नई दिल्ली: वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ ने आज राफेल सौदे का बचाव करते हुए कहा कि इस तरह की इंटर-गर्वमेंटल डील पहले भी हो चुकी हैं. वायुसेनाध्यक्ष ने कहा कि सरकार राफेल और एस400 मिसाइल सिस्टम को मुहैया कराकर एयरफोर्स की लड़ाकू क्षमता को मजबूत कर रही है.
एयरचीफ मार्शल बीएस धनोआ ने बुधवार को कहा कि दुनिया में कोई भी देश उस तरह के गंभीर खतरे का सामना नहीं कर रहा है जैसा भारत कर रहा है. उन्होंने कहा कि दुश्मनों के इरादे रातोंरात बदल सकते हैं और वायु सेना को उनके स्तर के बल की जरुरत है. अस्सी के दशक में मिग-29के और मिराज की खरीद का उदाहरण देते हुए वायुसेना प्रमुख ने सरकार के उस कदम को सही ठहराया है जिसके तहत राफेल लड़ाकू विमान की दो स्कावड्रन को खरीदे जा रहे हैं.
वायुसेना प्रमुख आज राजधानी दिल्ली में आईएएफ फोर्स स्ट्रक्चर2035 नाम के सेमिनार में बोल रहे थे. उनके साथ इस सेमिनार में बोलने वालों में सेंट्रल एयर कमांड के एओसीएनसी (एयरऑफिसर कमांडिंग इन चीफ), एयर मार्शल एसबीपी सिन्हा और उप वायुसेनाध्यक्ष आर नांबियार शामिल थे. आपको बता दें कि एयर मार्शल सिन्हा दिसम्बर 2015 तक राफेल सौदे के लिए बनी कोस्ट नेगोशियेशन कमेटी (सीएनसी) के प्रमुख भी थे.
उन्होंने ये भी कहा कि महज़ चीन ही नहीं, पाकिस्तान भी अपने एयरफोर्स को मॉडर्नाइज़ कर रहा है. वायुसेना प्रमुख के मुताबिक, दुनिया में सिर्फ दो देश हैं- इजरायल और दक्षिण कोरिया जो भारत की तरह खतरा महसूस करते हैं और उन दोनों ने ही अपनी अपनी वायुसेनाओं को पिछले कुछ समय में बेहद मजबूत किया है.
वायु सेना प्रमुख ने कहा कि भारत के पड़ोसी निष्क्रिय नहीं बैठे हैं और चीन जैसे देश अपनी वायु सेना का आधुनिकीकरण कर रहे हैं. वहीं, उन्होंने सबसे बड़ी जानकारी देते हुए कहा कि चीन-पाकिस्तान की साझा ताकत से निपटने के लिए भारत को 42 स्क्वाड्रन (दल) की दरकार है लेकिन देश के पास अभी महज़ 31 स्क्वाड्रन हैं. जबकि अकेले पाकिस्तान के पास ही 25 स्कावड्रन हैं जबकि चीन के पास अकेले 800 फोर्थ जेनेरेशन फाइटर एयरक्राफ्ट हैं, जिन्हें वो कभी भी स्थाई तौर से तिब्बत में तैनात कर सकते हैं.
वायु सेना प्रमुख ने इससे भी बड़ी बात ये कही कि अगर एयरफोर्स के पास 42 स्क्वाड्रन भी हो तब भी भारत के लिए चीन और पाकिस्तान की साझा ताकत से मुकाबला करना संभव नहीं होगा. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार एयरफोर्स की ताकत बढ़ाने के लिए राफेल और ए-400 जैसे हथियार खरीद रही है.
इस मौके पर बोलते हुए एयरमार्शल सिन्हा ने कहा कि पिछले सरकार के दौरान हुआ एमएमआरसीए (राफेल) सौदा इसलिए नहीं हो पाया था क्योंकि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट और एचएएल के बीच गतिरोध पैदा हो गया था. क्योंकि जिन 108 राफेल लड़ाकू विमानों का निर्माण भारत में होना था उनकी जिम्मेदारी ना तो एचएएल और ना ही दसॉल्ट लेने को तैयार थी. साथ ही विमानों को अतिरिक्त घंटे उड़ाने को लेकर भी गतिरोध पैदा हो गया था.
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उप वायुसेनाध्यक्ष नांबियार ने पाकिस्तान और चीन की वायुसेनाओं की ताकत के बारे में बताया कि हम ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां हमेशा कुछ ना कुछ तनाव बना रहता है और जहां परमाणु हथियार भी मौजूद हैं. ऐसे में राफेल जैसा लडा़कू विमान भारत की कॉम्बेट कैपेबिलेटी को काफी बढ़ाने में कामयाब रहेगी. उन्होनें बताया कि अगले 12 महीनों में पहला राफेल लड़ाकू विमान भारत में पहुंच जायेगा.
सेमिनार के बाद मीडिया से बोलते हुए वायुसेना प्रमुख ने एक बार फिर राफेल विवाद खड़ा करने वाले लोगों को कहा कि हमें इतिहास पढ़ना चाहिए कि कैसे मिग29के और मिराज लड़ाकू विमान भारत ने खरीदे थे. इस सवाल पर कि क्या राजनैतिक विवाद से वायुकर्मियों के मनोबल पर असर पडे़गा, एयरचीफ मार्शल ने कहा कि इतनी छोटी छोटी बातों से कोई असर नहीं पड़ता.