नई दिल्ली: जिन राफेल फाल लड़ाकू विमानों का कई सालों से बेसब्री से इंतजार था, वे अब भारत के लिए रवाना हो चुके हैं. पहली खेप में पांच रफाल लड़ाकू विमान बुधवार को अंबाला एयरबेस पर पहुंच जाएंगे. ये फाइटर जेट्स सोमवार के फ्रांस के मेरिग्नैक बेस से रवाना हुए और करीब सात हजार किलोमीटर का सफर तय करके भारत पहुंचेंगे.
फ्रांस के समयनुसार सुबह 8.30 बजे (भारत के दोपहर 12 बजे) इन पांचों राफेल लड़ाकू विमान ने भारत के लिए मेरिग्नैक एयरबेस से उड़ान भरी. भारत के दस पायलट और ग्राउंड स्टाफ इसे उड़ाकर भारत पहुंच रहे हैं. इनमें दो ट्रैनर एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें दो-दो पायलट उड़ान भर रहे हैं और तीन फाइटर जेट्स, जो सिंगल-सीटर यानी, जिन्हें एक पायलट उड़ाता है, शामिल हैं.
उड़ान भरने से पहले खुद फ्रांस में भारत के राजदूत, जावेद अशरफ ने मेरिग्नैक पहुंचकर भारतीय वायुसेना के दस्ते को शुभकामनाओं के साथ रवाना किया. इस दौरान राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसॉ (दसॉल्ट) के सीईओ और दूसरे सीनियर अधिकारी मौजूद थे.
बाद में दसॉ ने बयान जारी कहा कि कोरोना महामारी के बावजूद भारत ने अपनी अखण्डता और देशवासियों की सुरक्षा के लिए राफेल को जितनी तेजी से जंगी बेड़े में शामिल किया है, वो काबिले-तारीफ है. दसॉ का ये बयान मौजूदा भारत-चीन टकराव को लेकर आया है.
फ्रांस से करीब 7000 किलोमीटर तक की उड़ान के लिए भारतीय वायुसेना की 17वीं स्काड्रन के कमांडिंग ऑफिसर(सीओ) ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह के नेतृत्व में भारतीय पायलट इन राफेल लड़ाकू विमानों को अंबाला ला रहे हैं. एक रात ये पांचों लड़ाकू विमान यूएई के अबू धाबी के करीब फ्रांसीसी एयरबेस, अल-दफ्रा में हॉल्ट करेंगे. अल दफ्रा तक भी फ्रांसीसी वायुसेना के दो रिफ्यूलर टैंकर (एयरक्राफ्ट) इन पांचों विमानों के साथ आ रहे हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर एयर टू एयर यानी आसमान में ही रिफ्यूलिंग यानी ईंधन भर सकें. अल दफ्रा से ये विमान सीधे अंबाला लैंड करेंगे.
अंबाला में ही राफेल फाइटर जेट्स की पहली स्क्वाड्रन तैनात होगी. 17वीं नंबर की इस स्क्वाड्रन को 'गोल्डन-ऐरोज़' नाम दिया गया है. इस स्क्वाड्रन में 18 राफेल लड़ाकू विमान होंगे, तीन ट्रैनर और बाकी 15 फाइटर जेट्स. दरअसल, गोल्डन एरो अभी तक भटिंडा स्थित मिग-21 की स्क्वाड्रन को जाना जाता था. मिग-21 की गोल्डन एरो स्क्वाड्रन ने करगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. इसी स्क्वाड्रन के स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा करगिल युद्ध में दुश्मन के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे. उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया था. लेकिन मिग-21 के रिटायर होने के बाद ये स्क्वाड्रन पिछले कुछ सालों से बंद पड़ी थी. अब इसे एक बार फिर से राफेल के साथ जीवित कर दिया गया है. पूर्व वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ भी इसी स्क्वाड्रन से ताल्लुक रखते थे.
राफेल विमानों की दूसरी स्क्वाड्रन उत्तरी बंगाल (पश्चिम बंगाल) के हाशिमारा में तैनात की जाएगी. दोनों स्क्वाड्रन में 18-18 राफेल विमान होंगे.
वायुसेना के पायलट्स और क्रू की (फ्रांस में) राफेल फाइटर जेट्स और उसके हथियारों पर ट्रैनिंग पूरी हो चुकी है, इसलिए इन राफेल विमानों को जल्द से जल्द (चीन सीमा पर) ऑपरेशनली तैनात कर दिया जाएगा.
भारत को फ्रांस से जो राफेल लड़ाकू विमान मिलने वाला है वो 4.5 जेनरेशन मीड ओमनी-पोटेंट रोल एयरक्राफ्ट है. मल्टीरोल होने के कारण दो इंजन वाला (टूइन) राफेल फाइटर जेट एयर-सुप्रेमैसी यानी हवा में अपनी बादशाहत कायम करने के साथ-साथ डीप-पैनेट्रेशन यानी दुश्मन की सीमा में घुसकर हमला करने में भी सक्षम है. यानी राफेल जब आसमान में उड़ता है तो कई सौ किलोमीटर तक दुश्मन का कोई भी विमान, हेलीकॉप्टर या फिर ड्रोन पास नहीं फटक सकता है. साथ ही वो दुश्मन की जमीन में अंदर तक दाखिल होकर बमबारी कर तबाही मचा सकता है. इसीलिए राफेल को मल्टी रोल लड़ाकू विमान भी कहा जाता है.
फ्रांस के साथ हुए सौदे में जो 36 राफेल फाइटर प्लेन भारत को मिलने वाले हैं, वे अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस हैं. सबसे खास है दुनिया की सबसे घातक समझे जाने वाली हवा से हवा में मार करने वाली मेटयोर (METEOR) मिसाइल. ये मिसाइल चीन तो क्या किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है. यानी राफेल प्लेन वाकई दक्षिण-एशिया में गेम-चेंजर साबित हो सकता है. जानकारी के मुताबिक, वियोंड विज्युल रेंज ‘मेटयोर’ मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है. हवा से हवा में मार करने वाली ये मिसाइल दुनिया की सबसे घातक हथियारों में गिनी जाती है. इसके अलावा राफेल फाइटर जेट लंबी दूरी की हवा से सतह में मार करने वाली स्कैल्प क्रूज मिसाइल और हवा से हवा में मार करने वाली माइका मिसाइल से भी लैस है.
ये तीनों गेम चेंजर मिसाइल यूरोप की बड़ी कंपनी एमबीडीए ने राफेल के लिए मुहैया कराई हैं. कंपनी के मुताबिक, इन तीनों मिसाइलों की खूबियां कुछ इस प्रकार हैं:
मिटयोर - वियोंड विज़ुअल रेंज ‘मिटयोर’ मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है. हवा से हवा में मार करने वाली ये मिसाइल दुनिया की सबसे घातक हथियारों में गिनी जाती है.
स्कैल्प - क्रूज मिसाइल डीप स्ट्राइक यानी जमीन पर अटैक करने के लिए है.
माइका -हवा से हवा में मार करने वाली माइका मल्टी-मिशन मिसाइल है.
भारत ने राफेल सौदे में कितने खर्च किए?
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, भारत ने राफेल सौदे में करीब 710 मिलियन यूरो (यानि करीब 5341 करोड़ रुपये) लड़ाकू विमानों के हथियारों पर खर्च किए हैं. गौरतलब है कि पूरे सौदे की कीमत करीब 7.9 बिलियन यूरो है यानी करीब 59 हजार करोड़ रुपये.
राफेल प्लेन में एक और खासयित ये है कि इसके पायलट के हेलमेट में ही फाइटर प्लेन का पूरा डिस्प्ले सिस्टम होगा. यानी उसे प्लेन के कॉकपिट में लगे सिस्टम को देखने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. उसका पूरा कॉकपिट का डिस्प्ले हेलमेट में होगा.
जानकारी के मुताबिक, राफेल बनाने वाली कंपनी से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए. इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं.
राफेल का फुल पैकेज कुछ इस तरह है. 36 विमानों की कीमत 3402 मिलियन यूरो, विमानों के स्पेयर पार्टस1800 मिलियन यूरो के हैं, जबकि भारत के जलवायु के अनुरुप बनाने में खर्चा हुआ है 1700 मिलियन यूरो का. इसके अलावा परफॉर्मेंस बेस्ड लॉजिस्टिक का खर्चा है करीब 353 मिलियन यूरो का. एक विमान की कीमत करीब 90 मिलियन यूरो है यानी करीब 673 करोड़ रुपये. लेकिन इस विमान में लगने वाले हथियार, सिम्यूलेटर, ट्रैनिंग मिलाकर एक फाइटर जेट की कीमत करीब 1600 करोड़ रुपये पड़ेगी.
राफेल के अंबाला में आने की वायुसेना ने पूरी तैयारी कर ली है. इसके लिए राफेल बनाने वाली फ्रांस की कंपनी, दसॉ ने 227 करोड़ रूपये की लागत से बेस में मूलभूत सुविधाएं तैयार की हैं. जिसमें विमानों के लिए रनवे, पाक्रिंग के लिए हैंगर और ट्रैनिंग के लिए सिम्युलेटर शामिल है.
अंबाला एयरबेस पर राफेल को तैनात करने का फैसला इसलिए भी किया गया क्योंकि यहां पर भारत के जंगी बेड़े की सबसे घातक और सुपरसोनिक मिसाइल, ब्रह्मोस की स्क्वाड्रन भी तैनात है. साथ ही चीन और पाकिस्तान की सरहदें यहां से करीब ही हैं.
जानकारी के मुताबिक, राफेल बनाने वाली कंपनी से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए (सुखोई के लिए ये 46 % था). इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं, ताकि बेहद उंचाई और ठंड वाले इलाकों में भी इन्हे उड़नें में कोई दिक्कत ना हो.
साथ ही राफेल 24 घंटे में पांच बार उड़ने की क्षमता रखता है. जबकि सुखोई सिर्फ तीन (03) उड़ान भर सकता है. राफेल का फ्लाइट रेडियस करीब 780-1050 किलोमीटर है.
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