Raaj Ki Baat: भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह नहीं, बल्कि लगातार चुनावी नतीजों से सबसे बडे चुनावी रणनीतिकार का दर्जा पा चुके प्रशांत किशोर पर देश की सबसे पुरानी पार्टी में रायशुमारी होने जा रही है. राज की बात ये है कि कांग्रेस में पीके की एंट्री अगर अलग स्तर पर करने की तैयारी हो रही है तो उसका तरीका भी सबसे अलहदा होने वाला है.
ये किसी से छिपा नहीं है कि तमाम राजनीतिक दल पीके को अपने साथ लाने को तैयार हैं. मगर सक्रिय राजनीति में आने को तैयार पीके की इच्छा कांग्रेस का झंडा थामने की है. हिंदुस्तान की हाईवोल्टेज सियासत में पीके अब कौन सा रंग भरना चाहते हैं और उनके इरादे क्या हैं, इसको लेकर समय-समय पर सवाल खड़े होते रहते हैं. 2014 में बीजेपी का चुनाव प्रचार का काम देखने के बाद राष्ट्रीय क्षितिज पर जबसे पीके चमके तबसे लगातार उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है. मगर दिलचस्प है कि जितना उनका विपक्षी राजनीतिक दलों में प्रभाव है, उससे कहीं ज्यादा लगाव उनका कांग्रेस में है.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ही पीके ने चुनावी रणनीतिकार से आगे अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं के संकेत खुलकर दे दिए थे. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, राजद से लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से नीतीश कुमार और कांग्रेस में गांधी परिवार भी उनकी काबिलियत का फैन है. कांग्रेस के अलावा सभी दलों से उनको राज्यसभा या बड़ा पद देने की पेशकश भी हो चुकी है. मगर राज की बात ये है कि पीके फिलहाल बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों को एकजुट कर एक नई लकीर खींचने को बेताब हैं.
खास बात ये है कि इसके लिए पीके का मानना है कि कांग्रेस में रहकर ही वह इसे कर सकते हैं. शायद इसीलिए, कांग्रेस में एक बड़े ताकतवर धड़े का विरोध होने के बावजूद वो गांधी परिवार के लगातार संपर्क में हैं. राहुल गांधी भले ही यूपी में अखिलेश से गठबंधन के बाद उनसे छिटके हों, लेकिन भरोसा उनका भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ. अलबत्ता बहन प्रियंका गांधी तो हर हाल में पीके को कांग्रेस में लाने को आतुर हैं. वो अलग बात है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीके को लेकर आशंकित हैं. खासतौर से गांधी परिवार के विरुद्ध पार्टी के भीतर गठित जी 23 यानी 23 नेताओं का समूह तो पीके के खिलाफ ही रहा है.
ऐसे में पीके जिस तरह से कांग्रेस में आना चाहते हैं, वह विरोध और बढ़ा सकता है. कांग्रेस में पीके महासचिव बन कर आना चाहते हैं, जिसके पास चुनावी रणनीति और संगठन का अधिकार हो. ये तो आलाकमान पर तय करेगा कि वो उनके लिए कौन सा पद मुकर्रर करती है, लेकिन उन्हें लाने का सैद्धांतिक फैसला हो चुका है. मगर कांग्रेस के अंदर कोई और विवाद न खड़ा हो इसके लिए पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को आगे आना पड़ा है.
राज की बात है कि पीके की कांग्रेस में एंट्री से पहले सोनिया ने अपने दो सबसे विश्वस्तों एके एंटनी और अंबिका सोनी को यह जिम्मेदारी सौंप दी है. ये दोनों नेता पीके को लेकर पार्टी के सभी स्तरों पर बात करेंगे. मतलब जी 23 समेत कांग्रेस के अन्य वरिष्ठों से पीके को पार्टी में लाने पर बातचीत कर उनकी राय जानेंगे. इसमें सभी राज्यों के जहां अध्यक्ष और नेता विपक्ष या मुख्यमंत्री हैं, उनसे भी बातचीत की जाएगी.
मतलब ये कि पीके जिस तरह से गैरपरंपरागत राजनीतिक हैं, औपचारिक राजनीति में उनकी एंट्री भी थोड़ा हटकर होगी. इन सबसे रायशुमारी के बाद एंटनी और सोनी अपनी विस्तृत रिपोर्ट सोनिया को सौंपेंगे. इसके जो भी निष्कर्ष होंगे, उसके आधार पर गांधी परिवार और उसके विश्वस्त पीके की भूमिका तय करेंगे, सैद्धांतिक तो ऐसा ही लगता है. मगर ये बड़ा सवाल है कि ये रायशुमारी पीके की एंट्री के लिए की जा रही है या उसे रोकने के लिए. ये वक्त ही बताएगा.
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