राज की बातः देवभूमि की सियासी किस्मत बदलना शायद किसी के बूते में नहीं. सरकार चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस. बमुश्किल ही यहां पांच साल एक मुख्यमंत्री से पूरे हो पाते हों. वैसे तो मोदी-शाह की जोड़ी ने तमाम राज्यों के सियासी चरित्र को बदल कर रख दिया. मगर उत्तराखंड में एक सरकार एक मुख्यमंत्री चला पाए, यह वो भी नहीं कर सके. त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को लाना पड़ा. यह तो पता है, लेकिन 


तीरथ सिंह रावत का मुख्यमंत्री बनना अगर चौंकाने वाला था तो उनकी विदाई का कारण और भी ज्यादा चौंकाने वाला है. जी, राज की बात ये है कि तीरथ रावत को इसलिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा, क्योंकि विधानसभा में उनको सीट नहीं मिल पाएगी. मतलब वो विधायक बन पाएंगे, इसकी उम्मीद न के बराबर है. दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून 1951 के तहत कोई भी लोकसभा या राज्यसभा सीट खाली होने के छह माह के अंदर चुनाव कराना होता है. इस हिसाब से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की आठ खाली पड़ी सीटों पर चुनाव सितंबर तक कराना होगा. इसके तहत यदि किसी लोकसभा या विधानसभा सदस्य के कार्यकाल के एक साल बाकी हैं तो अपवादस्वरूप चुनाव कराया जा सकता है.


अब यहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के विधायक बनने की राह में पेंच फंस गया है. क्योंकि यूपी और उत्तराखंड दोनों जगह फरवरी 2022 में चुनाव होने हैं. साथ ही 2022 में मार्च में उत्तराखंड विधानसभा गठित होनी है .चुनाव आयोग की एक नियमित प्रैक्टिस या नियम है कि जब राज्य में चुनाव एक साल के अंदर होने वाला हो तो वहां उपचुनाव नहीं कराया जाता. जाहिर है कि इस आधार पर उत्तराखंड में चुनाव नहीं हो सकता. बात केवल उत्तराखंड की नहीं है. उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में 25 विधानसभा सीटें रिक्त हैं. इतना ही नहीं तीन संसदीय और चार राज्यसभा सीटों पर भी निर्वाचन होना है.


सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने सभी नियमों को खंगालकर और व्यवस्था के दृष्टिगत यूपी की छह और उत्तराखंड की दो सीटों समेत सभी 25 पर कोरोना महामारी के चलते फिलहाल चुनाव न कराने का फैसला लिया है. अन्य राज्यों की विधानसभा सीटों के चुनाव आगे बढ़ा दिए गए हैं. वहां पर तो देर-सवेर उपचुनाव हो जाएंगे, लेकिन चुनाव में जाने को तैयार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की आठ सीटों पर उपचुनाव नहीं हो सकेगा.


ऐसे में तीरथ सिंह रावत की विदाई के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. वैसे उत्तराखंड में इस महामारी के दौरान मौत से दो विधायक नहीं रहे. इस वजह से दो सीटें खाली हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी छह में से पांच विधायकों की मौत कोरोना से हो गई थी. अब चुनाव आयोग के इस निर्णय के बाद ये लगभग तय हो गया है कि तीरथ चूंकि किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहेंगे, लिहाजा उनको जाना पड़ेगा. उत्तराखंड में चूंकि विधानपरिषद नहीं है, लिहाजा वहां भी जाने का विकल्प नहीं है.


अब राज की बात ये है कि अगर तीरथ की विदाई होती है तो उनकी जगह देवभूमि की कमान संभालेगा कौन? इसका जवाब बीजेपी जैसी पार्टी में तय नहीं हो सकता. मगर पूरी संभावना है कि दिल्ली से किसी को उत्तराखंड भेजा जा सकता है. इस कड़ी में दो नाम हैं केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और बीजेपी के मीडिया इंचार्ज और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी.


मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार कभी भी हो सकता है. इसको लेकर पीएम अपना होमवर्क कर चुके हैं. माना जा रहा है कि यदि निशंक को यहां से मुक्त किया जाता है तो उन्हें पहाड़ी राज्य की कमान संभालने के लिए भेजा जा सकता है. वहीं अनिल बलूनी को पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का आशीर्वाद प्राप्त है. बीच में बीमारी की वजह से वो जनता के बीच जाने से बचे. मगर अब स्वस्थ होकर वो लगातार उत्तराखंड न सिर्फ जा रहे हैं, बल्कि पूरी दिलचस्पी भी ले रहे हैं.


उत्तराखंड में पहले राजनीतिक संकट से जब बदलाव हुआ तब बलूनी की सेहत बहुत ठीक नहीं थी. मगर अब जिस तरह से वो सक्रिय हैं, उसके बाद इस संवैधानिक संकट से निपटने के लिए तीरथ की विदाई कर बलूनी को कमान दिए जाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. अब देखना है कि निशंक का अनुभव भारी पड़ता है या फिर बलूनी की ईमानदार छवि.


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