिन के चिंतन शिविर में ही निर्देश दे दिए थे. संघ का मत है कि- लंबे समय बात जब सरकार आई है तो दो-तीन व्यक्तियों के अहं के टकराव के चलते संघ का एजेंडा प्रभावित नहीं होना चाहिये. जो सामाजिक परिवर्तन शुरू हुए हैं उनकी गति न रुके ये सुनिश्चित करना है.- तो राज की बात यही है कि संघ के इस फ़ार्मूले के तहत ही बीच का रास्ता निकालकर चुनावी की तरफ बढ़ा जा रहा है. यह बात योगी को भी समझाई गई और जो असंतुष्ट हैं, उन्हें भी. बड़े उद्देश्य के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए सेना तैयार हो, इसके लिए कुछ कदम उठाए गए हैं. मगर अब प्रदेश के नेताओं और योजनाओं की समीक्षा व नज़र सीधे तौर पर दिल्ली से होगी.


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