हाल ही में रिटायर हुए एयर मार्शल सिन्हा ने कहा, ‘’क्योंकि राफेल सौदा इंटर गर्वमेंटल एग्रीमेंट था यानि दो देशों के बीच हुआ सौदा था, इसलिए फ्रांस का राष्ट्रपति कार्यालय और भारत के पीएमओ के बीच बातचीत हुईं थी.’’ रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने भी आज संसद में कहा कि इसे पीएमओ की दखलअंदाजी के बजाए एक्शन यानि कार्यवाही समझा जाना चाहिए. सिन्हा के मुताबिक, ‘’बैंक गारंटी और सोवरिन गारंटी की बजाए कम्फर्ट लैटर इसी के चलते सौदे में शामिल किया गया. ताकि सौदे में किसी तरह की दिक्कत आती है तो उसके लिए फ्रांस की सरकार जिम्मेदारी होगी.’’
एयर मार्शल सिन्हा ने कहा, ‘’इस बावत पीएमओ को लैटर लिखा था. जब पीएमओ के ज्वाइंट सेकेरटरी ने जवाब देकर स्थिति स्पष्ट की तो नेगोशियशन टीम संतुष्ट हो गई.’’ लेकिन सिन्हा ने कहा कि रक्षा मंत्रालय का जो लैटर सामने आया है वो कभी भी नेगोसियेसन टीम के सामने नहीं आया. ना ही जिस डिप्टी सेक्रेटरी ने ये लैटर जारी किया था वो नेगोशियन टीम का कभी हिस्सा नहीं रहे. ना ही उनके वरिष्ट अधिकारी जो टीम का हिस्सा थे. उन्होनें कभी इस लैटर को कमेटी के सामने रखा. उन्होनें इस लैटर को आज पहली बार अखबार में देखा है. साथ ही उन्होनें ये भी कहा कि ये पता किया जाना चाहिए कि उस डिप्टी सेक्रेटरी ने किस के कहने पर ये लैटर जारी किया था.
आपको बता दें कि हर बड़े रक्षा सौदे की तरह राफेल सौदे में भी एक कोस्ट नेगोसियेशन कमेटी बनाई गई थी. अमूमन रक्षा मंत्रालय का एक अधिकारी ही सीएनसी का प्रमुख होता है.लेकिन राफेल सौदे की सीएनसी का प्रमुख एयर फोर्स के अधिकारी (तत्कालीन उपवायुसेना प्रमुख एसबीपी सिन्हा) को बनाया गया था. कमेटी में कुल 07 सदस्य थे. जिसमें दो वायुसेना के थे (सिन्हा सहित) और बाकी पांच रक्षा मंत्रालय के अधिकारी थे. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों में ज्वाइंट सेक्रेटरी यानि जेएस (एयर) भी शामिल थे. लेकिन किसी ने भी इस लैटर का कभी जिक्र नहीं किया था.
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